योगी सरकार को बचाने वाली कानपुर आईआईटी की रिपोर्ट को 200 विद्वानों ने बोगस बताया

योगी सरकार को बचाने वाली कानपुर आईआईटी की रिपोर्ट को 200 विद्वानों ने बोगस बताया

भारत में कोरोना महामारी की ‘दूसरी लहर न आने की’ भविष्यवाणी करने वाले और ‘केंद्र सरकार की नीतियों को कई लहरों से बचा देने’ वाला घोषित करने वाले आईआईटी कानपुर के प्रोफ़ेसर मनिंद्र अग्रवाल के अध्ययन के बोगस होने और इस पर योगी सरकार को बचाने का आरोप लगा है।

अकादमिक जगत के 200 से अधिक प्रोफ़ेसरों, स्कॉलर्स, वैज्ञानिकों, छात्रों, दूसरे आईआईटी के प्रोफ़ेसरों यहां तक कि विदेश के कुछ विद्वानों ने कोरोना महामारी के दौरान यूपी सरकार के घोर कुप्रबंधन पर पर्दा डालने के लिए मनमाने और गैर वैज्ञानिक ढंग से किए गए इस अध्ययन की निंदा की है।

यही नहीं कई विद्वानों ने राजनीतिक लाभ के लिए ऐसे प्रतिष्ठित संस्थान के नाम का इस्तेमाल किए जाने की निंदा की है और संस्थान के डायरेक्टर द्वारा अध्ययन की प्रस्तावना लिख कर उसे वैधता प्रदान करने की कोशिश पर सवाल खड़े किये हैं।

जिस रिपोर्ट पर हंगामा मचा है, उसे यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है। आईआईटी कानपुर सिटीजंस फ़ोरम ने इस कथित रिसर्च के बोगस होने की बात को एक विस्तृत लेख में उजागर किया है।

अकादमिक जगत के इन विद्वानों ने संयुक्त रूप से एक बयान जारी कर अध्ययन प्रकाशित करने वाले आईआईटी कानपुर के प्रोफ़ेसर मनिंद्र अग्रवाल और इसकी प्रस्तावना लिखने वाले इसी संस्थान के डायरेक्टर को गैरवैज्ञानिक तौर तरीका अपनाने पर लताड़ा है।

मनिंद्र अग्रवाल कथित ‘सूत्र मॉडल’ के प्रमुख वास्तुकारों में से एक हैं। यह सूत्र मॉडल संक्रामक रोगों का एक कंपार्टमेंटल मॉडल है। असल में इस मॉडल को संक्रामक महामारी जैसे रोगों की भविष्यवाणी करने के लिए इस्तेमाल में लाया गया जबकि इसकी विश्वसनीयता पूरी तरह संदिग्ध है।

कानपुर सिटीजंस फ़ोरम और हमारा मंच ने इस मॉडल पर तीखे प्रश्न खड़े किए हैं और इस आधार पर योगी सरकार को क्लीन चिट देने की कोशिशों की निंदा की है।

हस्ताक्षरित बयान-

आईआईटी कानपुर द्वारा एक कथित वैज्ञानिक अध्ययन, जिसका शीर्षक कोविड संग्राम यूपी मॉडल: नीति, युक्ति, परिणाम है, को पिछले कुछ हफ्तों में मीडिया में व्यापक रूप से प्रसारित व प्रचारित किया गया है।

रिपोर्टके लेखक और मुख्य संपादक प्रो. मनिंद्र अग्रवाल हैं, जो आईआईटी कानपुर में पढ़ाते हैं। साथ ही वे तथाकथित ‘सूत्र मॉडल’ के प्रमुख वास्तुकारों में से एक हैं। सूत्र मॉडल संक्रामक रोगों का एक कंपार्टमेंटल मॉडल है।

सूत्र मॉडल प्रभावी तौर पर एक कर्वफिटिंग अभ्यास है जिसकी संक्रामक रोगों के संदर्भ में भविष्यवाणी करने की शक्ति या वैज्ञानिक योग्यता काफी कम है।

इस मॉडल के आधार पर अग्रवाल व उनके सहयोगियों ने बार-बार ऐसी सार्वजनिक घोर्षणाएं की हैं जो कि अनुभव के आधार पर गलत साबित हुई हैं।

उदाहरण के लिए, 9 मार्च 2021 को, अग्रवाल ने ट्विटर पर घोषणा की कि भारत में कोई “दूसरी लहर” नहीं होगी। इससे पहले 30 जनवरी को, अग्रवाल व उनके सहयोगियों ने एक रिसर्च पेपर में कें द्र सरकार की नीतियों की तारीफ़ की और दावा किया कि “यह साबित करना आसान है कि सरकार के लिए गए निर्णयों ने कई लहरों को आने से बचा लिया।”

जब ये भविष्यवाणियां गलत निकलीं, तब अपनी गलतियों को स्वीकार करने के बजाय अग्रवाल व उनके सहयोगियों ने नए आंकड़ों को फिट करने के लिए बस अपने मॉडल में मापदंडों व संख्याओं को संशोधित कर दिया।

उदाहरण के लिए, उनके पेपर के बाद के संस्करण में, यह स्पष्ट करने के बजाय कि भारत सरकार की आदर्श नीतियों को स्थापित करने वाला उनका “आसान” विश्लेषण पहले स्थान पर ग़लत क्यों था? उन्होंने बस चुपचाप उपरोक्त वाक्य को हटा दिया।

रिपोर्ट अपने आप में सरकारी आंकड़ों और सरकारी कार्यक्रमों के विवरण का एक गैर-आलोचनात्मक कॉपी पेस्ट है, जिसका साफ़ साफ़ उद्देश्य यह दिखाना है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने महामारी का प्रबंधन किसी अन्य राज्य की तुलना में बेहतर तरीके से किया है।

इस रिपोर्ट के कई दावे निराधार हैं, इसके नतीजे बढ़ाचढ़ा कर निकालने गए हैं, और इसके आंकड़ों को अस्पष्ट तरीके से प्रस्तुत किया गया है।

अग्रवाल और उनकी टीम नियमित रूप से सरकारी खर्च या प्रयास के दावों को इसके इच्छित प्राप्तकर्ताओं पर सकारात्मक प्रभाव के साथ भ्रमित करती है; इस तरह के दावों के लिए शोध और फील्ड वर्क से पुष्टि होना चाहिए, लेकिन इस रिपोर्ट में इनमें से कोई भी नहीं है।

दूसरी लहर के दौरान उत्तर प्रदेश पर आधारित विस्तृत सूचना की समीक्षा करने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि महामारी के प्रति यूपी सरकार की प्रतिक्रिया अपर्याप्त थी। कई लाख मेहनतकशों पर इन विफलताओं का प्रभाव चौंका देने वाला रहा है, और अभी तक जो नुकसान हुआ है, उसका पूरी तरह से आंकलन होना बाकी है।

यह रिपोर्ट सरकार की नीति के ईमानदार मूल्यांकन से बहुत दूर है, और इसके लेखकों का दोर्ष पूर्ण विज्ञान और राज्य सरकार की ग़लत नीतियों को सहारा देने के अलावा और कोई उद्देश्य नहीं है।

हमारा मानना है कि आईआईटी कानपुर व अन्य अकादमिक संस्थानों पर महामारी से निपटने के लिए सरकार के प्रयासों व उसके असर का अध्ययन व मूल्यांकन करने की एक गंभीर जिम्मेदारी है ताकि हमने जो भयावहता देखी है, वह खुद को न दोहराए।

ऐसेमें‌ यह खास तौर पर महत्वपूर्ण है कि ऐसे अध्ययन खुले और ईमानदार तरीके से किये जायें, न कि इस तरह से कि लोगों के हितों पर एक विशिष्ट सरकार के हितों को तरजीह दी जाए।

इस संदर्भ में, हमें यह अस्वीकार्य लगता है कि आईआईटी कानपुर के निदेशक ने इस तरह की रिपोर्ट के निष्कर्षों का समर्थन करते हुए एक प्रस्तावना लिखा है। हम, अधोहस्ताक्षरी, महामारी के यूपी सरकार के घोर कुप्रबंधन पर पर्दा डालने के लिए आईआईटी कानपुर की छाप व साख का इस्तेमाल करने के इस प्रयास की निंदा करते हैं।

(हस्ताक्षर करने वालों के नाम यहां पढ़े जा सकते हैं।)

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Workers Unity Team

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