कर्नाटक के सारे सफाई कर्मचारी अनिश्चित हड़ताल पर: 2017 आदेश के बावजूद अबतक नहीं किया गया रेगुलर

कर्नाटक के सारे सफाई कर्मचारी अनिश्चित हड़ताल पर: 2017 आदेश के बावजूद अबतक नहीं किया गया रेगुलर

सालों से प्रशासन के सामने पक्की नौकरी की मांग के लिए सर पटकने के बावजूद मूलभूत श्रम अधिकारों से वंचित, कर्नाटक के सारे सफाई मजदूर और पौराकर्मिका शुक्रवार से अनिश्चित काल के लिए हड़ताल पर हैं।

The Hindu की रिपोर्ट के मुताबिक हालांकि राज्य सरकार ने साल 2017-18 में सफाई कर्मचारियों को नौकरी पक्की करने का आदेश दिया था लेकिन अभी तक 54,512 सफाई कर्मचारियों में से सिर्फ 10,755 ही रेगुलर हैं, और बाकी मजदूर बिना किसी सामाजिक सुरक्षा या लाभ के काम करने को मजबूर हैं।

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शुक्रवार से अंडरग्राउंड ड्रेनेज वर्कर, कूड़ा इकट्ठा करने वाले, झाड़ू लगाने वाले, कूड़ा लोड करने वाले, कचरा गाड़ी के ड्राइवर समेत सारे सफाई मजदूर राज्य के सारे जिलों में डेप्यूटी कमिशनर के ऑफिस के बाहर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हैं।

बैंगलोर में सफाई मजदूर फ्रीडम पार्क में इकट्ठा हुए और धरना प्रदर्शन किया।

आधारभूत सुविधाओं के लिए लंबा संघर्ष

राज्य के सारे शहरों, कस्बों और गांवों से रोज कचरा उठा कर उन्हें साफ रखने वाले मजदूर दशकों से ठेकाकर्मी के रूप में काम करने को बाध्य हैं और सबसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं।

काफी लंबे संघर्ष और हड़तालों के बाद साल 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया की सरकार में राज्य मंत्रीमंडल ने ठेका व्यवस्था हटा कर पौराकर्मिकाओं को डायरेक्ट पेमेंट सिस्टम के अंतर्गत लाया था।

साल 2017 में अधिकारियों ने Special Recruitment Rules लागू किये जिसके तहत सिर्फ सड़कों पर झाड़ू लगाने वाले मजदूरों को पौराकर्मिका का दर्जा दिया गया।

लेकिन कचरा गाड़ी ड्राइवर, ड्रेनेज साफ करने वाले, कचरा इकट्ठा करने वाले, कचरा लोड करने वाले, आदि मजदूरों को ठेके पर ही रखा गया, जो की मंत्रीमंडल के निर्णय का उल्लंघन था।

डायरेक्ट पेमेंट सिस्टम के तहत सफाई मजदूर स्थानीय शहरी संस्था या मुंसिपालिटी के अधीन होते हैं और उनकी मजदूरी वहीं से मिलती है।

लगभग 30-35 सालों की सेवा के बाद भी सफाई मजदूरों को केवल 14,000 रुपए मासिक मिलते हैं बिना किसी अन्य सुविधा या लाभ के।

ऐसी हालत में वे रिटायरमेंट की उम्र आने पर भी बिना किसी पेंशन के जानलेवा परिस्थितियों में काम करने को मजबूर हैं।

बैंगलोर में लगभग पाँच साल पहले राज्य सरकार ने बृहत बैंगलोर महानगर पालिका (BBMP) के 4600 पौराकर्मिकाओं की नौकरी पक्की करने का आदेश दिया था। मजदूरों की पक्की नौकरी और सुरक्षित कार्य परिस्थितियों की मांग के बावजूद इतने समय बाद भी आदेश का पालन नहीं हुआ।

क्या है ठेका सिस्टम का सामाजिक और आर्थिक असर?

कर्नाटक सफाई कर्मचारी कमीशन द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, मजदूरों को पांच श्रेणियों में बांटा गया है — पर्मानेंट वर्कर, डायरेक्ट पेमेंट वर्कर, ठेका वर्कर, आउटसोर्स वर्कर और दिहाड़ी वर्कर।

कुल मिलाकर राज्य में 41,373 पौराकर्मिका, 12,387 लोडर और अन्य क्लीनर, और 752 अन्डरग्राउन्ड ड्रेनेज हेल्पर हैं। इनमें से सिर्फ 26,349 पौराकर्मिका डायरेक्ट पेमेंट सिस्टम के अंतर्गत आते हैं जिनमें 16,516 BBMP के लिए काम करते हैं।

जबकि 11,916 लोडर और क्लीनर को ठेकाकर्मी के दर्जे में रखा गया है, जिनमें से 10,200 BBMP के लिए काम करते हैं।

बिना किसी छुट्टी के हफ्ते में सातो दिन काम करना बिना किसी पेंशन या सामाजिक सुरक्षा लाभों के, इन  मजदूरों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ, दोनों पर गहरा असर डालता है।

पौराकर्मिकाओं की मेहनत के एवज में उन्हें मिलने वाली मजदूरी से उनके परिवार के खान पान, स्वास्थ, बच्चों की पढ़ाई, घर का किराया, आदि की पूर्ति करना नामुमकिन हो जाता है, खासकर बैंगलोर जैसे शहर में।

क्या हैं मजदूर और यूनियनों की मांग?

पौराकर्मिका यूनियनों की संयुक्त संघर्ष समिति (Joint Struggle Committee) का एकमात्र अजेंडा यही है कि सारे श्रेणी के सफाई मजदूरों को पौराकर्मिका का दर्जा दिया जाए, चाहे वो जो भी काम करते हों, और उनकी नौकरी पक्की की जाए।

उनकी नौकरी रेगुलर होते ही उनका वेतन 40,000 रुपए प्रति माह हो जाएगा और उन्हें रहने के लिए क्वॉर्टर, पेंशन और बाकी सुविधाएं मिलने लगेंगी।

यूनियनों की मांग है कि मजदूरों को रिटायरमेंट पर 10 लाख रुपए, हर महीने 5000 रुपए का पेंशन, हेल्थ कार्ड और परिवार में एक सदस्य को नौकरी दी जानी चाहिए।

इसके अलावा उन्होंने घर, बच्चों के लिए मुफ़्त पढ़ाई, समान काम के लिए समान वेतन और सम्मानजनक परिस्थितियों की मांग की है।

पौराकर्मिकाओं में ज्यादातर महिलाएं हैं, जिन्हें टॉयलेट, साफ पीने का पानी, मातृत्व अवकाश या मैटरनिटी लीव, रेस्टरूमआदि नहीं मिलते हैं।

लेबर डिपार्टमेंट ने 2018 में मजदूरों को ये सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था, इसके बावजूद जरूरत के मुकाबले केवल 5 फीसदी रेस्टरूम तैयार हुए हैं।

यूनियन की मांग है कि ये सारी जरूरतें अगले तीन महीने के अंदर पूरी होनी चाहिए।

गृह भाग्य योजना के तहत सिर्फ पर्मानेंट कर्मचारियों को घर दिया गया है, जबकि बाकी 85 फीसदी मजदूरों को बेसहारा छोड़ दिया गया है।

बाकी पार्टियों का क्या है कहना?

बनशंकरी चरण 3 में काम करने वाली अधेड़ उम्र की पौराकर्मिका, त्यामलम्मा  ने कहा, “अगर मैं एक भी दिन बिना छुट्टी लिए काम करती हूं तो मुझे 14,000 रुपए मिलते हैं। एक दिन की छुट्टी का मतलब मेरे वेतन से ₹600 की कटौती है। इसके अलावा मेरा वेतन पांच साल से नहीं बढ़ा है।”

अधिवक्ता, कार्यकर्ता और BBMP गुट्टिगे पौराकर्मिका यूनियन के सदस्य, मैत्रेयी कृष्णन ने कहा कि गुरुवार को पूर्ण हड़ताल होगी और कोई भी काम नहीं करेगा।

उन्होंने कहा “जिन लोगों ने 30-35 वर्षों तक काम किया है, उनके साथ अभी भी गलत व्यवहार किया जा रहा है। यह अधिकारों का मामला है।”

“जबकि स्थायी कर्मचारियों को प्रति माह 40,000-45,000 रुपए का वेतन मिलता है, डायरेक्ट पेमेंट के तहत ठीक उसी काम के लिए 14,000 रुपए मिलते हैं।”

उन्होंने कहा, “करीब तीन महीने से ड्राइवर, हेल्पर और लोडर को वेतन नहीं दिया गया है। यह अवैध है। हमारी मुख्य मांग यह है कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट से जुड़े सभी मजदूरों को स्थायी किया जाए।”

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Workers Unity Team

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