दिल्ली में 72 दिन से प्रदर्शन कर रहे लेडी हार्डिंग के सफाई कर्मचारी, पुलिस अब विरोध भी नहीं करने दे रही
By प्रतीक तालुकदार
अवैध रूप से काम से निकाले गए दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (LHMC) और कलावती सरन अस्पताल के सफाई कर्मचारी पिछले 72 दिनों से धरना दे रहे हैं ताकि हाई कोर्ट के ऑर्डर का पालन करते हुए उन्हें बहाल किया जाए।
AICCTU से सम्बद्ध सफाई कर्मचारियों के यूनियन ने अस्पताल के गेट न. 5 के सामने पेवमेंट पर मंगलवार को एक मीटिंग और प्रेस कॉनफेरेंस रखी जिसमें मजदूर नेता, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल होने वाले थे।
शांतिपूर्वक धरना करने के लिए यूनियन ने दिल्ली पुलिस को सूचित भी कर दिया था, लेकिन ठीक 4 बजे जब मीटिंग शुरू होने वाली थी तब दिल्ली पुलिस ने इजाजत देने से मना कर दिया और प्रदर्शनकारियों को वहां से दो-ढाई किलोमीटर दूर जंतर मंतर जाने को कहा।
प्रदर्शनकारी भी शांतिपूर्वक अपना कार्यक्रम करने के लिए अपना तिरपाल और माइक उठा कर जंतर मंतर चले गए।
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यहां ध्यान देने वाली बात है कि ये सफाई कर्मचारी, जो पिछले दसियों साल से अमानवीय मजदूरी दर पर मल, मूत्र, खून, पस, डेड बॉडी और यहां तक कि रेडियोऐक्टिव कचरे को भी बिना किसी सुरक्षा के साफ करते आए हैं, उन्हें आज अस्पताल के सामने खड़े भी नहीं होने दिया गया।
LHMC के कैंपस में कॉलेज के अलावा दो अस्पताल हैं जिसमें से कलावती सरन अस्पताल भारत में बच्चों के लिए सबसे टॉप अस्पताल है जहां देश भर से केस रेफर होकर पहुंचते हैं। साल 2018 तक सफाई कर्मचारियों को दिहाड़ी लगभग 250 रुपए मिलते थे, जिसे यूनियन के संघर्ष के बाद न्यूनतम वेतन की दर तक लाया गया।
नया टेंडर जारी होते ही सफाई कर्मचारियों को काम से निकाल दिया गया और बहाली के लिए 25,000 से 30,000 रिश्वत की मांग की गई। मजदूर हाई कोर्ट गए जहां उन्हें जीत हासिल हुई और कोर्ट ने आदेश दिया कि उन्हें काम पर वापस रखा जाए।
लेकिन डेढ़ महीने पहले जारी किये गए आदेश और इस चिलचिलाती गर्मी में 72 दिनों से हो रहे मजदूरों के प्रदर्शन के बावजूद आज तक ठेका कंपनी टस से मस नहीं हुई है।
इतने दिनों में पुलिस “शांति बनाए रखने के लिए” कई बार प्रदर्शनकारियों को घसीट कर जेल में डाल चुकी है, देर रात तक महिलाओं को कैद रखा है, उन पर लाठी डंडे चलाए हैं और भारतीय सभ्यता की परंपरा का मान रखते हुए जो जातिसूचक बातें सुनाई हैं वो अलग।
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जहां उन्होंने आधी ज़िंदगी काम करते हुए निकाल दी, वहां उनकी बात सुनना तो दूर, उनसे उस जगह पर बोलने का भी हक छीन लिया जाए, तो पुलिस-प्रशासन के मुताबिक उन्हें गुस्सा नहीं आना चाहिए और उन्हें चुप चाप शांति कायम रखते हुए वहां से दूर चले जाना चाहिए।
कान पर जूं रेंगने का मतलब है कि कोई छोटी सी बात झुंझलाहट पैदा कर रही हो, तो वह व्यक्ति उस जूं की तरफ ध्यान देने पर मजबूर हो जाए। सफाई कर्मचारियों की वैल्यू हमेशा से इस समाज में काफ्का के जूं के समान ही रही है।
बहुत समय से लंबित मांगों के बावजूद अगर कोई सुध नहीं ले रहा हो, तब ध्यान आकर्षित कर दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन किये जाते हैं, ताकि मांगों को पूरा किया जा सके। लेकिन होता यही है कि फरियादी चीखता रह जाता है और सुनने वाले के कान पर जूं भी नहीं रेंगती है।
अगर जूं रेंगने की कोशिश भी करे तो उसे उठाकर थोड़ी दूर फेंक दिया जाए जहां से वह सत्ताधारी के कान तक ना पहुँच पाए। अगर वह दूर जाने में आनाकानी करे, तो उसे उठाकर जेल में बंद कर दिया जाए।
लेकिन सारे जूं को बंद करना सत्ताधारी के लिए मुश्किल है। इसलिए उसने हर तरफ से बैरिकेड लगा कर जंतर मंतर के पीछे एक सड़क का हिस्सा अलॉट कर दिया है जहां देश भर से प्रदर्शनकारी आते हैं और विरोध दर्ज कर वापस चले जाते हैं। लेकिन उनकी समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है।
संदेश साफ है कि चुप चाप मार खाओ और अगर चूं करनी है, तो दिए गए नियमों के तहत ही चूं करना मान्य होगा। अगर गलत तरीके से चूं की तो चार गुना मार पड़ेगी।
अगर अपनी शर्तों पर विरोध की कोशिश की, तो गुंडा तत्व से लेकर देशद्रोही तक करार दिए जा सकते हैं।
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