लक्षद्वीप में हंगामे के बीच मजदूर क्यों कर रहे हैं प्रदर्शन?
लक्षद्वीप का सियासी घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। सोशल मीडिया के जरिए बड़ी तादाद में लोग लक्षद्वीप को बचाने की अपील कर रहे हैं।
सारा बवाल लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन के मसौदे का कारण हो रहा है। यह मसौदा प्रशासक को विकास के उद्देश्य से किसी भी संपत्ति को जब्त करने और उसके मालिकों को स्थानांतरित करने या हटाने की अनुमति देता है।
इसके तहत इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास से जुड़े कामों के लिए स्थानीय लोगों को उनकी जगहों या जमीनों से हटाने और दूसरी जगह पर विस्थापित करने का प्रावधान किया गया है।
इसके साथ ही किसी भी तरह की अचल संपत्ति विकास से जुड़े काम के लिए दी जा सकती है। लोगों को डर है कि इससे आने वाले समय में उनकी जमीन छीनी जा सकती है।
इसी बीच मजदूर नौकरियों से निकाले जाने को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल डिपार्टमेंट ऑफ एनवायरनमेंट एंड फॉरेस्ट ने एक आदेश पारित किया है।
जिसके तहत समुद्री वन्यजीव संरक्षण पहरेदारों और लक्षद्वीप के सभी संरक्षित क्षेत्रों में अस्थायी अवैध शिकार विरोधी शिविरों को 1 जून से लेकर 31 अगस्त और अगले आदेश आने तक काम करने से रोक दिया गया है।
पहरेदारों को लगातार अच्छे काम करने के लिए प्रमोशन देने की जगह काम से निकाल दिया गया है।
रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर सीएन अब्दुल रहीम ने इसकी वजह मानसून के दौरान द्वीप पर गश्ती नौकाओं की आवाजाही पर प्रतिबंध बताया है।
इस स्थिति को देखते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मचारी सदस्यों को भी जॉब खोने का डर सता रहा है। उनका कॉट्रेक्ट खत्म होने के कगार पर है।
लक्षद्वीप पशु संरक्षण विनियमन उन कई मसौदा सुधारों में से एक है जिसे भाजपा राजनेता प्रफुल खोड़ा पटेल ने दिसंबर 2020 में लक्षद्वीप के नए प्रशासक के रूप में कार्यभार संभालने के दौरान पेश किया था।
प्रफुल्ल खोड़ा पटेल ने लक्षद्वीप की सामाजिक आर्थिक संरचना और परंपराओं को बाधित करने वाले कानूनों की एक श्रृंखला पेश की।
सरकारी कर्मचारियों के बेरोजगार करने वाले इन प्रशासनिक सुधार का लक्षद्वीप के लोगों द्वारा और बड़ी संख्या में केरल के लोगों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
केरल विधानसभा ने लक्षद्वीप के लोगों के साथ एकजुटता जताते हुए एक प्रस्ताव सोमवार को सर्वसम्मति से पारित किया।
इस प्रस्ताव में द्वीप के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को वापस बुलाए जाने की मांग की गई है और केंद्र से तत्काल हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया है, ताकि द्वीप के लोगों के जीवन और उनकी आजीविका की रक्षा हो सके।
भारतीय संविधान के अनुसार लक्षद्वीप 36 द्वीपों के एक समूह है। यह अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में वर्गीकृत 94% स्वदेशी समुदायों के रूप में बसा है।
इस बारे में एक कर्मचारी ने बताया, जब से नए प्रशासक ने चार्ज संभाला है तब से कॉट्रेक्ट पर काम कर रहे 500 से अधिक लोगों को हटा दिया गया है।
लक्षद्वीप के सांसद और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता मोहम्मद फैजल इस बारे में कहते हैं कि यह आम लोगों के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा करने वाला अवैज्ञानिक निर्णय है। द्वीप के अधिकांश निवासी जीवित रहने के लिए सरकारी नौकरियों पर निर्भर हैं। व्यवस्था के अभिन्न अंग रहे इन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया जाता है तो विभाग बुरी तरह से प्रभावित होंगे। प्रशासन ने ऐसे निर्णय लेने से पहले किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि से परामर्श नहीं लिया है।
लक्षद्वीप भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव सीटी नजमुद्दीन ने कहा कि एक मजबूत लेबर कोर्ट न्यायालय और लेबर यूनियन की अनुपस्थिति ने प्रशासन के लिए ऐसी श्रमिक विरोधी नीतियों को लागू करना आसान बना दिया है।
वहीं 27 मई को कोच्ची में हुई प्रेस मीट में लक्षद्वीप के कलेक्टर अस्कर अली ने इसे सुधार की तरफ कदम बताया है।
(साभार-द न्यूज मिनट)
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