छह महीने से नहीं मिली मज़दूरीः बिहार के मनरेगा मज़दूर कैमरे की नज़र से

छह महीने से नहीं मिली मज़दूरीः बिहार के मनरेगा मज़दूर कैमरे की नज़र से

By रितिक जावला

लॉकडाउन में मज़दूरों पर जो कहर बरपा उसे दिल्ली मुंबई सूरत की सड़कों पर देखा, लेकिन बिहार में रहकर अपनी ज़िंदगी गुज़ारने वाले मनरेगा मज़दूरों का हाल कभी सुर्खियों में नहीं आया। वर्कर्स यूनिटी की टीम बिहार के मनरेगा मज़दूरों का हाल जानने रोहतास ज़िले के काराकाट विधानसभा क्षेत्र में पहुंची और मनरेगा मज़दूरों का हाल जानने की कोशिश की। इनमें से अधिकांश मज़दूरों ने बताया कि मई में कराए गए काम का अभी तक पैसा नहीं मिला है। Manrega Bihar rohtas 8 ये रोहतास ज़िले के काराकाट ब्लॉक में जयश्री गांव के संतोष हैं, जिनका दाहिना पैर अल्पविकिसित है। इन्होंने छह महीने पहले मनरेगा में काम किया था लेकिन अभी तक पैसा नहीं मिला है। Manrega Bihar rohtas 9 काराकाट के बाराडीहा गांव में बहुसंख्यक आबादी मज़दूर है और यहां से बहुत सारे लोग बाहरी राज्यों में काम करने जाते हैं। ज़मीन न होने से पूरी आजीविका दूसरों के यहां या मनरेगा का काम करने पर निर्भर है। Manrega Bihar rohtas 5 रोहतास ज़िले के प्रमुख शहर सासाराम के लेबर चौक का ये दृश्य है। यहां सुबह 6 बजे से गांव के मज़दूर यहां जमा होते हैं। लेकिन ये निश्चित नहीं है कि उन्हें दिहाड़ी मिल ही जाए। Manrega Bihar rohtas 4 ये मज़दूर खेती के सीजन में दूसरे के खेतों में मज़दूरी करते हैं और बाकी समय लेबर चौक पर दिहाड़ी की तलाश करते हैं। इनमें से कई का कहना है कि उन्हें यहां भी बहुत कम दिहाड़ी मिलती है।

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इन मज़दूरों को शहर में लगभग तीन सौ रुपये की दिहाड़ी मिल जाती है जबकि मनरेगा में 194 रुपये मिलता है और वो भी साल में कभी 100 दिन का काम नहीं मिलता। इन मज़दूरों ने बताया कि इस बार तो मई और जून में कुछ दिनों का काम मिला था, उसके बाद से सन्नाटा है।

Manrega Bihar rohtas 6 बाराडीहा गांव में महिलाओं ने बताया कि न तो उन्हें किरासन (मिट्टी का तेल) मिल रहा है न राशन। बच्चे छह महीने से स्कूल नहीं गए हैं। दाने दाने को मोहताज आबादी को सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली, यहां तक कि जनधन खाते में भी कोई पैसा नहीं आया।

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कैमूर के आदिवासी इलाक़ों का और बुरा हाल है। सिर्फ़ ब्लॉक तक पहुंचने के लिए ही उन्हें 30 किलोमीटर कच्ची सड़क से आना पड़ता है। जंगलों से उत्पादन इकट्ठा करने पर रोक लगने के बाद से हालात और ख़राब हो गए हैं। रोज़गार के लिए बहुत से नौजवान बाहरी राज्यों में गए थे लेकिन लॉकडाउन में उन्हें लौटना पड़ा।

(सभी तस्वीरें फ़ोटो जर्नलिस्ट रितिक जावला )

(सभी तस्वीरें रितिक ज्वाला, फ़ोटो जर्नलिस्ट)

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Workers Unity Team

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