मारुति में आज से तीन जनवरी तक शुरू हुआ शट डाउन, ऑटो सेक्टर में बड़े पैमाने पर छंटनी
चौपहिया वाहन निर्माता कंपनी मारुति में 27 दिसम्बर से तीन जनवरी तक शटडाउन घोषित कर दिया गया है।
इस दौरान सिर्फ सिर्फ मेंटनेंस के वर्कर काम करेंगे, जबकि बाकी वर्कर छुट्टियों में घर चले गए हैं।
कंपनी के एक कर्मचारी ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि जून में मेंटनेंस के लिए कुछ दिनों के लिए शटडाउन किया जाता है लेकिन कोविड के कारण इस बार ये नहीं हो पाया।
साल में दो बार मेंटनेंस के लिए कंपनी में शट डाउन किया जाता है ताकि मशीनों की मरम्मत की जा सके।
हालांकि इस बार आठ दिन का शट डाउन घोषित किया गया है जो एक लंबी अवधि है।
लेकिन सबसे अधिक हैरानी होंडा मोटरसाइकिल बनाने वाली मानेसर की होंडा स्कूटर्स प्रा. लि. ने दिसम्बर की शुरुआत से ही शट डाउऩ घोषित कर रखा है और अभी तक पता नहीं कि दोबारा कंपनी कब खुलेगी।
ऑटो सेक्टर में इधर कुछ दिनों से लगातार शट डाउन, छंटनी, तालाबंदी की ख़बरें आ रही हैं। अभी पुणे की जनरल मोटर्स कंपनी ने अपने प्लांट में 25 से अनिश्चितकालीन शट डाउन की घोषणा कर दी।
उससे पहले होंडा की ग्रेटर नोएडा कंपनी ने एक दिसम्बर से ही प्लांट को बद कर दिया और सारे कर्मचारियों को ज़बरदस्ती सीआरएस (कंपल्सरी रिटायरमेंट) दे दिया।
बैंगलुरु में ट्योटा में पिछले कई महीनों से आंदोलन चल रहा है और अभी तक कोई हल निकलता नहीं दिखाई दे रहा है।
जबसे मोदी सरकार ने 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर लेबर कोड बनाए हैं, जिनको अभी एक अप्रैल से लागू किया जाना है, उससे पहलेही कंपनियों ने मनमानी शुरू कर दी है।
छंटनी, तालाबंदी, वीआरएस, सीआरएस देने की जैसे होड़ लग गई है।
ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट चंदन कुमार कहते हैं कि सरकार और कंपनियों की रणनीति ये है कि अगले 10 सालों में सभी ट्रेड यूनियनों को ख़त्म करदिया जाए, इसीलिए ये लेबर कोड लेकर आए हैं।
उनके अनुसार, लेबर कोड में ट्रेड यूनियन बनाना, हड़ताल करना, पुरानी यूनियन को बनाए रखना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन कर दिया गया है।
यही नहीं कां के घंटे 12 कर दिए गए हैं। छंटनी की सीमा को 100 से बढ़ा कर 300 कर्मचारियों वाली कंपनियों तक कर दी है, ताकि तालाबंदी के बाद वर्करों को मुआवज़ा देना न पड़े।
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