पत्रकारों पर देशद्रोह के मुकदमे ‘प्रेस की आजादी’ पर हमला,आपातकाल से भी बुरे हैं हालात
पिछले 2 महीनों से चल रहे किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग कर पत्रकारों पर सरकार हर तरीके से दबाव बना रही है। सरकारी एजेंसियों के सहयोग से पत्रकारों को चिन्हित कर उन्हें परेशान किया जा रहा है।
पत्रकारों पर हो रहे इस तरह की कारवाईयों के उदाहरण की एक पूरी श्रृखंला हमारे सामने है कि कैसे स्वतंत्र पत्रकारों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा रहा, उनके के ट्विटर अकांउट बैन किये जा रहे है या उनके कटेंट को सोशल मीडिया से हटा दिया जा रहा है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया, इंडियन वूमेंस प्रेस कार्प्स (IPWC) डेलही यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (DUJ) और इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन (IJU) ने मौजूदा किसान आंदोलन में रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ़ देशद्रोह की धारा में केस दर्ज किए जाने की निंदा करते हुए इसे ‘प्रेस की आज़ादी पर हमला’ बताया है।
इंडिया टुडे के एंकर राजदीप सरदेसाई, विनोद जोंस और कारवां मैगजीन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के खिलाफ़ पांच राज्यों में केस दर्ज करवाया गया है।
ये केस 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को किसानों के ट्रैक्टर परेड के दौरान नवनीत नामक किसान की मौत की रिपोर्टिंग और ट्विटर पोस्ट के आधार पर दर्ज करवाया गया है, जिसमें दावा किया गया था कि नवनीत की मौत पुलिस की गोली से हुई है।
वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष आनंद सहाय ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा, “यह महज इत्तेफाक़ नहीं था कि उन मामलों को बड़े पैमाने पर केस उन राज्यों में दर्ज किया गया था, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा शासित हैं। मौजूदा सरकार को लोकतंत्र की फिक्र नहीं है और आलोचना की छोटी सी भी आवाज पर लोगों को जेल में डाला जा सकता है। आपातकाल में भी पत्रकारों के खिलाफ नियम इतने कठोर नहीं थे। मुझे नहीं याद आता कि कोई देशद्रोह के आरोप में जेल गया हो।”
वहीं दिल्ली पत्रकार संघ के अध्यक्ष एसके पांडेय ने आरोप लगाया कि हालात ‘अघोषित आपातकाल’ जैसे हैं। एडिटर्स गिल्ड की अध्यक्ष सीमा मुस्तफा ने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ सरकार की कार्रवाई उन्हें ‘डराने और सताने’ के मकसद से की गई है।
पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने प्रेस कान्फ्रेंस में कहा, “मतभेद होने के बावजूद पत्रकार बिरादरी को सरकार की गंभीर आपराधिक मामले दर्ज किए जाने की प्रवृत्ति के खिलाफ साथ आने की जरूरत है। आज पत्रकार वाम, दक्षिण और मध्यमार्गी में बंटे हुए हैं। मैं इस बहस में नहीं जाऊंगा। आप मणिपुर में हों या कश्मीर में या कांग्रेस शासित राज्यों में हों या भाजपा शासित राज्य में हों, देशद्रोह के मामले में प्रत्येक पत्रकार के बीच सर्वसम्मति होनी चाहिए।”
बता दें कि 28 फरवरी बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की पुलिस ने राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडेय, जफर आगा, परेश नाथ, अनंत नाथ और विनोद के जोंस के खिलाफ देशद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की थी, जबकि 30 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर रिपोर्टिंग के दौरान जनपथ के पत्रकार मनदीप पुनिया और न्यूज इंडिया के पत्रकार धर्मेंद्र सिंह को गिरफ्तार कर लिया था।
बाद में धर्मेंद सिंह को तो छोड़ दिया गया, लेकिन मनदीप पुनिया को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया था।
मनदीप पुनिया आंदोलन की बिल्कुल शुरुआत से फेसबुक लाइव कर रहे थे। 31 जनवरी को सैकड़ों पत्रकारों ने मनदीप पुनिया की गिरफ्तारी के खिलाफ़ दिल्ली पुलिस हेड क्वार्टर के सामने विरोध प्रदर्शन किया था।
इससे पहले किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग करने वाले पंजाब के आधा दर्जन से अधिक पत्रकारों को 26 दिसंबर को एनआईए ने नोटिस भेज कर पूछताछ के लिए तलब किया था।
वहीं डिजिटल मीडियम के वेब पोर्टल और सोशल मीडिया रिपोर्टिंग को रोकने के लिए सरकार ने आंदोलन स्थलों पर इंटरनेट सेवा बंद कर रखी है।
वर्कर्स यूनिटी के समर्थकों से एक अपील, मज़दूरों की अपनी मीडिया खड़ी करने में सहयोग करें
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)