चुनाव के अलावा मोदी को कुछ नहीं आता, शहीद सैनिकों को भी बना दिया प्रचार का सामानः जस्टिस कोलसे पाटील
By जस्टिस कोलसे पाटील
मोदी सरकार के लिए कोरोना एक बहाना है, आवाज को दबाने के लिए, आंदोलन का दमन करने के लिए।
भारत में कोरोना अमीरों ने फैलाया, कोरोना तो फ्लाईट से आया था, लेकिन सज़ा ग़रीबों को मिली, मज़दूर सड़कों पर मरते रहे।
जब देश में पहला लॉकडाउन हुआ तो उस समय 100 लोग ही कोरोना से संक्रमित थे और 5 लोगों की मौत हुई थी। इस बीमारी को दिसंबर- जनवरी तक रोक लिया जाता तो मज़दूरों की हालत बत से बदतर नहीं होती। देश भी बच जाता।
देश में पहली बार ऐसा हुआ था कि मुस्लिम महिलाएं बिना किसी डर के इंसाफ के लिए सड़कों पर उतरी थी। बिना हिंसा में शामिल हुए गांधी के बाताए हुआ मार्ग पर चलकर इंसाफ की लड़ाई लड़ रही थीं। संविधान के दायरे में रहकर इंसाफ मांग रही थीं, लेकिन उनका क्या जो संविधान को मानते ही नहीं है। संविधान को न मानने वालों ने इस इंसाफ की लड़ाई को कुचल दिया।
वैसे क्रेंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर बार-बार कहते फिरते हैं कि कोरोना को लेकर मोदी ने दिसंबर में ही चिंती ज़ाहिर की थी। तो सवाल उठता है कि जब उनकों पहले से ही इतनी चिंता थी तो 4 महीने बीमारी को रोकने के लिए इंतज़ार क्यों किया गया?
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मोदी सरकार संघ की कठपुतली
इस सरकार ने बिना किसी नोटिस के नोट बंदी की और लॉकडाउन भी बिना नोटिस के ही किया। किसी से कोई सलाह मशविरा नहीं किया।
अगर लॉकडाउन के 8 दिन पहले लोगों को समय दिया होता, ट्रेनें मुहैया कराई होतीं लोगों को उनके गांव भेजने के लिए तो हालत आज ऐसे नहीं होते।
यदि बंच ऑफ थॉट पढ़ेंगे, सावरकर-तिलक पढ़ेंगे तो उनका कहाना है कि आर्थिक कमर तोड़े बिना सरकार हम पर राज नहीं कर सकती है।
लॉकडाउन का असल मकसद छोटे उद्योग धंधों, कारोबार की आर्थिक रूप से कमर तोड़ना ही था। आर्थिक कमर तोड़ने का काम मोदी ने 2014 से ही शुरू कर दिया था, मुझे लगा था कि मोदी ग़रीब परिवार से हैं, दो बार चुन कर आए हैं तो सौ प्रतिशत देश को बदल सकते हैं। पर इन्हें देश को बदलना नहीं है। वो लोग जो संघ कहता है वही करते हैं।
सरकार को स्वतंत्र रूप से सोचने की इजाज़त नहीं है और ना ही फैसला लेने की। ये लोग संघ की कठपुतली हैं।
इस सरकार ने लॉकडाउन को मां बेटे का खेल बना दिया है। जैसे मां कहती है, बेटा तू बैठ मैं खाना बना कर लाती हूं, उसी तरह सरकार ने भी किया सबको घर में बैठा दिया और लॉकडाउन का मतलब यही था।
लेकिन बाद में पता चला कि हमारे पास पीईपीई किट नहीं है, टेस्टिंग किट नहीं है। जब काम करने का समय था तो, लोगों को ताली – थाली बजाने में लगा दिया था। ऐसी हालत में जब दुनिया में सबसे कम स्वास्थ्य बज़ट वाला देश हमारा ही है।
शहीदों की लाशों पर प्रचार
कोरोना को लेकर सरकार ने बड़ी लंबी-लंबी बातें कीं। ‘वे महाभारत 18 दिन में जीते थे हम कोरोना से लड़ाई 20 दिन में जीतेंगे।’
कैसी सरकार है ये और लोग भी वैसे ही हैं मोदी की बात सुनकर सड़कों पर आकर नाचते गाते हैं।
कैबिनेट में कोरोना – कोरोना चिलाते रहे पर जनता से नहीं बोला। इन्हें पता था भारत में जिस तरह लोग मॉल में जाकर घूमते हैं उसी तरह यहां के व्यापारी वुहान (चीन) जाते हैं। क्यों नहीं रोका उन्हें?
क्योंकि इस सरकार को गंदी राजनीति करनी थी, ट्रंप को भारत लाकर वाहवाही लूटनी थी, मध्यप्रदेश की सरकार गिरानी थी।
मोदी को चुनाव के सिवा कुछ नहीं आता है। बिहार के चुनाव के लिए शहीदों की लाशों पर ये लोग प्रचार कर रहे हैं, जुलूस निकाल रहे हैं। इन्हें नहीं पता है ये लोग देश को गुमराह कर रहे हैं।
लॉकडाउन के बाद साबित हो गया कि इस देश के लोग कृषि पर निर्भर हैं। ये सराकर कृषि के लिए क्यों नहीं कुछ करती है?
ये लोग कहते हैं हमने किसानों को छूट दे दी है पूरी दुनिया में कही भी जाकर कर व्यापार करो। क्या इन्हें नहीं पता है लॉकडाउन चल रहा है।
किसान अपने गांव से नहीं निकल सकता है, तो विदेश कहां जाएगा। इसीलिए इन लोगों ने किसानों को लूटने के लिए व्यापारियों को छूट दे दी है। ये सब आरएसएस का एजेंडा है।
नए भारत के नाम पर निजीकरण
हिटलर का मानना था कि यदि जनता पर राज करना है तो उन्हें विश्वास दिलाओ कि जीवित रहना ही आज़ादी है।
कोरोना प्राकृतिक देन है पर इस देश की बर्बादी मोदी की देन है। मोदी हर काम बिना योजना के करते हैं। जीएसटी के पैसे भी इन्हीं को चाहिए, पीएम केयर्स फंड के पैसै भी इन्हीं को चाहिए राज्य को कुछ नहीं देना है।
नए भारत के नाम पर खुले दिल से निजीकरण कर रहे हैं। लॉकडाउन का मकसद ही लोगों की आवाज को दबाना है।
6 साल होने वाला है इस सरकार को पर एक स्कूल नहीं खोला, किसानों के लिए कुछ नहीं किया। बहुत कुछ कर सकते थे। पर नहीं किया इनको सत्ता पर ब्रेन वॉश कर के बैठाया गया है ताकि ये लोग देश को आर्थिक रुप से खत्म कर सकें।
ये सरकार कुछ नहीं करने वाली है। देश को और ग़रीब बनाएगी। ये लोग कहते हैं कि 80 करोड़ लोगों को सुविधा मिली है, पर सच तो ये है कि केवल एक करोड़ लोगों को भी सुविधा नहीं मिली।
इन्हें तो कुछ करना नहीं है पर अगर विपक्ष कुछ करना चाहता है तो ये लोग उसे भी नहीं करने देते हैं।
हर देश ने अपने नागरिकों को लॉकडाउन का भत्ता उनके वेतन से अधिक दिया है। अगर हमारी सरकार इस का थोड़ा भी जनता के लिए करती तो कुछ नहीं बिगड़ता।
सच बोलने वालों की हत्या
मोदी ने 2014 से लेकर अबतक 30 लाख करोड़ के आस-पास रुपए पूंजीपतियों को दिया है। इस देश का नुकसान मोदी अबतक 50 लाख करोड़ रुपए का कर चुके हैं।
सरकार के पास पैसा बहुत है पर काम करने की इच्छा नहीं है। ये लोग भारत के मालिक बनना चाहते हैं। सच बोलने वालों को मार दिया जाता है। जब भी चुनाव आता है ये लोग पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ाते हैं। यही इनकी राजनीति है।
अगर 2024 में मोदी सरकार फिर से सत्ता में आती है, तो देश का प्रजातंत्र खत्म हो जाएगा। लगभग खत्म होने की कगार पर है।
भारत को तरक्की के राह पर लेकर जाना है तो भाजपा-आरएसएस की सरकार को मिटाना होगा।
(‘कोरोना के बाद का भारत’ श्रृंखला के अंतर्गत आयोजित एक ऑनलाइन सेमिनार में वर्कर्स यूनिटी के फेसबुक लाइव में बोलते हुए सामाजिक न्याय पर मुखर रहे जस्टिस कोलसे पाटील ने अपनी बातें रखीं। इसे टेक्स्ट में रूपांतरित किया है खुशबू सिंह ने।)
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