मोदी सरकार एक झटके में लागू करना चाहती है लेबर कोड
श्रम कानूनों की जगह नए लेबर कोड लागू करने में महामारी और मजदूर यूनियनों के विरोध का सामना करने के बाद अब मोदी सरकार चरणबद्ध तरीके से नहीं बल्कि एक झटके में पूरे देश में इन नियमों को लागू करना चाहती है।
Indian Express की खबर के मुताबिक एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 2023 के शुरुआत में इसे लागू करने की बात चल रही है, हालांकि यह समय 2024 चुनाव के करीब होने और किसान आंदोलन में मुंह की खाने के कारण से सरकार चिंतित है।
लेबर कोड लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को अपने हिसाब से नियम ड्राफ्ट करने होंगे। अब तक 30 राज्यों ने वेतन कोड के लिए अपना प्रारूप तैयार कर लिया है। औद्योगिक रिश्तों के कोड में 26 राज्यों ने, सामाजिक सुरक्षा और पेशेवर सुरक्षा के लिए 24 राज्यों ने नियम ड्राफ्ट कर लिए हैं।
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आंध्र प्रदेश, मेघालय और नागालैंड में अभी तक नियम ड्राफ्ट किया जाना बाकी है।
बताते चलें कि 29 श्रम कानूनों को हटा कर चार लेबर कोड लागू किये जाएंगे जिसमें वेतन, सामाजिक कल्याण, औद्योगिक रिश्ते और मजदूरों की स्वास्थ और सुरक्षा के नियमों में बदलाव लाए गए हैं।
इन नियमों के तहत काम का समय बढ़ कर 9 से 12 घंटे तक हो सकता है और साथ ही वेतन संरचना बदलने से इन-हैन्ड वेतन कम होने की संभावना है।
इसके अलावा सिर्फ आपात स्थिति में श्रम कानूनों को तब्दील करने के सरकार के अधिकार को बदल कर अब किसी भी समय तबदीली की पूरी छूट दे दी गई है।
सामाजिक सुरक्षा कोड की धारा 96 के तहत सरकार किसी भी श्रम कानून को बदल सकती है या समाप्त कर सकती है। ऐसा करने के लिए सरकार को संसद में विधेयक लाने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।
- मोदी सरकार ने थोपा मज़दूरों पर आपातकाल, न नागरिक अधिकार न अदालती सुरक्षा
- मोदी के लेबर कोड से बढ़ जाएगा काम, घट जाएगा वेतन, ओवरटाइम, ब्रेक के भी नियम बदलेंगे
इन लेबर कोडों से सरकार ने न्यायपालिका से भी ऊपर की हैसियत प्राप्त कर ली है और फाइनल अथॉरिटी बन बैठी है।
इतना ही नहीं जो मामले इन लेबर कोड के अंतर्गत आते हैं उनमें सिविल कोर्ट के दरवाजे मजदूरों के लिए बंद कर दिये गये हैं।
देश भर में मजदूर यूनियन लगातार इन लेबर कोड का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह बहुत लंबे संघर्ष के बाद मजदूरों को मिली नाम मात्र के अधिकारों को भी खत्म करने की साजिश हैं।
मजदूर यूनियन इसका विरोध करने के लिए देशव्यापी हड़ताल भी कर चुके हैं।
उनका कहना है कि किसी भी लेबर यूनियन या मजदूरों से बिना सलाह मशविरा किये बगैर इन नियमों को थोपा जा रहा है।
ममता बनर्जी ने नए लेबर कोड को बंधवा मजदूरी कराने के नियम करार दिया था।
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