भारी दबाव में मोदी सरकार का यू टर्न, वर्किंग ऑवर्स बढ़ाने के फैसले को रद्द करने पर विचार

भारी दबाव में मोदी सरकार का यू टर्न, वर्किंग ऑवर्स बढ़ाने के फैसले को रद्द करने पर विचार

मज़दूरों और यूनियनों की ओर से भारी दबाव के चलते मोदी सरकार अब लेबर कोड के ड्राफ़्ट रूल में काम के घंटों को पहले की स्थिति में रहने देने पर मजबूर हो गई है।

श्रम मंत्रालय वर्किंग आवर्स को लेकर अपने ही बनाए मनमाना रूल में बदलाव करने जा रही है। मीडिया में आई ख़बरों के अऩुसार, काम के घंटे 12 नहीं होंगे और उन्हें आठ घंटे ही रखा जाएगा जिसके बाद ओवरटाइम लागू हो जाएगा।

ओवरटाइम का वेतन, दैनिक वेतन से दोगुना रखा जाएगा। माना जा रहा है कि सरकार नए श्रम कानूनों में बारह घंटे काम लिए जाने के प्रावधान से पैदा हुए असंतोष से डरी हुई है। ये कानून एक अप्रैल से लागू होने हैं।

इकोनॉमिक टाइम्स ने सरकार के एक सीनियर अधिकारी के हवाले से कहा कि बेंगलुरू में एप्पल आईफोन बनाने वाली कंपनी विस्ट्रान में हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद श्रम मंत्रालय के लिए वर्किंग आवर्स को लेकर छाई धुंध को साफ़ करना जरूरी हो गया है।

इस महीने की शुरूआत में विस्ट्रान में मजदूरों का गुस्सा भड़क गया था क्योंकि कंपनी के अधिकारी लंबे समय से उनसे बारह घंटे काम ले रहे थे और उन्हें इसके लिए ओवरटाइम नहीं दिया जा रहा था।

श्रम मंत्रालय ने व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम की स्थितियां कोड (इंडस्ट्रियल सेफ़्टी, आक्युपेशनल हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड) के अंतर्गत एक दिन में आठ घंटे वर्किंग ऑवर्स किए जाने का प्रस्ताव दिया है। इस ड्राफ्ट में यह भी शामिल होगा कि किसी वर्कर से सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम न लिया जाए।

लेकिन नए श्रम क़ानूनों में इसकी अनुमति भी दी जाएगी कि एक दिन में काम के घंटों को बारह तक बढ़ाया जा सकता है। और इसी को लेकर भारी विरोध पनप रहा है।

यह वर्तमान में लागू उस फैक्ट्री एक्ट से अलग होगा, जिसमें काम के घंटों को नौ से लेकर साढे 10 तक बढ़ाया सकता है। इससे वर्करों में यह संदेश गया है कि सरकार एक दिन में बारह घंटे काम का नया कानून लाने जा रही है।

कंपनियां मानकर चल रही हैं कि सप्ताह में 48 घंटे काम लेने की सीमा तय हो जाने पर वे वर्करों से चार दिन बारह घंटे काम लेंगी और सप्ताहांत में तीन दिन की छुट्टी देंगी।

हालांकि सरकारी अधिकारी ने बताया कि हमारे प्रस्ताव के पीछे यह सोच नहीं है। इसके पीछे सोच यह है कि कभी कभी किसी काम की डेडलाइन तय होने पर वह काम को पूरा कराने के लिए वर्करों से बारह घंटे तक काम ले सकती हैं, लेकिन इसे नियम नहीं बना सकतीं।

नए नियमों के मुताबिक, आठ घंटे काम के बाद कंपनियां अगर वर्कर से 15 से 30 मिनट के बीच ज्यादा काम कराती हैं तो उन्हें तीस मिनट का ओवरटाइम देना होगा।

फिलहाल के नियमों में तीस मिनट से कम के समय का ओवरटाइम नहीं दिया जाता।

आरएसएस जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) के पूर्व महासचिव ब्रिजेश उपाध्याय के मुताबिक, ‘काम के घंटों को बढ़ाए जाने की बात भ्रम पैदा करने वाली ही है। सरकार को आठ घंटे के वर्किंग ऑवर्स के बाद के समय और ओवरटाइम में दिए जाने वाले वेतन को लेकर साफ बात करनी चाहिए।’

हालांकि जिन 44 श्रम क़ानूनों को ख़त्म करके चार लेबर कोड बनाए गए हैं, उसमें बीएमएस को छोड़ कर बाकी ट्रेड यूनियनों का भारी विरोध रहा है। अभी पिछले ही दिनों इन्हीं क़ानूनों पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई मीटिंग का ट्रेड यूनियनों ने बहिष्कार कर दिया था।

वर्तमान फैक्ट्री एक्ट 1948 के मुताबिक, 18 या उससे बड़ी उम्र का कोई वयस्क दिन में नौ घंटे से ज्यादा और सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं कर सकता।

एक्ट के सेक्शन 51 के अनुसार, किसी दिन काम के घंटों को साढ़े दस से ज्यादा बढ़ाया नहीं जा सकता।

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Workers Unity Team

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