दो सरकारी बैंकों से अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही मोदी सरकार
निजीकरण के घोड़े पर सवार केंद्र की मोदी सरकार ने फरवरी में पेश आम बजट में दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी। इसके तहत सरकार सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI) और इंडियन ओवरसीज बैंक (IOB) में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही हैं।
खबरों के मुताबिक नीति आयोग ने इसके लिए दो बैंकों ने नाम की सिफारिश की है। लेकिन, सरकार इसके साथ ही बैंक ऑफ इंडिया (BoI) में भी अपनी हिस्सेदारी बेचने पर विचार कर रही है।
मौजूदा शेयर प्राइस के आधार पर सेंट्रल बैंक और इंडियन ओवरसीज बैंक की मार्केट वैल्यू 44,000 करोड़ रुपये है जिसमें आईओबी का मार्केट कैप 31,641 करोड़ रुपये का है।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक नीति आयोग के प्रस्ताव पर अभी विनिवेश (DIPAM) और फाइनेंशियल सर्विसेज विभागों (Banking Division) में विचार किया जा रहा है।
नीति आयोग ने विनिवेश संबंधी सचिवों की कोर समिति को उन सरकारी बैंकों के नाम सौंप दिए हैं, जिनका विनिवेश प्रक्रिया के तहत मौजूदा वित्तीय वर्ष में निजीकरण किया जाना है।
नीति आयोग को निजीकरण के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों और एक बीमा कंपनी का नाम चुनने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में निजीकरण से जुड़ी घोषणा की गई थी।
मोदी सरकार ने हाल में आईडीबीआई बैंक में सरकारी हिस्सेदारी बेचने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। सरकार इस वित्त वर्ष में इस काम के पूरा होने की उम्मीद कर रही है। निजीकरण के लिए नीति आयोग की नजर उन 6 बैंकों पर है जो मर्जर में शामिल नहीं थे। इसमें बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक और सेंट्रल बैंक के अलावा बैंक ऑफ महाराष्ट्र, पंजाब एंड सिंध बैंक और यूको बैंक शामिल हैं।
बैंकों को बेच 1.75 लाख करोड़ जुटाना चाहती है मोदी सरकार
सरकार ने बजट में दो सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी सहित सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों एवं वित्तीय संस्थानों में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 1.75 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाने करने का लक्ष्य रखा है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल में कहा था, ‘जिन बैंकों का निजीकरण किया जाएगा उनके कर्मचारियों के हितों की पूरी तरह से सुरक्षा की जाएगी। उनके वेतन की बात हो अथवा पेंशन सभी का ध्यान रखा जाएगा।’ निजीकरण के पीछे के तर्क पर उन्होंने कहा कि देश में भारतीय स्टेट बैंक जैसे बड़े बैंकों की आवश्यकता है।
हालांकि बैंक कर्मचारियों के संगठनों ने सरकार के इस फैसले पर कड़ा एतराज दर्ज किया है। उनका मानना है कि सरकार का ये निर्णय देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ हजारों कर्मचारियों के हितों के खिलाफ है।
मालूम हो कि बीते फरवरी और मार्च महीने में बैंक कर्मचारी संगठनों ने सरकार के इस निर्णय के विरोध में कई चरणों में हड़ताल की घोषणा की थी, लेकिन सरकार अपने फैसले पर आमदा है।
(नवभारत टाइम्स की खबर से साभार)
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