‘यहां मदद करने वाला कोई नहीं, सब नोच कर खाने वाले हैं’: मुंडका अग्निकांड में मृत गीता देवी का अंतिम संस्कार
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By सत्यवीर सिंह
गीता देवी बिहार में नवादा ज़िले के गाँव झिकरुवा की रहने वाली थीं। उनका जन्म 1980 में हुआ था। वे पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी थीं। वे पढ़ना चाहती थीं लेकिन गरीबी ने इज़ाजत नहीं दी।
उनकी शादी उनकी मर्ज़ी के बगैर शैलेन्द्र से कर दी गई, जिसका अर्थ होता है, अब आप अपने जीवन-यापन के लिए खुद काम तलाशिए।
साल 2012 में गीता देवी अपने पति शैलेन्द्र के साथ काम की तलाश में दिल्ली आ गईं। वे सुल्तानपुरी के पास एक गाँव मुबारकपुर डबास में अनीता जी के घर में किराए पर लिए एक कमरे में रहती थीं।
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2018 में उनके पति शैलेन्द्र बीमार हुए और ईलाज ना हो पाने के कारण वे बच नहीं पाए। गीता देवी अब अकेली हो गईं।
वापस गाँव जाने का विकल्प नहीं था और भूख अकेले इन्सान को भी लगती है।
गीता देवी ने मुंडका में सीसीटीवी कैमरे बनाने वाली फैक्ट्री में सहायक मज़दूर की हैसियत से मज़दूरी शुरू कर दी।
उस फैक्ट्री में 13 मई को आग लग गई। भयानक आग में अपने 27 साथी मज़दूरों के साथ गीता देवी भी जलकर राख हो गईं।
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हर ज़रूरतमंद की मदद करने वाले स्वभाव के कारण, गीता देवी के मोहल्ले में उनकी मकान मालकिन अनीता समेत सभी उनके अपने थे, लेकिन उनका सगा कोई नहीं था।
जिंदा रहने की ज़द्दोज़हद में उनके अपने गाँव जाना, अपने परिवार वालों से उनका मिलना कई सालों तक नहीं हो पाता था।
उनकी राख पुलिस कि निगरानी में 45 दिन से रखी हुई थी। 27 जून को उनकी छोटी बहन मनीता से उनका आनुवंशिक मिलान (DNA matching) हो गया।
बहन मनीता की मौजूदगी में, गीता देवी के राख हुए शरीर को सुल्तानपुरी श्मशान घाट पर कल फिर जलाया गया। उसमें जो लकड़ियाँ खर्च हुईं, वो मदद भारत सरकार से प्राप्त हुई।
अपनी बहन की मौत में बिलख रहीं मनीता से जब कुछ पत्रकारों ने सरकारी मदद के बारे में पूछा, तो उन्होंने ये जवाब दिया, “यहाँ मदद करने वाला कोई नहीं, सब नोच कर खाने वाले हैं।”
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