फैक्ट्री की आग में मौत का मंजर, फेफड़े में जमा धुआं: मुंडका अग्निकांड में जिंदा बचे मजदूर की जुबानी
13 मई को हुए मुंडका अग्निकांड में फंसे मजदूरों को उस दिन एक भयावह मंज़र देखना पड़ा था। हादसे में लगभग 50 लोगों की जान गई और बाकियों ने बहुत ही करीब से मौत से सामना किया।
हादसे में जिंदा बचे मजदूरों में से एक विशाल, जो कि फैक्ट्री में लाइनमैन थे, बताते हैं कि उस दिन फैक्ट्री में मोटिवेश्नल स्पीच चल रही थी और बताया जा रहा था कि कंपनी कितना अच्छा बिजनस कर रही है।
स्पीच शुरू होने के 10 मिनट के भीतर ही बिल्डिंग की बिजली गुल हो गई। लोगों ने गेट खोल कर नीचे जाने की कोशिश की, तो गहरा काला धुआं ऊपर आया।
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धुआं इतना घना था कि लोगों को दिखाई भी नहीं दे रहा था। नीचे फर्स्ट फ्लोर पर जाने पर पता चला कि वहां भयानक आग लगी हुई थी।
उन्होंने बताया, “आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी थी। जहां से आग शुरू हुई, वहीं सारे वर्करों के बैग रखे होते थे। इसके अलावा तेजाब, केरोसीन, आदि भी वहीं रखे जाते थे। जिसके कारण आग फैल गई।”
“नीचे से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। हम वापस ऊपर आए और कांच तोड़ने की कोशिश करने लगे।”
फैक्ट्री जिस बिल्डिंग में चलती थी, उसमें कोई खिड़की नहीं थी। वह हर तरफ से कांच से बंद था।
“हमनें बोतल और चार्जर मार के कांच तोड़ने की कोशिश की, तो कोई असर नहीं हुआ। फिर हमनें उसपर कुर्सी मार कर तोड़ने की कोशिश की। लेकिन उससे भी कोई खास फर्क नहीं पड़ा।”
“फिर हमनें पांच-छह लोगों ने टेबल उठा कर शीशा तोड़ने की कोशिश की। करीब 15-20 मिनट लगे हमें उसे तोड़ने में।”
“इतनी देर तक हमारे मुंह पर काला धुआं जम चुका था और हमें सांस नहीं आ रही थी। शीश टूटने पर हमें सांस लेने में थोड़ी आसानी हुई।”
“नीचे से कुछ लोगों ने रस्सी फेंकी। हमने रस्सी को पकड़ा और लोगों ने उस रस्सी से सीढ़ी बांध दी जिसे हमने ऊपर खींच लिया।”
“लेकिन सीढ़ी से उतरने का भी कोई रास्ता नहीं था। अगर कोई सीढ़ी से उतरने की कोशिश करता तो वैसे ही गिर जाता।”
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“इतनी देर में क्रेन आ गई थी। सही रास्ता खोज कर उस तरफ से क्रेन की मदद से शीशा तोड़ा गया और रस्सी बांधी गई। जिससे फिर धीरे धीरे लोग उतरने लगे।”
फैक्ट्री में ही काम करने वाली काजल ने बताया कि वहां के स्थानीय लोगों ने मजदूरों को पानी पिलाया और संभाला। आग की वजह से रस्सी इतनी गरम हो चुकी थी कि उतरने वालों के हाथ जल चुके थे।
विशाल ने बताया कि हादसे के दो दिन बाद उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाया।
डॉक्टर ने बताया कि उनके फेफड़े में काला धुआं जम चुका था। उन्हें ऐड्मिट कर रात भर लगातार 12 बोतल सेलाइन चढ़ाया गया, तब जाकर उनकी हालत ठीक हुई।
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