अबकी बार खाद्य तेलों पर मार, पेट्रोल-डीजल की महंगाई भी छूटी पीछे

अबकी बार खाद्य तेलों पर मार, पेट्रोल-डीजल की महंगाई भी छूटी पीछे

कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बिगड़े हालात के बीच महंगाई ने आम आदमी का जीना दुश्वार किया हुआ है। पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों के साथ ही सरसों के तेल की कीमत पिछले एक साल में दोगुनी से भी अधिक हो गई है।

पिछले साल 26 मई को जहां सरसों के तेल की कीमत 90 रुपये थी तो वहीं यह आज इसकी कीमत 214 रुपये हो गई है।

दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के अनुसार केडिया एडवाइजरी के अजय केडिया ने बताया कि पिछले साल सरसों की फसल अच्छी रही लेकिन लॉकडाउन से बाजार में सरसों की आवक कम हुई। इससे कीमतों में तेजी लगातार बनी है। चूंकि सरसों का तेल एंटीबॉडी है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी खपत ज्यादा बढ़ी।

इसके विकल्प के तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला पाम ऑइल है, लेकिन इसका इस्तेमाल बायोफ्यूल में शुरू किया गया। इसी तरह उत्पादक देशों में मौसम खराब होने से सनफ्लावर ऑइल में भी तेजी हुई।

लूज ऑइल बेचने पर रोक, पाम और सरसों ऑइल के मिलावट पर रोक से भी कीमतें बढ़ीं हैं।

वहीं देखा गया है कि इस बार के लॉकडाउन में लोगों ने सरसों के तेल का बड़ी मात्रा में स्टोर किया।

IIFL सिक्योरिटीज के कमोडिटी एक्सपर्ट अनुज गुप्ता ने कहा कि दुनियाभर में रिफाइंड ऑइल की कीमतें बढ़ी हैं। इससे सरसों के तेल की खपत बढ़ गई। साथ ही सभी प्रकार के तेल के दाम बढ़े हैं, जिसका दबाव भी सरसों के तेल की कीमतों पर पड़ रहा है।

ऐसे में लोगों को आगे भी महंगाई से राहत की उम्मीद कम ही है, क्योंकि ग्लोबल डिमांड फिलहाल बढ़ रही है।

देश में इस सीजन सरसों का प्रोडक्शन करीब 90-104.27 लाख टन रहने का अनुमान है। हालांकि पुख्ता तौर पर कोई डेटा नहीं है। भारत को सरसों के तेल का न तो आयात करता है और नाही निर्यात। जितनी पैदावार होती है सब देश में खपत हो जाती है।

ऐसा सुनने में आया कि किसानों को पहली बार एमएसपी से ज्यादा पैसा मिला है। सरसों की एमएसपी 4650 रुपये प्रति क्विंटल है लेकिन किसानों ने महीना भर पहले इसे 5000 रुपये प्रति क्विंटल में बेचा। वह भी तब जब सरसों की पैदावार रिकॉर्ड लेवल पर हुई।

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Amit Singh

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