हरियाणा में प्राइवेट नौकरियों में आरक्षण देने का दांव क्या उल्टा पड़ जाएगा?
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By दीपक
खट्टर सरकार ने हरियाणा में प्राइवेट कंपनियों में लोकल लोगों को आरक्षण देने के विधेयक पास कराया है। पांच नवंबर को पारित इस नए क़ानून के अनुसार 75 प्रतिशत नौकरी हरियाणा के लोगों के लिए आरक्षित होगी।
ये आरक्षण वहां लागू होगा जहां 10 से ज़्यादा मज़दूर काम करते हैं, जिनका वेतन प्रति माह 50,000 रुपये से कम है। यह निजी कंपनियों, सोसाइटियों, ट्रस्टों और साझेदारी वाली कंपनियों पर लागू होगा। कंपनियों को तीन महीने में इस क़ानून को लागू करने की स्टेटस रिपोर्ट सरकार को देनी होगी।
एसडीएएम या इससे उच्च स्तर के अधिकारी इसे लागू करने की निगरानी करेंगे और इसके लिए वे कंपनी परिसर का निरीक्षण भी करेंगे। इसे लागू करने वाली कंपनियों पर ज़ुर्माना भी करने का प्रावधान किया गया है।
लेकिन मज़दूरों को बांटने वाले इसे विधेयक से कंपनियां भी खुश नहीं हैं और खट्टर सरकार को एक तरह से अभी से चेतावनी मिलनी शुरू हो गई है।
कंपनियों का लगता है कि बाहरी राज्यों के मज़दूरों को नौकरी देने के लिए राज्य सरकार से मंज़ूरी लेने का मतलब है कि सही समय और ज़रूरत पर वर्क फ़ोर्स का अकाल पड़ सकता है। आईटी ट्रेड एसोसिएशन की संस्था नासकॉम के सदस्य विनोद सूद का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो मजबूरन कंपनियों को उन राज्यों में शिफ़्ट होना पड़ेगा जहां ऐसा कोई लाल फीताशाही वाला क़ानून नहीं है।
इस समय राज्य में बेरोज़गारी की दर 35.5 प्रतिशत की ऊंचाई पर जा पहुंची है जबकि एक साल पहले ही राज्य में हुए विधानसभा चुनावों में जेजेपी के नेता दुश्यंत चौटाला ने अपने चुनावी वादे में 75% आरक्षण देने की बात कही थी।
एनडीटीवी के अनुसार, दुष्यंत चौटाला का कहना है कि इस क़ानून को लाने से पहले निजी कंपनियों को भरोसे में ले लिया गया था। लेकिन ऐसा लगता है कि खट्टर और दुष्यंत चौटाला की सरकार का ये दांव उल्टा पड़ने वाला है।
बेतुकी और अपमानजक दलील
खट्टर-चौटाला सरकार ने आरक्षण देने के पीछे जो कारण गिनाए हैं वो और अपमानजक हैं।
इसमें कहा गया है कि ‘सभी समस्याओं का कारण बाहरी मज़दूर हैं। खट्टर सरकार की दलील है कि दूसरे राज्यों के मज़दूरों की बड़ी संख्या कम वेतन पर कार्य करने को तैयार रहती है, जिससे रोज़गार के लिए प्रतिस्पर्धावश स्थानीय आधारित संरचना, मूलभूत ढांचे व आवास संबंधी सुविधाओं पर उल्टा असर पड़ता है।’
दलील दी गई है कि, ‘मलिन बस्तियों का प्रसार होता है। इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं बढ़ती हैं। प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में रहने वालों की आजीविका का गुणवत्ता प्रभावित होती है।’
केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें लगातार ही सरकारी नौकरियों को समाप्त करती जा रही हैं। भारत के संसाधनों को पूंजीपतियों को बेचती जा रही है। शासकों की ये विभाजनकारी नीति पुरानी है जो मज़दूरों को आपस में बांटने का काम करती । महाराष्ट्र के बाल ठाकरे का इतिहास सभी जानते हैं, जिसने स्थानीय मज़दूरों और बाहरी मज़दूरों के बीच खाई पैदा कर लम्बे समय तक राज्य पर शासन किया और उनकी पार्टी शिवसेना अभी भी सत्ता में है।
आज हरियाणा की संघी सरकार फिर इसी हथियार का इस्तेमाल कर रही है और वह भी हिटलरी तरीके के।
हिटलर ने जर्मनों को अच्छा बताकर यहूदियों को समस्याओं का कारण बताया और मनोहर लाल खट्टर की सरकार भी यही काम कर रही है, जो कि शर्मनाक और घातक है।
आज सरकारों को ऐसे ही शर्मनाक काम करने को बचे हैं क्योंकि आज की दमनकारी सरकारों के लिए जनता को आपस में बांटना ही मुख्य लक्ष्य है ताकि पूंजीपतियों की सेवा की जा सके।
क्या मज़दूर वर्ग हरियाणा की खट्टर सरकार की इस चलबाज़ी को समझ रहा है?
(मज़दूर पत्रिका नागरिक से साभार, संपादन के साथ)
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