1 अप्रैल से लागू होने जा रहा लेबर कोड, राज्य सरकारें भी तैयार: आइए जानें कैसे बंधुआ हो जाएगा मज़दूर- भाग:1
लॉकडाउन के दौरान पारित कराए गए लेबर कोड 1 अप्रैल से पूरे देश में लागू होने जा रहे हैं
तमाम विरोधों के बावज़ूद केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने मजदूर विरोधी 4 लेबर कोड के नियमों को अंतिम रूप दे दिया है।
पूँजीपतियों के हित में राज्य भी नियमों को अंतिम रूप दे चुकी हैं। जल्द ही इन्हें लागू करने के लिए अधिसूचित कर दिया जाएगा।
एक अप्रैल से होगा लागू
चारों लेबर कोड को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद अधिसूचित किया जा चुका है। लेकिन इन्हें अमल में लाने के लिए नियमों को भी अधिसूचित किए जाने की जरूरत है।
श्रम सचिव अपूर्व चंद्रा ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा कि हमने चारों लेबर कोड को लागू करने के लिए जरूरी नियमों को अंतिम रूप दे दिया है।
हम नियमों को अधिसूचित करने के लिए तैयार हैं। राज्य चारों लेबर कोड के तहत नियमों को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं।
श्रम मंत्रालय ने चारों लेबर कोड को एक साथ अप्रैल से लागू करने की योजना बनाई है।
सारी परम्पराएं तोड़ राज्य सरकारें भी तैयारी में जुटीं
अबतक की परंपरा के तहत केंद्र सरकार द्वारा कोई भी क़ानून पारित कराने के बाद राज्य सरकारें उस अनुरूप क़ानून बनाती हैं। लेकिन पूँजीपतियों का हित सरकारों के लिए इस कदर आज सर्वोपरि हो चुका है कि सारी परंपराओं को तोड़कर ताबड़तोड़ राज्य सरकारें भी ड्राफ्ट नियमों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया में हैं।
मज़दूरों को पंगु बनाने वाली लेबर कोड
- मज़दूरी पर श्रम संहिता
- औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता
- स्वास्थ्य और कार्य स्थल की दशाओं की श्रम संहिता
- सामाजिक व व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता।
देशव्यापी विरोधों के बीच पारित
पूरे देश में मज़़दूर संगठनों द्वारा लगातार विरोध और कोरोना महामारी के बावजूद देशी-बहुराष्ट्रीय पूँजीपतियों के हित में मोदी सरकार ने मानसून सत्र में जब विपक्ष संसद में नहीं था तब बिना किसी चर्चा के तीन लेबर कोड पास करा लिए, जबकि मज़़दूरी से जुड़ा कोड 8 अगस्त 2019 को ही पारित हो चुकी है और नियमावली भी पारित हो चुकी है।
अब बाकी तीन कोड की नियमावली भी केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी अन्तिम रूप दे चुकी है। केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी हठधर्मिता के साथ एक अप्रैल से चारो मज़़दूर विरोधी लेबर कोड लागू करने वाली है।
“हायर एण्ड फायर” मालिकों की माँग
ये पहले से ही सीमित श्रम क़ानूनी अधिकारों को भी ख़त्म करके मज़़दूरों को पूर्णतः बंधुआ बना देगी। इसका मूलमंत्र है- ‘‘हायर एंड फायर’’ यानी जब चाहे रखें जब चाहे निकाल दें!
दरअसल, श्रम क़ानूनी अधिकारों को ख़त्म करने का दौर 1991 में कथित आर्थिक सुधारों के साथ चल रहा है।
अटल बिहारी सरकार के दौर में श्रम क़ानूनों को पंगु बनाने के लिए द्वितीय श्रम आयोग की रिपोर्ट आई थी, तब व्यापक विरोध के कारण यह अमली रूप नहीं ले सका था। लेकिन बाजपेई से मनमोहन सरकार के दौर तक धीरे-धीरे यह लागू होता रहा।
इसे एक झटके से ख़त्म करने का काम मोदी सरकार ने तेज किया। प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार ने अपनी दूसरी पारी में इसे अमली जामा पहनाया और इसके लिए सबसे मुफीद समय उसने कोरोना महामारी के वैश्विक संकट काल को चुना।
इस श्रृखंला के अगले अंक में हम पढ़ेंगे की नये लेबर कोड क्यों खतरनाक हैं।
( मेहनतकश की खब़र से साभार)
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