प्राइवेट ट्रेनों में किराए की कोई सीमा नहीं होगी, कंपनी जब चाहे जितना चाहे बढ़ाए
निजी हाथों में बेची गईं पैसेंजर ट्रेनों के किराये की कोई सीमा नहीं होगी और ऑपरेटरों को मनमर्जी किराया बढ़ाने की छूट होगी, इसके लिए उन्हें सरकार से भी मंज़ूरी लेने की इजाज़त नहीं होगी।
देश में 109 रूटों पर 151 ट्रेनों को चलाने के लिए जारी किए गए टेंडर के संदर्भ में निजी कंपनियों के सवालों के जवाब में रेलवे मंत्रालय ने शुक्रवार को ये कहा है।
इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के अनुसार, निजी कंपनियों ने इस टेंडर के संदर्भ में सरकार से कुछ जानकारी मांगी थी।
टेंडर के अनुसार, ट्रेनों को 35 साल के लीज़ पर निजी कंपनियों को दिए जाने हैं।
रेल मंत्रालय ने कहा है कि इन निजी ट्रेनो का किराया बाज़ार के हवाले रहेगा और इसमें बढ़ोत्तरी के लिए किसी की मंज़ूरी लेने की ज़रूरत नहीं रहेगी।
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कंपनियां किराया तय करेंगी, टिकट बेचेंगी
अख़बार ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि इस प्रावधान को क़ानूनी रूप से लंबे समय के वैध बनाने के लिए रेलवे को कैबिनेट से मंज़ूरी लेनी होगी या फिर संसद से पास कराना होगा क्योंकि रेलवे ऐक्ट के तहत केवल मंत्रालय या केंद्र सरकार ही पैसेंजर ट्रेनों का किराया तय कर सकती है।
अधिकारियों का कहना है कि किराए की कोई सीमा न होने और परियोजना की लागत में अत्यधिक खर्च के कारण किराए में बेतहाशा बढ़ोत्तरी की आशंका जताई जा रही है।
इन प्राइवेट ट्रेनों का टिकट भी खुद कंपनियां अपनी वेबसाइट के मार्फ़त बेचेंगी लेकिन इसे पैसेंजर रिज़र्वेशन सिस्टम से जोड़ दिया जाएगा।
जिन ट्रेनों को रेलवे प्राइवेट कंपनियों के देना चाहता है उसके तकनीकी पक्ष पर हालांकि अभी भी असमंजस बरकरार है।
मसलन निजी कंपनियों ने पूछा है कि रेलवे कैसे ये उम्मीद करता है कि प्राइवेट ट्रेनों की स्पीड 160 किमी प्रति घंटे की होगी जबकि इस रफ़्तार के लिए ट्रैक तैयार नहीं हैं।
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पटरी सरकारी, ट्रेन कंपनियों की
इस पर रेलवे का जवाब बहुत हास्यास्पद आया है, “इस प्रावधान में ऐसा कुछ नहीं है जिसे समझाने की ज़रूरत पड़े. इसमें कोई बदलाव नहीं है।”
अभी तक रेलवे ने प्राइवेट कंपनियों के लिए रोलिंग स्टॉक के बारे में कोई मानदंड भी नहीं बताए हैं, जो इन कंपनियों को लाने हैं।
इस बारे में पूछे गए तमाम सवालों पर मंत्रालय का कहना है कि विशेष ज़रूरतों के बारे में और मानकों के बारे में जल्द ही बताया जाएगा।
किसी दुर्घटना के समय ज़िम्मेदारी किसकी होगी इस बारे में भी रेलवे बात को गोल कर गया है।
ये लगभग तय हो गया है कि मोदी सरकार रेलवे मंत्रालय के खर्च पर बनी पटरियों, स्टेशनों, सिग्नलिंग सिस्टम और तमाम तकनीकी ढांचे को इस्तेमाल करने की इजाज़त निजी कंपनियों को देने जा रही है लेकिन इन कंपनियों की ज़िम्मेदारी तय नहीं कर रही है।
उधर रेलवे की ट्रेड यूनियनें निजीकरण की इस प्रक्रिया का विरोध कर रही हैं लेकिन अभी तक उनकी तरफ़ से कोई ठोस प्रतिरोध की कार्यवाही का आह्वान नहीं किया गया है।
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