नौकरी करते 17 साल हो गए, पर वो नए के नए ही रहे; नोएडा सफाई कर्मचारियों के उत्पीड़न की कहानी
By प्रतीक तालुकदार
नोएडा विकास प्राधिकरण के लगभग 3000 सफाई कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर हड़ताल सोमवार को आठवें दिन भी जारी रही, लेकिन अथॉरिटी की तरफ से उनकी सुध लेने कोई नहीं पहुंचा।
चिलचिलाती धूप और सोमवार के 44 डिग्री सेल्सियस तापमान में वर्करों का संघर्ष जारी रहा जहां ABSMC के पांच नेता पिछले आठ दिनों से भूख हड़ताल कर रहे हैं।
सेक्टर 6 में नौएडा विकास प्राधिकरण के ऑफिस के सामने धरने पर बैठी अखिल भारतीय सफाई मजदूर कॉन्ग्रेस (ABSMC) महिला अध्यक्ष बबली देवी ने बताया कि उनकी प्रमुख मांगें हैं कि कॉनट्रैक्ट सफाई कर्मचारियों का वेतन बढ़ाया जाए और उन्हें नौकरी पर पर्मानेंट किया जाए।
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उन्होंने कहा कि उनके साथ काम करने वाली ऐसी बहुत सी महिला वर्कर थीं जिन्होंने 30-40 साल काम किया लेकिन पक्की नौकरी की आस में संघर्ष करते करते उनकी मौत ही गई। आज उनके बच्चे भी कॉनट्रैक्ट बेसिस पर काम करने को मजबूर हैं।
सेक्टर 62 में साफ सफाई करने वाले कर्मचारी मनीष ने बताया कि उन्होंने 2005 से नौकरी करनी शुरू की थी, लेकिन आज 17 साल बाद भी उनकी नौकरी पक्की नहीं हुई।
हर साल नया टेन्डर निकाला जाता है और हर साल पुराने कर्मचारियों की फिर से “नयी” भर्ती होती है।
फिलहाल सफाई कर्मचारियों का वेतन 14,600 रुपए प्रति महीने है, जो कि 2020 की हड़ताल के पहले 11,600 रुपए हुआ करता था, और उससे भी पहले 9200 रुपए था।
उस हड़ताल के दौरान प्रशासन ने सात महीनों के बाद सफाई कर्मचारियों की मांगों की सुनवाई की थी।
हालात ये हैं कि सफाई कर्मचारियों को कोई सेफ़्टी का सामान तो दूर, मास्क और ग्लव्स भी नहीं दिए जाते हैं।
लाठी चार्ज की धमकी का आरोप
कर्मचारियों का आरोप है कि नोएडा विकास प्राधिकरण की CEO ऋतु माहेश्वरी ने “नीची जाति” के लोगों से बात करने से मना कर दिया है और प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज करवाने की धमकी दी है।
पिछले साल पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे सफाई कर्मचारियों पर से डंडे बरसाए थे और कुछ प्रदर्शनकारियों को जेल में बंद कर दिया था।
कई महिलाओं को बेरहमी से लाठी से पीट कर गहरे नाले में गिरा दिया गया था और कुछ लोगों की हड्डियां भी टूटी थीं।
ABSMC सलाहकार ब्रिजपाल चौटाला का कहना था कि जितना काम वर्करों से लिया जाता है, उसके बराबर उन्हें वेतन नहीं मिलता है।
उन्होंने कहा जिस तेजी से महंगाई परवान चढ़ रही है, उसी दर से वेतन में भी बढ़ोतरी होनी चाहिए।
“चैन से खाना भी नहीं खाने देते”
कर्मचारियों ने बताया कि ठेकेदार और अफसर उन्हें चैन से खाना भी नहीं खाने देते।
उनकी शिफ्ट सुबह 7 बजे शुरू होती है और दोपहर 3 बजे तक चलती है, जिसमे 11 से 12 बजे तक लंच ब्रेक होता है।
लेकिन अक्सर किसी भी अधिकारी के आने की खबर मिलते ही इनसे कहा जाता है कि खाना पीना छोड़ कर काम पर लग जाओ, इसके बावजूद कि अपने हिस्से काम वे पहले ही पूरा कर चुके हों।
मजदूरों का कहना था कि ज्यादातर दिन ऐसा ही होता है कि वो लंच टाइम में नहीं कर पाते और एक बार में छुट्टी होने पर घर जा कर शाम 4 बजे खाते हैं।
कर्मचारी मंगु का कहना था कि इतनी देर इंतज़ार करने के बाद भूख ही मर जाती है।
हाथ पैर धोने लिए पानी नहीं
अगर कभी समय पर खाना खाने का मौका भी मिलता है, तो उन्हें अपने काम करने की जगह पर, यानी कि रोड पर ही खाना पड़ता है, क्यूंकी कर्मचारियों के लिए कोई स्टोर नहीं बनाया गया है।
कर्मचारी आशा देवी ने बताया कि सुबह से काम करने के बाद दोपहर में लंच के समय हाथ पैर धोने के लिए पानी या साबुन भी मुहाय्या नहीं कराया जाता है।
सारे शहर का कचरा साफ करने के बाद कर्मचारी को अपना खाना साफ हाथों से खाना भी नसीब नहीं होता है।
धूप हो चाहे बारिश, उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है। जरूरत पड़ने पर वो पेड़ के नीचे सर छुपाने या सड़क पर ही भीगने या झुलसने को मजबूर हैं।
महिलाएं कहां जाएं टॉयलेट?
महिला कर्मचारियों के लिए टॉयलेट की कोई व्यवस्था नहीं है जिससे उन्हें अपनी 8 घंटे और अक्सर उससे भी ज्यादा की ड्यूटी के दौरान बहुत परेशानी होती हैं।
कर्मचारियों की मांग है कि उनके लिए स्टोर बनाए जायें जहां टॉयलेट हों, कर्मचारी हाथ पैर धो सकें और कपड़े बदल सकें।
बबली देवी का कहना था कि इस रिकार्डतोड़ गर्मी में कई कर्मचारियों को धूप में काम करते समय चक्कर आ रहे थे, उल्टियाँ हो रही थीं, लेकिन अथॉरिटी की तरफ से कोई पानी पूछने वाला भी नहीं था और ना ही उन्हें कोई स्वास्थ सुविधा दी गई।
कर्मचारियों ने कहा कि समय समय पर पब्लिसिटी के लिए अधिकारी किसी दिन उन्हें तेल साबुन दिया जाता है और फोटो खींच कर साल भर चलाई जाती है।
(This story is supported by Notes to Academy))
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