ओडिशा: क्या सच में खत्म हो जाएगी ठेका प्रणाली?
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने शनिवार को ऐलान किया कि राज्य से ठेका प्रणाली को समाप्त किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अब सरकार के अधीन 57000 संविदा कर्मचारियों को परमानेंट कर दिया जाएगा और आगे से राज्य सरकार में ठेका कर्मियों की भर्ती नहीं की जाएगी।
ଆଜି ମୋ ପାଇଁ ସବୁଠୁ ବଡ଼ ଖୁସିର ଦିନ। ରାଜ୍ୟରେ କଣ୍ଟ୍ରାକଚୁଆଲ୍ ନିଯୁକ୍ତି ବ୍ୟବସ୍ଥା ସବୁଦିନ ପାଇଁ ବନ୍ଦ କରିବାକୁ ନିଷ୍ପତ୍ତି ହୋଇଛି। ବହୁତ ଦିନଧରି ମୁଁ ଏ ଦିନକୁ ଅପେକ୍ଷା କରିଥିଲି। ଓଡ଼ିଶାରେ କଣ୍ଟ୍ରାକଚୁଆଲ୍ ନିଯୁକ୍ତିର ଯୁଗ ଶେଷ ହୋଇଛି। ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ସମସ୍ତେ ଆହୁରି ନିଷ୍ଠାପର ହୋଇ ଲୋକଙ୍କ ସେବାରେ ନିଜକୁ ନିୟୋଜିତ କରିବା। pic.twitter.com/4dcIUmlMpS
— Naveen Patnaik (@Naveen_Odisha) October 15, 2022
ट्रेड यूनियन काउंसिल ऑफ़ इंडिया (TUCI) ने राज्य सरकार की इस घोषणा का स्वागत करते हुए इसे एक सकारात्मक कदम कहा है, लेकिन साथ ही उसका कहना है कि यह महज 2013 में सरकार द्वारा उठाये गये एक अवैध और अन्यायपूर्ण कदम में सुधार मात्र है, और इस घोषण का ये मतलब नहीं है कि सरकारी विभागों में ठेका प्रथा पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी।
ये भी पढ़ें-
- ठेका मज़दूरों से गुलामों की तरह काम लिया जाता हैः औद्योगिक ठेका मज़दूर यूनियन
- दिल्ली में केजरीवाल ठेका मज़दूरों को क्यों नहीं कर रहे परमानेंट?
टीयूसीआइ के ओडिशा राज्य सचिव सब्यसाची महापात्रा द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि, 2014 में ओडिशा सरकार ने ‘ओडिशा ग्रुप बी पोस्ट्स (कॉन्ट्रेक्चुअल इंप्लॉयमेंट) रूल्स, 2013 को लागू कर भविष्य में इन पदों पर सभी नियुक्तियाँ अनुबन्ध के आधार पर करने का प्रावधान कर दिया था।
इन पदों के लिए ‘आउटसोर्स’ किए गए अस्थायी लोगों को नियमित वेतनमान से भी कम भुगतान पर रखा गया और उनके लिए किसी तरह के भत्ते का (महंगाई, आवासीय, चिकित्सा आदि) आदि का कोई प्रावधान नहीं किया गया। अलबत्ता इन पदों पर नियुक्ति के लिए आरक्षण की नीतियों, अनुशासन के नियम और अवकाश आदि नियमों को पूर्ववत रखा गया और उनके मानदेय (वेतन नहीं) में 10 प्रतिशत की सालाना दर से वृद्धि करने की बात जरूर कही गई।
नियमित नियुक्ति के संदर्भ में अनुबन्ध पर काम कर रहे कर्मियों को केवल आयु सीमा में छूट दी गई। इसके अतिरिक्त नियमित सेवा में उन्हें लेने के लिए उन्हें कम से कम छह वर्ष तक अनुबन्ध पर काम करना ज़रूरी कर दिया गया।
दूसरे शब्दों में, जिन पदों को परमानेंट नौकरी से भरा जाना था, उनपर कांट्रैक्ट के आधार पर, और कम भुगतान पर काम करने वालों को भर्ती करने का प्रावधान किया गया।
जिसमें भर्तियों का पालन किये बिना ही पहले से ही ठेका पदों पर कार्यरत व्यक्तियों और “ह्यूमन रिसोर्स सेवा एजेंसियों” के माध्यम से नियोजित व्यक्ति भी आयु में छूट के साथ इन पदों के लिए आवेदन कर सकते थे।
ये भी पढ़ें-
- दिल्ली सरकार ने बढ़ाया न्यूनतम वेतन, 1 अक्टूबर से लागू
- तिरुपुर ग्राउंड रिपोर्टः कैंप कुली प्रथा, सुमंगली योजना और आत्महत्याओं के पहाड़ पर मुनाफे की मीनारें
TUCI के मुताबिक अब सरकारी क्षेत्र में होने वाली भर्तियों में बस इतना ही किया गया है कि “संविदा” कर्मचारियों के साथ नियमित भर्ती प्रक्रिया के बाद रिक्त पदों को भरने की इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया है। जहां कोई रिक्त पद मौजूद नहीं है और मज़दूरों की आवश्यकता है, वहां संविदा कर्मचारी मौजूद रहेंगे।
यह केवल इतना है कि अब तक अवैध रूप से स्थायी रिक्त पदों को भरा जा रहा था, नियमित भर्ती प्रक्रिया का पालन करते हुए, कृत्रिम रूप से नामित “संविदा” श्रमिकों के साथ, अब यह अवैधता समाप्त हो जाएगी।
वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें
(वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर सकते हैं। टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)