कोरोना पर फ़ेसबुक पोस्ट किया तो रंगकर्मी को हिरासत में ले लिया उत्तराखंड पुलिस ने, धमकी देकर छोड़ा

कोरोना पर फ़ेसबुक पोस्ट किया तो रंगकर्मी को हिरासत में ले लिया उत्तराखंड पुलिस ने, धमकी देकर छोड़ा

By अजीत साहनी

राजनैतिक चेतना तो ख़ैर पूरे समाज में है ही नहीं , प्रगतिशील , डेमोक्रेटिक , वाम और समाजवादी हिरावल दस्तों की छोटी छोटी कोशिशें अंततः धार्मिक उन्माद की आँधी के बीच धूल धूसरित हो गई !

विगत 35 सालों से मैं रंगकर्म से जुड़ने के बाद धीरे धीरे समाज की तहों को बारीकी से समझता रहा , और प्रगतिशील थियेटर से जुड़ा रहा, समझता रहा !

और इस दो दशक से मैं भी महसूस करता रहा कि देश में विज्ञान का जितना भी प्रसार हो रहा है , वैज्ञानिक चेतना उसी रफ़्तार से घटी है !

अस्सी के दशक में दूरदर्शन ने एक क्रांतिकारी विजुवल सूचनाओं की शुरुआत के साथ साथ जितने भी सीरियल बनाए, वे सभी बेहतर जानकारियों के साथ , विश्व की और देश की बेहतरीन कहानियां , साहित्य के साथ वैज्ञानिकी समझ से ओतप्रोत थे !

फिर पतन का दौर शुरू हुआ , तो सास बहू सरीखे सीरियल शुरू हुए , लाउडस्पीकर भी भजन , मस्जिदों , मंदिरों और गुरुद्वारों ने हथिया लिए।

सिनेमा का परदे पर भी फूहड़ता और पोंगापंथी जुबलियाँ मनाने लगीं।

और इंतेहा ये है कि विगत छह साल की मोदी सत्ता ने देश को वहां लाकर खड़ा कर दिया है कि जहां वैज्ञानिक चेतना वाला कोई अभियान , कोई सोशल मीडिया की पोस्ट , कार्टून , व्यंग्य , लघु फ़िल्म या लेख आपको देशद्रोही की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दे , तो कोई अचरज नहीं।

अंधभक्ति अपनी चरम सीमा को छू चुकी है किंतु ये यहीं पर रुकने का नाम नही ले रही , संबको मालूम है कि वर्तमान सरकार किस एजेंडे को लेकर सत्ता में आई है।

इसको इतिहास देर में उगलेगा , किन्तु हमारे देश की सांस्कृतिक विविधता , समृद्धता रसारल में जा चुकी होगी।

अब महंगा पेट्रोल , गैस सिलेंडर , प्याज वगैरह कोई मुद्दा नहीं रहा , बेरोजगारी , किसान समस्या समेत देश की मूल समस्याएं हाशिये पर जा चुकी !
लोगों में मजहबी अफ़ीम की फुल डोज़ गहरा असर कर रही है , उससे उबरने में लंबा समय लगेगा।

मैं रंगकर्म के साथ सोशल मीडिया में लिखता रहा हूँ , किन्तु विगत कई सालों से मैं इन सत्ताधारियों समेत इनके भक्तों , लगुवे भगवे , दलाल पत्रकारों की आंख में चुभता कंकर रहा हूँ।

मेरी पिछली फेसबुक id की फॉलोइंग 60000 के लगभग थी , और मुझे लगता है कि भारत में फेसबुक के अधिकारी भी मोदी सरकार के एजेंडे पर सधी हुई है , पूरी तरह नफ़रत फैलती, दंगे भड़काने वाली id, पेज, ग्रुप की शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं की जाती, किन्तु मेरी id बंद कर दी जाती है  और साठ से ऊपर मेल किये जाने के बावजूद id परमानेंट डिसेबल कर दी जाती है।

किन्तु हम लिखते रहेंगे, के अभियान के साथ मेरी इस id पर भी फॉलोइंग बढ़ ही रही है। मैं दो तरह की पोस्ट अधिकतर लिखता हूँ।

व्यंग्य मेरी विधा है और इंफोर्मेटिव , तथ्यपरक , राजनैतिक और ख़ासकर में धार्मिक कुरीतियों पर लिखता रहा हूँ।

तीन साल पहले मैंने नवमी के दिन एक व्यंग्य पोस्ट लिखी थी, जिसमें मैंने उद्वेलित होकर तब लिखा, जब नवरात्रि में चार जगह से माता के जागरण में ही बलात्कार की ख़बर आई।

मैनें लिखा था, कि माता की शक्ति तब कहां गई जब उसकी बेटियों के साथ बलात्कार हो रहा था?

इस पोस्ट पर भीड़ ने मेरा घर घेर लिया, पुलिस ने हिरासत में ले लिया और दबाव में मुझे वो पोस्ट हटानी पड़ी।

अभी दो माह पहले भी नगर कोतवाल ने मुझे कोतवाली में बुलाकर मुझे मेरी एक पोस्ट, जिसमें मैंने पाकिस्तान मुर्दाबाद वाले भक्त अभियान के ख़िलाफ़ लिखा था कि जिस मुल्क में भी इंसान बसर करते हैं, वो मुल्क मुर्दाबाद कैसे हो सकता है।

इसपर कोतवाल ने मुझे उस पोस्ट को हटाने की सलाह दी, मैंने पोस्ट नहीं हटाई।

अभी 31 मार्च को मीडिया द्वारा तबलीगी ज़मात आयोजक मरकज़ के बारे में भ्रामक , भड़काऊ ,तथ्यहीन ख़बरों के ख़िलाफ़ मैंने एक व्यंग्य सुबह 5 बजे लगाया।

जिसमें मैंने लिखा कि मरकज़ में जमाती छुपे हैं और तिरुपति और गोल्डन टेम्पल में लोग फंसे हैं, जो पोस्ट पूरे देश में वायरल हुई और उसमें कई लोगों ने अपने अपने तरह से इसे लिखा।

साथ ही एक पोस्ट और थी जिसमें उस जमात का दिनांक समेत ब्यौरा था, स्थानीय पुलिस प्रशासन को नागावार गुजरी।

दोपहर 1 बजे मेरे पास थानेदार रामनगर का फोन आया और मुझ पर मुकदमा लगाने की धमकी दी गई।

उसके दस मिनट बाद मुझे कोतवाली में हिरासत में ले लिया गया और धमकी दी गई कि आइंदा इस तरह की पोस्ट किया तो मुकदमा दर्ज किया जाएगा।  मुक़द्दमा लिख देंगे।

ये सरासर लिखने और बोलने की आज़ादी पर हमला है , ये वो दौर है जहां बुद्धिजीवी होना, लोगों को अपने हक़ के लिए जागरूक करना, वैज्ञानिक चेतना का विस्तार करना देशद्रोह बन जाता है।

ये अघोषित आपातकाल है। बल्ली सिंह चीमा ने बहुत पहले लिखा आज मौजूं है-

इस व्यवस्था के ख़तरनाक मशीनी पुर्ज़े
जिसको रौंदेंगे वही शख़्स दुहाई देगा
अब ये थाने ही अदालत बनेंगे बल्ली
कौन मुजरिम है जजमेंट सिपाही देगा।

(लेखक उत्तराखंड के जाने माने रंगकर्मी हैं।)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं।)

Workers Unity Team