एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी में कोरोना से एक की मौत, 90 फीसद यहां पहले ही सांस के मरीज

एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी में कोरोना से एक की मौत, 90 फीसद यहां पहले ही सांस के मरीज

By आशीष सक्सेना

खबर आई है कि मुंबई स्थित एशिया की सबसे बड़ी झोपड़पट्टी धारावी में भी कोरोना दाखिल हो गया और एक की मौत हो गई। बताया जा रहा है कि संक्रमण से मरने वाले के परिवार के सात लोगों को झोपड़पट्टी से अलहदा कर दिया गया है।

हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि उन्हें किसी कारंटाइन सेंटर में रखा गया है या फिर घर के अंदर हो कारंटाइन किया गया है।

मुंबई की चमक दमक को तराशने वाले देशभर से आई श्रमिक आबादी धारावी की घनी झोपड़पट्टी वाली घनी बस्ती में बरसों से रह रही है। लगभग 600 से भी ज्यादा हेक्टेयर में फैले इस इलाके में तकरीबन 12 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं।

फिलहाल यहां कोरोना संक्रमण की आशंकाओं से मुंबई के बंगलों में भी खौफ है, क्योंकि यहां के बगैर उनका सुख पूरा नहीं होता। हालांकि यहां के हालात पहले ही इतने बदतर हैं, कि कोराना से समस्या छोटी ही महसूस होगी।

कोरोना भले ही गंभीर श्वसन रोग को फैलाता है, लेकिन यहंां की 90 फीसद आबादी पहले ही गंभीर सांस रोगों से घिरकर मरने की कगार पर हैं और मरते ही रहते हैं।

यही नहीं, यहां के 41.6 प्रतिशत लोगों में पाचन और 37.8 प्रतिशत को दर्द की समस्याएं जकड़े हैं। मुंबई में अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (आईआईपीएस) के सर्वेक्षण से ये बात सामने आ चुकी है।

इसी सर्वे में ये भी पता चला कि 20.7 लोगों को आंख संबंधी, 12.8 को ब्लड प्रेशर व दिल की बीमारी, 12.5 प्रतिशत को त्वचा और 9 प्रतिशत को शुगर की बीमारी भी है।

सर्वे पर आधारित अध्ययन ये भी बताता है कि मौसमी फ्लू, सर्दी-खांसी और दस्त आम बीमारियां हैं। इसके बावजूद इतनी बड़ी आबादी के लिए सार्वजनिक अस्पताल भी नहीं हैं, उन्हें कामचलाऊ इलाज या फिर दूर महंगे इलाज के लिए जूझना होता है, जो उनके लिए दुश्वारियों को बढ़ाने वाला है। नमूना सर्वे में 1452 परिवारों को शामिल किया गया।

अध्ययन रिपोर्ट में ध्वनि प्रदूषण को 46.6 प्रतिशत, दुर्गंधयुक्त वातावरण को 72.7 प्रतिशत और धुआं को 32.8 प्रतिशत जिम्मेदार ठहराया गया।

इसका उल्लेख इस तरह किय गया, कचरे के डिब्बे हैं, जो आमतौर पर आबादी के बीच में हैं, सड़े हुए कूड़े में मक्खियों के झुंड भिनभिनाते रहते हैं।

कूड़ा निस्तारण में नगरपालिका के बंदोबस्त अनियमित और असंतोषजनक है। कचरा निपटान की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है और मानसून के दौरान जानलेवा जलजमाव होता है।

खाना पकाने के लिए आमतौर पर रसोई गैस का प्रयोग होता है, लेकिन ज्यादातर घरों में अलग रसोई और चिमनी की सुविधा नहीं है। यहां 76 प्रतिशत लोग एलपीजी, 48 प्रतिशत केरोसिन और 14 प्रतिशत लकड़ी या गोबर के कंडो का उपयोग करते हैं। सामुदायिक शौचालयों की सफाई न के बराबर है, 83.5 प्रतिशत गंदगी से बजबजाते हैं।

इसके बावजूद सामुदायिक शौचालय का उपयोग को प्रतिव्यक्ति 76 रुपये औसत मासिक खर्च है। जबकि 85 प्रतिशत सामुदायिक शौचालयों में नियमित पानी की आपूर्ति का इंतजाम नहीं है। लोगों को अपने साथ पानी लाना पड़ता है। बच्चों और बुजुर्गों के खासा तकलीफदेह है, जिन्हें शौचालय तक पानी पहुंचाने के लिए किसी के साथ जाना पड़ता है। हाथ धोने और नहाने की भी सुविधा नहीं है।

सोचने की बात है, ऐसे हालात में जीना और मरना लगभग एक ही जैसा बना हुआ है और मौत होने को किसी खास वायरस के होने का इंतजार नहीं है। कोरोना को लेकर सक्रिय सरकारों और प्रशासन को इस बदहाली को दुरुस्त करने की कोई चिंता नहीं, बल्कि कोरोना से एक मौत उसके संक्रमण का खतरा सता रहा है।

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ashish saxena