एक जॉर्ज फ़्लॉयड ने अमेरिका में बग़ावत खड़ी कर दी, भारत में हज़ारों जॉर्ज सड़कों पर मर रहे
By सुशील मानव
इंडिया हो या अमेरिका किसी व्यवस्था में कमज़ोर वर्गों, ग़रीबों और मजदूरों के लिए सांस लेने की जगह क्यों नहीं है?
25 मई को जॉर्ज फ्लॉयड की मिनियापोलिस की पुलिस द्वारा हत्या कर दी गई क्योंकि जॉर्ज फ्लॉयड काले समुदाय के थे जोकि मेहनतकश तबका माना जाता है।
भारत में भी मजदूर तबका सड़कों घरों और रेलगाड़ियों में मौजूदा व्यवस्था के हाथों बेमौत मारा जा रहा है।
दुनिया के हर मुल्क़ में सत्ताधारी वर्ग उत्पादक मजदूर वर्ग से उनके विशेष रंग, रूप और शारीरिक बनावट के चलते उनसे नफ़रत करता है। उनकी आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के चलते उनसे नफ़रत करता है।
दुनिया की लगभग हर व्यवस्था में समाज के वर्चस्ववादी सवर्ण (व्हाइट पीपल) का एकाधिकार है जिसके चलते हर मुल्क़ की व्यवस्था अपने देश के मजदूर वर्ग से कमोवेश वैसा ही बर्ताव करती है जैसा कि उस मुल्क़ का श्वेत नस्ल वाले लोग चाहते हैं।
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ये श्वेत नस्ल वाले लोग ही पूंजीवाद, बाज़ारवाद, ब्राह्मणवाद, सामंतवाद के संरक्षक हैं, क्योंकि इन व्यवस्थाओं में उनका ही हित फलीभूत होता है।
अमेरिका में हुए काले जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या दरअसल एक व्यक्ति की हत्या नहीं है बल्कि राष्ट्रवादी, पूंजीवादी व्यवस्था में काले मज़दूर वर्ग के प्रति घोर नफ़रत है।
असल में काले लोगों की नागरिकता का नकार है। इस व्यवस्था में काले लोगों के जीवन का नकार है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि पिछले साल यानि नवंबर – दिसंबर 2019 में हमारे मुल्क की सरकार ने भी एनआरसी- सीएए कानून इसी तबके के नागरिक अधिकार, मानवाधिकार व जीवन को नकारने के लिए ही लेकर आई थी।
हमें कोविड-19 के बाद थोपे गए देशव्यापी लॉकडाउन में फंसकर मरती अर्थव्यवस्था को सम्हालने के लिए मजदूर हितों का संरक्षण करने वाले श्रम कानूनों को निलंबित करने का तमाम राज्य सरकारों के फैसले को जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के संदर्भ से जोड़कर ही देखना चाहिए।
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इस क्रूर व्यवस्था को जब मजदूर वर्ग की ज़रूरत होती है तो वो कुछ सहूलियतें दे देती है, और जब मजदूरों की ज़्यादा ज़रूरत होती है तो वो मजदूर वर्ग की सारी सहूलियतें, सारे अधिकार यहां तक की जीने का अधिकार भी छीन लेती है।
हमारा सामना रोजाना ही देश की तमाम फैक्ट्रियों, कल कारखानों में जीने का अधिकार खोते जॉर्ज फ्लॉयड से होती है।
हम रोजाना श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन में जॉर्ज फ्लॉयड को मरते देख रहे हैं, हम स्टेशनों पर भूखे प्यासे जॉर्ज फ्लॉयड को पानी की बोतल लूटते देख रहे हैं, हम जॉर्ज फ्लॉयड को सड़कों पर कुचलकर मरते देख रहे हैं।
हम हजारों किलोमीटर पैदल चलने के बाद गश खाकर गिरे जॉर्ज फ्लॉयड की चीख सुन रहे हैं वो कह रहा है- मैं सांस नहीं ले पा रहा हूँ, आई कैन नॉट ब्रीथ आई कैन नॉट ब्रीथ।
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