ऐतिहासिक किसान आंदोलन के 1 सालः बॉर्डरों पर जुटे किसान, कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन, जुलूस. ट्रैक्टर रैलियों का आयोजन
बीते साल 26-27 नवंबर 2020 को दिल्ली चलो के आह्वान से शुरू हुआ किसान आंदोलन आज अपने ऐतिहासिक संघर्ष के एक वर्ष पूरा कर रहा है।
इस मौके पर संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि, यह तथ्य है कि इतने लंबे संघर्ष के दौरान भारत सरकार की अपने मेहनतकश नागरिकों के प्रति असंवेदनशीलता और अहंकारी रवैया ही उजागर हुआ है।
अभूतपूर्व किसान आंदोलन के एक वर्ष को चिह्नित करने के लिए दिल्ली के मोर्चों और राज्यों की राजधानियों और जिला मुख्यालयों पर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन हो रहा है। दिल्ली में विभिन्न मोर्चों पर हजारों किसान एक दिन पहले से ही पहुंच रहे हैं।
संयुक्त किसान मोर्चे के अनुसार, अब तक साल भर के किसान आंदोलन में 683 किसानों ने अपने प्राणों की बलि दी है। और जब मोदी खुद आगे आकर तीन कृषि क़ानूनों को वापस करने का ऐलान कर चुके हैं, एसकेएम ने शहीदों के परिवारों के लिए मुआवजे और पुनर्वास की अपनी मांग दोहराई है।
बीते कुछ दशकों में भारत और दुनिया ने इतने सघन और लंबा चलने वाले किसान आंदोलन को नहीं देखा होगा। इसकी तीव्रता, व्यापकता और सतत् संघर्ष ने इसे इतिहास के सबसे बड़े और लम्बे विरोध आंदोलनों में से एक बना दिया है।
इस आंदोलन में बारह महीनों के दौरान, करोड़ों लोगों ने भाग लिया, जो भारत के हर राज्य, हर ज़िले और हर गांव तक पहुँचा। तीन किसान-विरोधी कानूनों को निरस्त करने के सरकार के निर्णय और कैबिनेट की मंजूरी के अलावा, किसान आंदोलन ने किसानों, आम नागरिकों और देश के लिए कई तरह की जीत हासिल की।
आंदोलन ने क्षेत्रीय, धार्मिक या जातिगत विभाजनों को खत्म करते हुए किसानों के लिए एकीकृत पहचान की भावना भी पैदा की। किसान के रूप में अपनी पहचान और नागरिकों के रूप में अपने अधिकारों के दावे में किसान सम्मान और गर्व की एक नई भावना की देख रहे हैं। इसने भारत में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की जड़ें गहरी की हैं।
आंदोलन मुख्य रूप से भाग लेने वाले प्रत्येक प्रदर्शनकारी व्यक्ति के शांतिपूर्ण दृढ़ संकल्प के कारण ही खुद को बनाए रखने और मजबूत करने में सक्षम रहा है। आंदोलन ने ट्रेड यूनियनों, महिलाओं, छात्रों और युवा संगठनों सहित अन्य प्रगतिशील और लोकतांत्रिक जन संगठनों के सहयोग से भी ताकत हासिल की।
भारत के लगभग सभी विपक्षी राजनीतिक दल साल भर के संघर्ष में किसानों के समर्थन में खड़े हुए। इस जन आंदोलन में कलाकारों, शिक्षाविदों, लेखकों, डॉक्टरों, वकीलों आदि सहित समाज के कई वर्गों ने अपना योगदान दिया।
एसकेएम ने आंदोलन के सभी प्रतिभागियों और समर्थकों के प्रति अपनी गहरा आभार व्यक्त किया है, और एक बार फिर दोहराया है कि तीन किसान-विरोधी कानूनों को निरस्त करना आंदोलन की सिर्फ पहली बड़ी जीत है। एसकेएम प्रदर्शनकारी किसानों की बाकी जायज़ मांगों को पूरा किए जाने का इंतजार कर रहा है।
संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर, दिल्ली मोर्चा और राज्यों की राजधानियों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के साथ ऐतिहासिक किसान आंदोलन के एक वर्ष को चिह्नित करने के लिए, किसान बड़ी संख्या में एकजुट हो रहे हैं। दिल्ली के विभिन्न मोर्चों पर हजारों की संख्या में किसान पहुंच गए हैं।
दिल्ली से दूर राज्यों में इस आयोजन को रैलियों, धरने और अन्य कार्यक्रमों के साथ चिह्नित करने की तैयारी चल रही है। कर्नाटक में हाईवे जाम के कार्यक्रम में किसान अहम हाईवे को जाम करने जा रहे हैं। तमिलनाडु, बिहार और मध्य प्रदेश में ट्रेड यूनियनों के साथ संयुक्त रूप से सभी जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। रायपुर और रांची में ट्रैक्टर रैलियों का आयोजन होगा।
पश्चिम बंगाल में कल कोलकाता और अन्य जिलों में रैली की योजना है। गुरुवार को हैदराबाद में एक महाधरना आयोजित किया गया, जिसमें तेलंगाना के किसानों ने बड़े पैमाने पर भाग लिया। उपस्थित लोगों ने सभी कृषि उत्पादों पर एमएसपी के कानूनी अधिकार, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने, किसानों को दिल्ली की वायु गुणवत्ता से संबंधित कानूनी विनियमन के दंडात्मक प्रावधानों से बाहर रखने, विरोध करने वाले हजारों किसानों के खिलाफ मामलों को वापस लेने और अजय मिश्रा टेनी की बरखास्तगी और गिरफ्तारी सहित किसान आंदोलन की अभी भी लंबित मांगों को उठाया।
कार्यक्रम में किसान आंदोलन के शहीदों की सूची प्रदर्शित की गई और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
किसान आंदोलन के गौरवपूर्ण एक साल पूरा होने पर 28 नवंबर को मुंबई के आजाद मैदान में एक विशाल किसान-मजदूर महापंचायत का आयोजन किया जाना है। महापंचायत का आयोजन संयुक्त शेतकारी कामगार मोर्चा (एसएसकेएम) के संयुक्त बैनर तले 100 से अधिक संगठनों द्वारा किया जाएगा, और इसमें पूरे महाराष्ट्र के किसानों, श्रमिकों और आम नागरिकों की भागीदारी होगी।
साल भर से चल रहे किसान आंदोलन में अब तक 683 किसानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। एसकेएम ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में उठाई गई अपनी मांग को दोहराते हुए कहा कि केंद्र सरकार आंदोलन में शहीद हुए किसानों के परिवारों को मुआवजा देने और उनके परिवार के पुनर्वास की घोषणा करे और सिंघू मोर्चा में उनके नाम पर स्मारक बनाने के लिए जमीन आवंटित करे।
एसकेएम के 26 नवंबर को विरोध के आह्वान का ट्रेड यूनियनों, नागरिक संगठनों और कई अन्य यूनियनों और संगठनों ने समर्थन किया है। साल भर के संघर्ष में कई राजनीतिक संगठन भी किसानों के पक्ष में खड़े हुए हैं। एसकेएम ने उनके समर्थन के प्रति आभार व्यक्त किया है।
(एसकेएम के जारी बयान का संक्षिप्त और संपादित हिस्सा)
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