लॉकडाउन के कारण 4 महीनों में पौने दो करोड़ से अधिक वेतनभोगी नौकरियां छिनीं

लॉकडाउन के कारण 4 महीनों में पौने दो करोड़ से अधिक वेतनभोगी नौकरियां छिनीं

पहले ही मंदी की मार झेल रही भारतीय अर्थव्यवस्था की कमर पिछले चार महीने में लगभग टूट चुकी है और ताज़ा आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं।

मोदी सरकार और उसके मंत्री भले ही कितने दावे कर लें लेकिन सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) की ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि अप्रैल से जुलाई के बीच 1.8 करोड़ से अधिक नौकरियां ख़त्म हो गईं।

रिपोर्ट में कहा गाय है कि अकेले जुलाई महीने में 50 लाख नौकरियां चली गईं।

ये नौकरियां ऐसी हैं जिसमें वेतनधारी को कुछ हद तक सुरक्षा हासिल है।

उधर मोदी सरकार, उसके मंत्री और सरकारी संस्थान लगातार ये बयान जारी कर रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की हालत आने वाले दिनों में अच्छी होने वाली है।

जबसे लॉकडाउन लगाया गया है तमाम ट्रेड यूनियनें और सामाजिक संगठन इस पर सवाल उठा रहे हैं लेकिन सरकार के मनमाने लॉकडाउन ने कहर बरपाना जारी रखा हुआ है।

तमाम विश्वसनीय स्रोतों से ही कहा जा रहा है कि देश में क़रीब 22 करोड़ प्रवासी मज़दूर हैं और लॉकडाउन के कारण उनकी नौकरी और आजीविका बर्बाद हो चुकी है।

ऐसे में सीएमआईई के आंकड़े में अगर इस आबादी को जोड़ लिया जाए तो अनुमान लगाया जा सकता है कि नौकरी खोने वालों की संख्या 25 करोड़ के आसपास बैठेगी।

एनडीटीवी के अनुसार, लॉकडाउन के कारण बर्बाद हो चुके टूरिज़्म, ट्रैवल और सेवा क्षेत्र में ही तीन से चार करोड़ नौकरियों के जाने का अनुमान है।

अभी बीते दिनों ही वर्ल्ड बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में भारतीय अर्थ्यव्स्था की विकास दर को और नीचे गिरने की आशंका जताई है।

लेकिन दूसरी तरफ़ मोदी सरकार हर रोज़ ही कोई न कोई सार्वजनिक उपक्रम को सेल पर लगा रही है। रेलवे, बैंक, एलआईसी, आर्डनेंस फ़ैक्ट्री, बिजली वितरण कंपनियां, रेलवे कारखाने, बीएसएनएल, कोल इंडिया, बीपीसीएल समेत क़रीब 46 सार्वजनिक उपक्रमों को मोदी सरकार ने इसी दौरान बेच डालने का फैसला ले लिया है।

अकेले बीएसएनएल में 90 हज़ार कर्मचारी हैं, आर्डनेंस फैक्ट्रियों भी इतने ही कर्मचारी हैं। उदाहरण के लिए अगर इनकी नौकरी जाती है तो बेरोज़गारी के आंकड़ों का घातक परिणाम सामने आएगा।

ट्रेड यूनियनें लगातार विरोध प्रदर्शन कर रही हैं, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को भी नई शिक्षा नीति के नाम पर निजी कंपनियों के हाथों में बेच देने की योजना बन चुकी है। बचे खुचे सरकारी अस्पताल भी पीपीपी मॉडल पर निजी कंपनियों के हवाले किए जा रहे हैं। प्राईमरी स्कूल बंद किए जा रहे हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि जितना इस महामारी से रोज़गार का नुकसान नहीं हुआ है, उससे ज़्यादा मोदी सरकार ने नुकसान किया है और वो भी खुलेआम ये ऐलान करके कि ये आपदा नहीं अवसर है और इसका भरपूर फ़ायदा उठा लेना है।

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Workers Unity Team