भारत में 1.7 लाख लोगों को पिछले अप्रैल में हर घंटे नौकरियां गंवानी पड़ीं, जबकि अमीर हुए और अमीर: रिपोर्ट
ऑक्सफैम ने कोरोना के बाद लगाए गए लॉकडाउन से उपजे हालातों पर एक रिपोर्ट जारी की है।
द इनइक्वालिटी वायरस (The Inequality Virus) के नाम से जारी इस रिपोर्ट के बारे बात करते हुए ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान निर्माण स्थलों,फैक्ट्रियों या सेवा के क्षेत्र में काम कर रहे 4 से 5 करोड़ प्रवासी मज़दूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया।
रिपोर्ट में बताया गया है कि मार्च 2020 के बाद से देश के शीर्ष 100 अरबपतियों की संपत्ति में 12.97 लाख करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, वहीं अकेले अप्रैल 2020 में लगभग 1.7 लाख लोगों को हर घंटे अपनी नौकरियां गंवानी पड़ीं।
ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर कहते हैं” यदि आप स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे बड़े आर्थिक संकट के बारे में समझना चाहते है तो उसे ऐसे समझिए की देश के शीर्ष 100 अरबपतियों की संपत्ति मार्च 2020 के बाद से 12,97,822 करोड़ रुपये हो गई, जबकि अकेले अप्रैल में 1,70,000 से अधिक लोगों को हर घंटे अपनी नौकरियां गंवानी पड़ीं। धन में यह वृद्धि नरेगा मजदूरी (राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) को 10 वर्षों तक बनाए रख सकती है ।
ऑक्सफैम की नई जारी रिपोर्ट के भारत संस्करण में यह स्पष्ट किया गया है कि कैसे बढ़ती बेरोजगारी, गंभीर खाद्य असुरक्षा, पलायन के साथ-साथ रिवर्स माइग्रेशन के बीच, सुपर-रिच अभिजात वर्ग ने धन एकत्र करना जारी रखा जबकि करोड़ो लोग अपने जान बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे।
रिपोर्ट के निष्कर्षों में कहा गया है कि महामारी के दौरान ने भारत के असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सबसे अधिक प्रभावित किया है। कुल 12.2 करोड़ लोगों की नौकरी गई जिसका 75 प्रतिशत यानि 9.2 करोड़ नौकरियां असंगठित क्षेत्र के कामगारों की थी।
पलायन के दौरान 300 से अधिक मज़दूर भुखमरी, आत्महत्या, थकावट, सड़क और रेल दुर्घटनाओं, पुलिस क्रूरता और समय पर चिकित्सा देखभाल से वंचित होने से मर गए ।
अप्रैल, 2020 में स्टैंडर्ड वर्कर एक्शन नेटवर्क के एक रिपोर्ट के मुताबिक 50 प्रतिशत मज़दूरों के पास एक दिन के लिए भी राशन नहीं बचा था; जबकि 96 प्रतिशत लोगों को किसी तरह का सरकारी राशन नहीं मिला था, 70 प्रतिशत लोगों को सरकार से पकाया भोजन प्राप्त नहीं किया था; और 78 प्रतिशत मज़दूरों के पास 300 रुपये से कम बचा था।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने साल 2020 के अप्रैल महीने में मानवाधिकार उल्लंघन के 2582 से अधिक मामले दर्ज किए।
रिपोर्ट बताता है कि असंगठित क्षेत्र और प्रवासी मज़दूरों के लिए राहत पैकेज भी मामूली थे।सरकार द्वारा घोषित पहला राहत पैकेज कुल सकल घरेलू उत्पाद(GDP) का केवल 0.5 प्रतिशत था जबकि मई,2020 में घोषित दूसरा राहत पैकेज जिसे लेकर सरकार द्वारा काफी ढ़िढोरा भी पिटा गया था में किये गये वायदे भी नकाफी साबित हुए।
रिपोर्ट में बताया गया कि नौकरी खोने का खामियाजा महिला मज़दूरों को बुरी तरह से भुगतना पड़ा और डेढ़ करोड़ से अधिक महिलाओं को सिर्फ अप्रैल 2020 में अपनी नौकरी गंवानी पड़ी।
लॉकडाउन से पहले नियोजित महिलाओं को भी लॉकडाउन के बाद के चरण में पुरुषों की तुलना में फिर से नियोजित किए जाने की संभावना 23.5 प्रतिशत अंक कम हो गई है।
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि बफर स्टॉक में 7.7 करोड़ टन खाद्यान्न मौजुद होने के बावजूद राज्यों को सिर्फ 22 लाख टन खाद्यान्न मुहैया कराया गया। इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा घोषित अनाजों का लाभ भी प्रवासी मज़दूरों को नही मिला पाया क्योंकि इनका लाभ लेने के लिए उनके पास कार्यस्थलों के पते के लिए मान्य राशन कार्ड उपलब्ध नही थे।
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