पंतनगर: एक और ठेका मजदूर की दर्दनाक मौत, बदतर हालात में काम कर रहे हैं 3000 ठेका मजदूर
पंतनगर (उत्तरखन)। पंतनगर विश्वविद्यालय में पिछले 20 वर्षों से लगातार कार्यरत एवं तराई भवन निकट झोपड़ी में निवासित ठेका मजदूर भास्कर की बीते 15 अगस्त को घर में करेंट लगने से स्थिति बिगड़ गई।
उन्हें जिला अस्पताल लाया गया, जहाँ डाक्टर ने इन्हें मृत घोषित कर दिया। 16 अगस्त को उनका अंतिम संस्कार हो गया। स्व भास्कर अपने पीछे पत्नी नाबालिग बच्चों में दो बेटियां और एक बेटा छोड़ गए हैं।
मालूम हो कि स्व भास्कर मूल रूप से ग्राम पडरौना जिला कुशीनगर उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। पंतनगर विश्वविद्यालय में वर्ष 2003 से पूर्व से ही सीधे विश्व विद्यालय प्रशासन के अधीन दैनिक वेतन भोगी कर्मी के रूप में कार्यरत रहे हैं।
मई 2003 में नियमितीकरण करने के बजाय विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इन्हें ठेका प्रथा में डाल दिया गया। तब से करीब 20 वर्षों से लगातार ठेका मजदूर के रूप में कार्यरत रहे हैं।
ऐसे ही करीब तीन सौ ठेका मजदूर कार्यरत हैं। इतना ही नहीं विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा समझौते के बाद भी विश्वविद्यालय कर्मी तक घोषित नहीं किया जा रहा है। यदि वर्ष 2003 मई में ठेका प्रथा लागू होने के समय से कार्यरत ठेका मजदूरों को जोड़ दिया जाए तो पिछले 15-20 सालों से लगातार कार्यरत ठेका मजदूरों की संख्या करीब तीन हजार होगी।
पंतनगर विश्वविद्यालय सरकारी संस्था होने के वावजूद वर्षों से लगातार कार्यरत इन ठेका मजदूरों को नियमानुसार देय बोनस, बीमा, अवकाश, चिकित्सा, ग्रेच्युटी, मृतक आश्रित को मुआवजा, नौकरी से वंचित रखा गया है।
श्रम कानूनों द्वारा देय ईएसआई को लागू कराने को लेकर ठेका मजदूर कल्याण समिति को न्यायालय से लेकर सड़क पर दस वर्ष लम्बा संघर्ष करना पड़ा।
हाईकोर्ट नैनीताल में शासन-प्रशासन के खिलाफ याचिका लगानी पड़ी। माननीय हाईकोर्ट नैनीताल के दबाव में माह अप्रैल 2021 से विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा ठेका मजदूरों के लिए ईएसआईं लागू हुआ। जबकि भारत सरकार के शासनादेश के मुताबिक माह जून 2016 से लागू किया जाना चाहिए।
उसमें भी ठेकेदार/प्रशासन द्वारा अभी तक ठेका मजदूरों को ईएसआई कार्ड निर्गत नहीं किया गया है। तमाम मजदूर बीमारी से पीड़ित हैं। फिर भी कार्ड निर्गत करने में हीलाहवाली की जा रही है।
इस बीच ठेका मजदूरों एवं उनके आश्रितों की दुर्घटना, बीमारी, कैंसर की बीमारी, ड्यूटी के दौरान हादसों में तमाम मौतें हो चुकी हैं। अपवाद को छोड़कर प्रशासन द्वारा बीमार, घायलों को इलाज में कोई आर्थिक मदद नहीं दी गई। मृतक आश्रितों को मुआवजा, स्थाई नौकरी नहीं दिया गया।
बीमारी और हादसों की कुछ प्रमुख घटनाओं की बात करें तो डेरी के राम-रहीम को कुत्ता के काटने से मौत हुई। पुष्पा पत्नी राम-रहीस एवं सुरेन्द्र शुक्ला, एक ठेका मजदूर की मां कृष्णावती, अशोक, अनिल जोशी की कैंसर की बीमारी से मौत हुई। दुर्घटना में गौतम की टांग कटी व किसन, फैजुद्दीन की मौत हो गई।
चंद्र शेखर जोशी की ड्यूटी आते समय ब्रेन हैमरेज से मौत हो गई। हरीश वर्मा की ड्यूटी में चैपकटर से चारा काटते समय हाथ की तीन अंगुलियां कट गई। पहवारी की डेरी में ड्यूटी में चारा उतारते समय बेहोश होकर मौत हुई। बबलू खां का ड्यूटी के दौरान पेड़ से गिरने से रीढ़ की हड्डी में फ्रेक्चर हो गया।
ऐसी तमाम घटनाएं होती रही हैं जिसमें ठेका मजदूर कल्याण समिति की पहल पर बब्लू को इलाज में मात्र कुछ आंशिक मदद ही दी गई। ठेका मजदूर कल्याण समिति के कार्यकर्ताओं द्वारा साथियों के इलाज के लिए आम जनता से चंदा जुटाया गया। परंतु प्रशासन द्वारा बाकी किसी को आज तक न इलाज में आर्थिक मदद, मृतक आश्रितों को ग्रेच्युटी, मुआवजा और न ही स्थाई नौकरी नहीं दी गई।
ठेका मज़दूर कल्याण समिति द्वारा इन मांगों को लेकर लगातार शासन प्रशासन से समक्ष उठाया जाता रहा है ।परंतु शासन-प्रशासन द्वारा अभी तक कोई सुधि नहीं ली गई है। ठेका मजदूरों के आश्रित नारकीय जीवन जीने को अभिषप्त है। स्व भास्कर के आश्रितों को ग्रेच्युटी मुआवजा और पत्नी को स्थाई नौकरी के लिए शासन प्रशासन के समक्ष उठाया जाएगा।
ठेका मज़दूर कल्याण समिति के अभिलाख सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति के जरिए विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग की है कि ठेका मजदूरों को शीघ्र ईएसआई कार्ड निर्गत किए जाएं। इनका बीमा किया जाए और शासनादेश के मुताबिक लगातार 10 वर्ष सेवा पुर्ण कर चुके ठेका मजदूरों को नियमितीकरण किया जाए। स्व भास्कर के आश्रितों को ग्रेच्युटी मुआवजा और परिवार की जीविका के लिए स्थाई नौकरी दिया जाए।
(साभार-मेहनतकश)
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