‘पिताजी के बचने की सूरत नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन…’ निःशुल्क हेल्पलाइन की कहानी

‘पिताजी के बचने की सूरत नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन…’ निःशुल्क हेल्पलाइन की कहानी

“मुझे व्यक्तिगत तौर पर आप सब लोगों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना है। पिछले एक महीने में मुझे स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर से मायूसी ही मिल रही थी। डॉक्टर्स जिनको इस समय पर लोगों की मदद करनी चाहिए वहां हर कोई अनाप शनाप पैसे मांग रहा है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ ऐसा भी देखा कि लोग पैसे को एक किनारे रख कर दूसरों की मदद के लिए आ रहे हैं। मैं आप सब डॉक्टर्स का उन तमाम लोगों की तरफ से शुक्रिया करना चाहती हूं जिन लोगों की भी आपने मदद की है। मेरे पिताजी की बचने की कोई भी सूरत नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन अब वो स्वस्थ हैं। ”

ये उद्गार कोरोना से पीड़ित रहे एक मरीज़ के हैं जिसे निःशुक्ल परामार्श देने वाले डॉक्टरों की ओर से जीवनदान मिला।

कोरोना महामारी से बेहाल जनता को मदद पहुंचाने के लिए साइंस फॉर सोसायटी और तर्कशील सोसायटी की ओर से चल रही हेल्पलाइन के मार्फत अबतक सैकड़ों मरीज़ों का इलाज़ किया जा चुका है।

सोसायटी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि कोरोना संक्रमित व बुखार, जुखाम, सांस फूलना, बदन दर्द, गंध व स्वाद न आना, खांसी आदि के मरीजों के लिए निःशुल्क एलोपैथिक डॉक्टर से सलाह के लिए तीन मई को हेल्पलाइन नंबर 6398067708 जारी किया गया था, तबसे लेकर अबतक क़रीब 400 मरीज़ों का इलाज़ सफलता पूर्वक किया गया।

साइंस फार सोसायटी के संयोजक मदन मेहता ने कहा कि अब महिलाएं तथा कोरोना से उबरने के बाद मानसिक अवसाद आदि से ग्रस्त मरीज भी चिकित्सीय परामर्श ले रहे हैं।

उन्होंने बताया कि इस हेल्प लाइन पर अब महिलाएं, महिलाओं से संबंधित बीमारियों के लिए प्रसूति रोग विशेषज्ञ डाॅक्टर से निःशुल्क सलाह ले सकती हैं तथा कोरोना से उबरने के बाद मानसिक अवसाद से ग्रस्त मरीज़ भी अब मनोचिकित्सक से परामर्श कर सकते हैं।

साइंस फॉर सोसाइटी के हेम आर्य ने बताया कि हेल्प लाइन पर अब प्रतिदिन प्रातः 10 बजे से रात को 11 बजे तक 14 डाॅक्टर उपलब्ध हैं। इसमें एम.बी.बी.एस, एम.डी, सर्जन, प्रसूति रोग विशेषज्ञ, बाल रोग विशेषज्ञ तथा मनोचिकित्सक निःशुल्क सेवाएँ मरीजों को दे रहे हैं। देश का कोई भी व्यक्ति हेल्पलाइन पर संपर्क कर डॉक्टर से निःशुल्क परामर्श ले सकता है।

इस पूरे अभियान में बड़ी भूमिका निभाने वाले समाजवादी लोकमंच के मुनीष कुमार ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि अप्रैल में हरिद्वार में हुए महाकुंभ के बाद उत्तराखंड में जब महामारी अचानक बढ़ने लगी तो दूर दराज़ के लोगों की मदद के लिए ये हेल्पलाइन शुरू की गई और पहाड़ के गांवों में लोगों का इलाज़ करने के लिए दवाओं और जांच उपकरणों की किटें पहुंचाई गईं।

वो कहते हैं कि इस हेल्पलाइन के मार्फत जो लोग ठीक हुए, उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस पहलकदमी की तारीफ़ की।

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इस हेल्पलाइन के मार्फत लोगों ने निजी चिकित्सा व्यवस्था की मुनाफ़ाखोरी से भी पर्दा उठाया। उषा पटवाल ने लिखा है, “मेरा खुद का अनुभव अभी एक ही महीने में दो डॉक्टरों के साथ हुआ जिन्होंने ऑनलाइन पैसे ले लिया लेकिन एक बार बात करने के बाद दोबारा फ़ोन भी नहीं उठाते और फिर से फ़ीस भरने की बात करते हैं। इस वक्त उनको ये भी एहसास नहीं हो रहा है कि शायद कोई इमरजेंसी भी हो सकती है या किसी जान बच सकती है।”

“लेकिन वहीं जब आपके जैसे लोग सामने आकर खड़े हुए तो कितने लोगों को आपके इस कदम से एक हौसला और जीने की उम्मीद नज़र आई होगी। जो लोग पैसे नहीं दे सकते उनको भी कितना सहारा मिला होगा। आप लोगों को शुभकामनाएं।”

गोरखपुर की सची दुबे ने लिखा है कि आज के समय में जब डॉक्टर्स मरीज़ों को लूट रहे हैं, आप लोगों की ओर से निःशुल्क परामर्श दिलाना बहुत अच्छा काम है। जितनी तारीफ़ की जाए उतना कम है।

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ठीक हुए लोगों ने उन डॉक्टरों की तारीफ़ की जिन्होंने संवेदनशील होकर मरीज़ से बात की और बाद में फॉलोअप लेते रहे। या जब ज़रूरत पड़ी उन्होंने बिना निर्धारित समय के परामर्श दिया।

मुनीष कुमार कहते हैं कि ऐसे सैकड़ों संदेश लोगों ने भेजे हैं। कुछ नम्बर ऐसे हैं जहां से लगातार पेशेंट अपना इलाज़ करवा रहे हैं। ठीक होने के बाद अपने फ़ोन से दूसरे मरीजों को भी हेल्पलाइन के जरिए परामर्श दिलवा रहे हैं।

वो बताते हैं कि डाॅक्टर्स व्यस्त कई बार व्यस्त होते हैं लेकिन वे बाद में खुद ही मरीज़ से संपर्क कर लेते हैं। सभी डाॅक्टर्स का टाइम शेड्यूल है लेकिन शेड्यूल से बाहर भी वे मरीजों के कॉल अटेंड कर लेते हैं।

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Workers Unity Team

One thought on “‘पिताजी के बचने की सूरत नज़र नहीं आ रही थी, लेकिन…’ निःशुल्क हेल्पलाइन की कहानी

  1. इस पवित्र प्रयास में सक्रिय सभी साथियों को उनके घोर श्रम के लिये हार्दिक बधाई देते हुए कामना करता हूँ कि ऑनलाइन चिकित्सा-सेवा का यह निःशुल्क प्रयोग महामारी की विभीषिका के गुज़र जाने के बाद भी पीड़ित मानवता की सेवा में इसी उत्साह से और भी दिमागों को जोड़ते हुए आगे भी जारी रहे.

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