मैक्रॉन की सत्ता के खिलाफ फ्रांस में उबाल, स्वास्थ्यकर्मियों के प्रदर्शन से हिली सरकार

मैक्रॉन की सत्ता के खिलाफ फ्रांस में उबाल, स्वास्थ्यकर्मियों के प्रदर्शन से हिली सरकार

By आशीष सक्सेना

फ्रांस में पेट्रोल-डीजल मूल्यवृद्धि के खिलाफ नवंबर 2018 में चले पीली जैकेट आंदोलन ने नए तेवर के साथ रफ्तार पकड़ ली है। अब ये आंदोलन पीले की जगह से सीधे लाल रंग और पूंजीवादी सत्ता के खिलाफ प्रतीकों को लेकर सडक़ों पर है।

बुधवार को पेरिस समेत फ्रांस के सभी कोनों में प्रदर्शनों की झड़ी से सरकार हिल गई। प्रमुख मांग स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के वेतन, सुविधा, सुरक्षा के साथ ही लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करना रही।

हालांकि, इसके साथ ही ये नारों में पूंजीवाद को उखाडक़र फेंककर वास्तविक लोकतंत्र को एकजुट होने और संघर्ष करने का आह्वान था।

डॉक्टरों, नर्सों और अन्य अस्पताल के कर्मचारियों ने पूरे फ्रांस में विरोध प्रदर्शनों के जरिए वेतन वृद्धि की मांग के साथ कोरोनो वायरस महामारी से निपटने को स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूत करने की मांग रखी।

प्रदर्शन और रैलियों को रोकने के लिए मैक्रॉन प्रशासन ने बड़ी संख्या में पुलिस बल लगाया लेकिन प्रदर्शनकारियों के तेवर देख उन्हें पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा।

सरकार ने दबाव में अतिरिक्त बजट देने की घोषणा भी की, लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ये राशि उतनी भी नहीं है, जितनी पिछले कई बरसों में कटौती कर दी गई।

इससे पहले फ्रांस की राजधानी पेरिस में प्रदर्शनकारियों ने सरकार के रवैये से नाराज होकर स्वास्थ्य मंत्रालय को लाल रंग से रंग दिया। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि कोविड-19 से मरने वालों के साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के स्वास्थ्य कर्मियों के बलिदान का प्रतीक है ये रंग।

प्रदर्शनकारियों ने मंत्रालय के गेट पर बैनर भी टांग दिया, जिसमें लिखा था कि सरकार कर्मचारियों की चिंताओं को लेकर सुनने में नाकामयाब क्यों हो रही है।

वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में प्रदर्शनकारी जीन पियरे डाबौडेट ने कहा, हम 17 नवंबर, 2018 से प्रदर्शन कर रहे हैं। इस आंदोलन को पीले रंग की जैकेट नाम के आंदोलन के तौर पर जाना जाता है।

आंदोलन की प्रमुख मांग यही है कि हम लोकतंत्र चाहते हैं, एक वास्तविक लोकतंत्र। लोगों द्वारा और लोगों के लिए बनाया गया लोकतंत्र। हम हर एक के लिए एक बेहतर जीवन चाहते हैं, क्योंकि हम चार दशक से ज्यादा समय से पूंजीवादी क्रूरता से पीडि़त हैं।

पूंजीवादी सत्ता अस्पतालों, पेंशन से लेकर सामाजिक जीवन की जरूरी चीजों को पहुंच से दूर कर रहे हैं।

हमारे बुजुर्गों ने इतने बलिदान के बाद जो श्रमिक अधिकार हासिल किए, वे मैक्रॉन की तानाशाही के पैरों तले कुचले जा रहे हैं। हमने इस तानाशाही को खारिज करने का ऐलान कर दिया है, जो महज 18 प्रतिशत फ्रांसीसी आबादी से चुनकर थोप दी गई है।

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ashish saxena