कैजुअल और टेंपरेरी वर्कर बिना अकेले परमानेंट वर्करों के दम पर लेबर कोड नहीं रोका जा सकता
By अजित कुमार
केंद्र में सत्ताशीन मोदी सरकार ने 1 अप्रैल से लागू किए जाने वाले श्रम कोड (चार श्रम संहिताए) के ऊपर कुछ समय के लिए रोक लगा दी है। यह रोक कितने समय के लिए है, इस पर अभी सरकार की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं है।
सरकार की तरफ से इन लेबर कोड को अभी ना लागू करने के पीछे ,यह तर्क दिया जा रहा है कि राज्य सरकारों की अभी इन श्रम कोड को लागू करने की तैयारियां पूर्ण नहीं है। लेकिन वास्तविकता सरकार के इस तर्क से परे है।
हालांकि पुराने श्रम कानूनों को खत्म कर लाए जा रहे नए श्रम कोड के बदलावों को कुछ राज्य सरकारें अपने व्यवहार में लागू कर रही है।
मॉडल स्टैंडिंग ऑर्डर में किए गए बदलाव जिसमें की अगर किसी फैक्ट्री में 300 स्थाई मजदूरों से कम संख्या है तो वहां पर छंटनी के लिए कोई श्रम विभाग से मंज़ूरी लेने की जरूरत नहीं होगी।
यह छंटनी की प्रक्रिया भले ही बड़े पैमाने पर ना हो लेकिन मालिकों का उद्देश्य स्थाई मजदूरों को 300 से कम करना, और जहां पर 300 से कम है वहां पर बहुत छोटी संख्या में केवल नाम मात्र की संख्या में स्थाई मजदूरों को रखना है।
पुराने श्रम कानूनों को खत्म कर लाए गए, नए श्रम कोड मज़दूर वर्ग के लिए कितने घातक है, इसमे कोई दो राय नही हैं। यह श्रम कोड स्थाई मजदूरों के हितों पर हमले के साथ-साथ अस्थाई, ठेका और ट्रेनी मजदूरों के हितों पर भी हमला करता है।
स्थाई, अस्थाई व ट्रेनी मजदूरों के बीच पहले से ही मौजूद खाई को और ज्यादा चौड़ा और गहरा करने का काम इन श्रम कोड द्वारा किया जाएगा।
लेबर कोड में ट्रेनी नहीं रहेंगे मज़दूर
नए श्रम कोर्ट में ट्रेनी (प्रशिक्षु) को मजदूर की परिभाषा से ही गायब कर दिया गया है। कौशल विकास के नाम पर प्रशिक्षु (ट्रेनी )मजदूर भर्ती किए जाएंगे।
ये मजदूर, मजदूर की परिभाषा में शामिल नहीं होंगे। एक तरीके से यह अधिकारविहीन मजदूर होंगे। दूसरी तरफ फिक्स टर्म एंप्लॉयमेंट के तहत स्थाई मजदूरों पर हमला है। यानी इन मजदूरों से मशीनों पर काम कराया जाएगा परंतु यह अधिकार विहीन मजदूर होंगे।
अस्थाई ठेका मजदूरों की एकता का सवाल काफी लंबे समय से फैक्ट्री यूनियनों और केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने छोड़ रखा है। जब किसी फैक्ट्री में यूनियन बनाने का आंदोलन चलता है तो उस फैक्ट्री के सथाई, अस्थाई, ठेका और ट्रेनी सभी मजदूर एकजुट होकर मालिक व प्रशासन से संघर्ष करते हैं।
जब फैक्ट्री में सभी मजदूर अपने संघर्ष के दम पर यूनियन बनाने में सफल हो जाते हैं, तो उसके बाद मालिक और प्रशासन का एक तर्क ही उस वर्गीय एकजुटता को बिखेर देता है की यूनियन तो केवल स्थाई (परमानेंट) मजदूरों की होती है।
इस तर्क का मुकाबला वह जूझने की बजाए मजदूरों के हित अलग अलग हो जाते हैं। स्थाई मजदूरों के हित अस्थाई , ठेका, व ट्रेनी मजदूरों से अलग अलग हो जाते है।
वर्ग संघर्ष की बुनियाद पर खड़ी की गई यूनियन धीरे धीरे वर्ग संघर्ष से अपने पैर पीछे खींचने लगती है। अस्थाई, ठेका व ट्रेनी मजदूरों के सवाल को छोड़ने का परिणाम यह निकलता है कि कुछ समय पश्चात यूनियन के पतन की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
अस्थाई वर्करों का सवाल
जिन सवालों से यूनियन को जूझना व लड़ना चाहिए था वह उससे अपना बचाव करने लगती हैं। बहुत सारी यूनियनों के उदाहरण मिल जाएंगे कि जिन यूनियनों ने फैक्ट्री के स्तर पर वर्गीय एकजुटता के सवाल को छोड़ा है उनका या तो पतन हुआ है या फिर वह पतन की कगार पर अपनी अंतिम सांसे गिन रही है।
गुड़गांव औद्योगिक इलाके में औमेक्स ,ऑटो मैक्स, इंड्योरेंस, नपिनो, हेमा आदि यूनियनें आज सिमट चुकी हैं। बहुत सारी यूनियनें इस प्रक्रिया से गुजर रही हैं।
यूनियनों के इस पतन के निश्चित ही कई कारण होंगे केवल एक कारण पर्याप्त नहीं है। लेबर कोड जो कि मजदूर वर्ग पर एक बहुत बड़ा राजनीतिक हमला है उसका प्रतिकार बिना वर्गीय एकजुटता के नहीं किया जा सकता है।
फैक्ट्री के स्तर पर मजदूरों को एकजुट करना आज के दौर में कठिन काम है, लेकिन बगैर स्थाई, अस्थाई, ठेका ,ट्रेनी वह अब इससे भी आगे बढ़कर नीम ट्रेनी ,फिक्स टर्म एंप्लॉयमेंट जैसे तमाम विवादों को हल किए व हितों की समझ के इस राजनैतिक कार्य को नहीं किया जा सकता।
इस कठिन, राजनीतिक , वर्गीय कार्य को वही मजदूरों का संगठन अपने हाथ में लेगा जो मजदूरों को एक वर्ग के तौर पर देखता है और उसे भविष्य की ताकत मानता है।
वर्तमान ट्रेड यूनियन सेंटर इस सवाल को बहुत पहले ही छोड़ चुके हैं। ये ट्रेड यूनियन सेंटर इन लेबर कोड को चाहे कितना भी मजदूर विरोधी बताएं पर असल सवाल पर इनके पास कोई योजना नहीं है और ना ही इनके एजेंडे में यह सवाल है।
(लेखक ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट हैं । ये उनकेअपने विचार हैं और ज़रूरी नहीं कि वर्कर्स यूनिटी की इसपर सहमति हो।)
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