बियर कंपनी से 65 परमानेंट मज़दूरों को रातों रात निकाला, बाउंसर, पुलिस और कमांडो लगा अंदर जाने से रोका

बियर कंपनी से 65 परमानेंट मज़दूरों को रातों रात निकाला, बाउंसर, पुलिस और कमांडो लगा अंदर जाने से रोका

By सुमित, राजस्थान के नीमराना से

राजस्थान के नीमराना में स्थित रूचिस बेवरेज़ेज के नाम से जाने जाने वाली मैसर्स आनहाउस बुश इन इंडिया लिमिटेड के नीमराना प्लांट प्रबंधन ने 12 मार्च को सालों से काम कर रहे 60 मजदूरों को बिना पहले नोटिस दिए निकाल दिया और यूनियन के पांच सदस्यों को निलंबित कर दिया है।

सभी मजदूर प्लांट के सामने धरने पर बैठे हैं। निकालने से पहले न तो यूनियन से बात की गई, न पहले नोटिस जारी किया गया। ये हाल तब है जब कंपनी में वैध यूनियन है।

यह कंपनी एच 5 और बैक आइस बियर बनाती है। इस ग्रुप के स्वामित्व वाले 13 प्लांट हैं जो सोनीपत, मेरठ और औरंगाबाद सहित अन्य जिलों में स्थित हैं।

दरअसल 12 तारीख को जब सुबह ए शिफ्ट में मजदूर ड्यूटी पर पहुंचे तो गेट पर ही रोक दिया गया और कहा गया कि आपको प्लांट के अंदर नहीं जाना है आप लोग गेट पर लगे हुए नोटिस को पढ़ लो।

नोटिस में लिखा था कि प्रबंधन ने 65 स्थाई श्रमिकों में से 60 की छंटनी करते हुए उनका हिसाब किताब कर दिया है और पांच यूनियन सदस्य जिनका नाम “सुरक्षित कर्मकार” के तहत दर्ज था उनको निलंबित कर दिया गया है।

गेट पर धरने पर बैठे मजदूरों ने बताया कि 11 तारीख की रात ही प्लांट में करीब 300 बाउंसर, पुलिस और आरएसी की 5 गाड़ियां, क्यूआरटी के कमांडो बुला लिए गए थे, इनकी मौजूदगी में सुबह मजदूरों को गेट पर रोका गया है।

Ruchis Beverage Neemrana Retrenchment workers

प्लांट में प्रोडक्शन जनवरी महीने से ही बंद पड़ा था और प्रबंधन धीरे-धीरे कच्चे माल को दूसरी जगह शिफ्ट कर रही थी। प्लांट में 65 परमानेंट श्रमिक 250 से अधिक ठेका श्रमिक और 45 से 55 के करीब स्टाफ कार्यरत था।

प्रबंधन ने पहले ही स्टाफ का ट्रांसफर दूसरे लोकेशन पर कर दिया था। नीमराना स्थित इस प्लांट में नौ लाख कार्टून प्रतिमाह का उत्पादन होता था। लॉक डाउन के बाद से ही कंपनी प्रबंधन ने उत्पादन कम कर दिया था और करीब 50 लाख खाली बोतलों को दूसरे लोकेशन पर भेज दिया गया था।

मजदूरों ने बताया कि निकाले गए श्रमिकों की औसत उम्र 40 से 50 वर्ष के दरमियान है, उम्र के इस मोड़ पर उनके लिए दूसरी नौकरी ढूंढना या आय का अन्य साधन ढूंढना मुश्किल होगा। 60 लोगों को जो छंटनी मुआवजा दिया जा रहा है वह नाकाफी है।

1998 से इस प्लांट में उत्पादन शुरू होने के बाद से इस कंपनी के मालिक हमेशा बदलते रहे हैं। लंबे संघर्ष के बाद 2014 में यूनियन का निर्माण हुआ। यूनियन का निर्माण होते ही प्रबंधन ने पांच यूनियन सदस्यों को बर्खास्त कर दिया जिन का मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित चल रहा है।

प्लांट में 72 दिनों तक हड़ताल चली, लेकिन इस लड़ाई के बाद मजदूरों ने मांग पत्र के अनुसार आंशिक जीत हासिल की, जिसमें महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस प्लांट में प्रचलित 12 घंटे के कार्य दिवस को हटाकर वापस 8 घंटा कर दिया गया।

हालांकि बीते कुछ सालों से यहां ठेका मजदूर से दिहाड़ी रेट पर 12 घंटे ही काम करवाया जा रहा था।

यूनियन के सदस्य ने बताया कि, ‘उस दौरान हमारी प्रमुख मांगे थी कि प्लांट के अंदर समान काम का समान वेतन दिया जाए, ठेका मजदूर को नियमित किया जाए और उनको भी स्थाई वर्करों को मिलने वाले सारे लाभ प्रदान किए जाए और प्लांट में कार्यरत फाउंडर वर्कर को परमानेंट किया जाए।

यूनियन नेता कहते हैं कि कानूनी नजरिए से कंपनी ने 60 लोगों को छंटनी करते वक्त 1 महीने का नोटिस पे और अन्य भुगतान तो किए हैं लेकिन यह मामला सीधा-सीधा क्लोजर का है क्योंकि प्लांट के अंदर उत्पादन पूरी तरीके से बंद हो चुका है और प्लांट के अंदर 300 से ज्यादा श्रमिक काम कर रहे थे। कंपनी के इस मनमानी के पीछे श्रम विभाग और प्रबंधन की साठगांठ स्पष्ट नजर आ रही है।

अभी कुछ दिनों पहले ही बहरोड़ स्थित ऑटोनियम इंडस्ट्रीज में भी 32 लोगों का गेट बंद कर दिया गया था जिनमें से चार लोगों को प्रबंधन ने नौकरी से निकाल दिया है और 10 को सस्पेंड कर दिया है वहां भी श्रमिक अभी कंपनी गेट के सामने धरने पर बैठे हैं।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Workers Unity Team

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.