वैक्सीन कंपनी फ़ाइज़र की दादागीरी, ग़रीब देशों के दूतावास, बैंक, मिलिट्री बेस को मांगा गिरवी
कोरोना वैक्सीन बनाने वाली अमेरिकी फ़र्मास्यूटिकल कंपनी फ़ाइज़र की ओर से दक्षिण अमेरिकी देशों को वैक्सीन देने के बदले सरकारों को बंधक बनाने बनाने की मांग को लेकर वैक्सीन औपनिवेशीकरण की आशंका गहरा गई है।
दो महीने पहले फ़रवरी में फ़ाइज़र ने दक्षिण अमेरिकी देशों को, जो हमेशा से ही अमेरिकी दादागीरी के सामने तन कर खड़े रहे, वैक्सीन के बदले मिलिटरी बेस, सरकारी खजाने और दूतावास को गिरवी रखने की मांग की थी।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया में जब ये मामला उछला तो इस अमेरिकी कंपनी की काफ़ी बदनामी हुई और अब कई देश इस कुख्यात कंपनी से सौदा करने में काफ़ी सतर्कता बरत रहे हैं।
एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह वियोन के अनुसार, फ़ाइज़र ने 9 दक्षिण अमेरिकी और कैरेबियाई देशों से वैक्सीन के लिए करार किया है। ये देश हैं – चिली, कोलंबिया, कोस्टा रिका, डाॅमिनिक रिपब्लिक, इक्वाडोर, मैक्सिको, पनामा, पेरू और उरूग्वे।
अर्जेंटीना और ब्राजील दो ऐसे बड़े लैटिन अमेरिकी देश हैं, जो इस लिस्ट से गायब हैं। असल में फ़ाइज़र और अर्जेंटीना के बीच वैक्सीन को लेकर बातचीत जून 2020 में शुरू हुई। जुलाई में प्रेसीडेंट अल्बर्टो फर्नांडीज ने फ़ाइजर के अर्जेंटीना-सीईओ से मुलाकात की।
इसके बाद फ़ाइज़र ने मांग की कि किसी नागरिक के मुकदमा करने पर उसे नियमों से बचने की छूट दी जाए।
यानी अगर अर्जेंटीना का कोई नागरिक कंपनी के खिलाफ मुकदमा करता है और जीत जाता है तो कंपनी के बजाय मुआवजा सरकार को देना होगा।
मुनाफ़ा कंपनी का, नुकसान सरकार का
इस मांग के लिए अर्जेंटीना की सरकार को अक्टूबर 2020 में संसद में नया कानून पास करना पड़ा, लेकिन इसके बाद भी फ़ाइजर कानून की पेंचीदगियों से नाखुश ही रही।
इस कानून में कहा गया कि फ़ाइज़र को भविष्य में कम से कम कंपनी की ‘लापरवाही ’ पर लोगों को मुआवजा तो देना पड़ेगा, फ़ाइजर ने इसे खारिज कर दिया।
इसके बाद अर्जेंटीना की सरकार ने काूनन में सुधार कर ‘लापरवाही ’ को ज्यादा साफ तरीके से परिभाषित किया और ‘लापरवाही ’ का दायरा वैक्सीन के वितरण और डिलीवरी तक सीमित कर दिया। यानी कंपनी की ज़िम्मेदारी सिर्फ वैक्सीन को सही ढंग से पहुंचाने तक समेट दिया गया।
फ़ाइज़र अब भी खुश नहीं थी और उसने मांग की कि इस कानून में उसकी मांग के स्तर तक सुधार किया जाए, यानी किसी भी मुकदमे की स्थिति में मुआवज़े का भुगतान सरकार करे। अर्जेंटीना ने इससे इंकार कर दिया।
इसके बाद फ़ाइज़र ने भविष्य में कंपनी के खिलाफ संभावित केसों को लेकर एक इंटरनेशनल इंश्योरेंस (गारंटी) की मांग की, जिस पर भी सरकार राजी नहीं हुई।
दिसंबर 2020 में फ़ाइज़र की नई मांग सामने आई और उसने कहा कि द्विपक्षीय समझौते में अर्जेंटीना अपनी राष्ट्रीय संपत्तियों (दूतावास, सावरेन बांड्स और मिलीटरी बेस) को शामिल करे।
कंपनी चाहती थी कि अर्जेंटीना अपने बैंकों, मिलिट्रटी बेस और दूतावास की इमारतों को समझौते में दांव पर रखे।
वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां हमेशा एक सीमा तक खुद को कानून से परे रखने की मांग कर रही हैं। यानी आप फ़ाइज़र की वैक्सीन लें और अगर उसका कोई साइड इफेक्ट हो तो इसका दोष कंपनी की बजाय इंजेक्शन को दिया जाए।
यानी आप फ़ाइज़र के ख़िलाफ़ मुकदमा ठोक सकते हैं। अगर आप जीत गए तो कंपनी की जगह सरकार को मुआवज़े का भुगतान करना होगा।
किसिम किसिम की शर्तें
अमेरिका में प्रेप एक्ट बनाया गया है जो फ़ाइज़र और माडर्ना को कानूनी दायरे से पूरी तरह बचा लेता है। यह नियम तब लागू होता है, जब कंपनी से बिना इरादे के कोई गलती हुई हो और वह लापरवाही के दायरे में न आती हो।
लेकिन फ़ाइज़र इससे भी आगे बढ़कर एक देश की संप्रभुता को गिरवी रखना चाहती थी, जिस पर अर्जेंटीना राजी नहीं हुआ।
ब्राजील में फ़ाइज़र एक कदम और आगे बढ़ गई और उससे कहा कि वह एक गारंटी फंड बनाए और विदेशी बैंक अकाउंट में पैसे जमा करे।
उसकी मांग थी कि ब्राज़ील विदेशों में अपनी संपत्ति को गारंटी के रूप में दे, ब्राज़ील के नियम कंपनी पर लागू नहीं होंगे और वैक्सीन की डिलीवरी में देरी होने की ज़िम्मेदारी फ़ाइज़र की बजाय सरकार की होगी।
इसके साथ ही किसी तरह के साइड इफेक्ट के मामले में फ़ाइज़र नागरिकों के प्रति किसी तरह की जवाबदेह नहीं होगी।
ब्राज़ील की सरकार ने इन मांगों को अपने लिए गाली जैसा बताया और फ़ाइज़र के साथ समझौता तोड़ दिया।
खोजी पत्रकारिता से पता चला कि फ़ाइज़र ने ऐसी ही मांगें एक और देश के साथ की, जिसके चलते वैक्सीन की सप्लाई में तीन महीने की देरी हो गई।
फ़ाइज़र को पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर इस साल वैक्सीन की दो अरब डोज़ की डिलीवरी करनी है। तीन महीने की देरी का असर पूरे साल और कई जानों पर पड़ सकता है।
सरकारी फंड की मदद से वैक्सीन तैयार करने के बावजूद फ़ाइज़र अपनी पोजीशन का ग़लत फायदा उठाकर लोगों की जान बचाने वाली वैक्सीन डिलीवर करने में देरी कर रही है।
उसकी जर्मन वेंचर बायोएनटेक को जर्मनी की सरकार ने 44.5 करोड़ डॉलर की मदद की है। अमेरिका ने उसे प्री- ऑर्डर के रूप में जुलाई 2020 में 2 अरब डालर दिए थे।
कंपनी वैक्सीन बेचने के लिए 100 देशों और संगठनों से बातचीत कर रही है। अनुमान है कि इससे उसे 15 अरब डॉलर की रकम मिलेगी ।
22 जनवरी को फ़ाइज़र ने कोवैक्स के साथ एक समझौता किया जिसके तहत उसने इस साल गरीब देशों को 4 करोड़ डोज देने का वादा किया है।
एक प्रेस विज्ञप्ति में कंपनी ने कहा है, ‘फ़ाइज़र का मानना है कि हर व्यक्ति को रखा जाना चाहिए, उसकी बात सुनी जानी चाहिए और उसकी देखभाल होनी चाहिए। यही वजह है कि वैक्सीन डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरूआत से ही फ़ाइजर और बायोएनटेक दुनिया में सभी को कोविड-19 की वैक्सीन उचित दामों में दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’
(मूल लेख यहां पढ़ें।)
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