अपनों की लाशें गिन थक चुकी जनता को 7 साल की उपलब्धि बता रहे प्रधानमंत्री: मन की बात
पिछली बार 25 अप्रैल को जब पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश से बात की थी तो रोजाना कोरोना से करीब दो हजार के करीब मौतें हो रही थीं। केस आ रहे थे साढ़े तीन लाख के आसपास।
तब से अब तक भारत में जिंदगी उलट पुलट हो गई। इतने गहरे घाव लग चुके हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी दर्द महसूस करेंगी। ऐसे में प्रधानमंत्री से उम्मीद थी कि वो जब 30 मई को ‘मन की बात’ करेंगे तो इस दर्द के कारण और निवारण पर कुछ बात करेंगे। लेकिन उन्होंने अपनी उपलब्धियां गिनानी शुरू कर दीं।
आंसू सूखे नहीं और अपनी बड़ाई!
माना कि ये मौका मोदी सरकार के सात साल पूरे होने का भी था लेकिन क्या वाकई ये मौका अपनी उपलब्धियां गिनाने की थीं? जब देश लाशें गिनते-गिनते थक चुका है, आंसू अभी सूखे नहीं हैं।
गंगा का दुख अभी बह ही रहा है। मौतें अभी थमी नहीं हैं। अगर कोई भ्रम में था कि सरकार को सेकंड वेव के लिए कम तैयारियों का मलाल होगा तो ‘मन की बात’ को सुन कर टूट गया होगा।
ऑक्सीजन की कमी से घुटते मरीज। एक-एक इंजेक्शन के लिए तरसते मरीजों के घरवाले। अस्पताल के बाहर इस इंतजार में खड़ा मरीज कि अंदर कोई मरे तो एक बेड मिले। गंगा में बहती लाशें।
इन सब पर मन की बात में एक शब्द नहीं। क्या वाकई पीएम के मन में ये बातें नहीं आतीं?
इसके उलट मोदी जी ने कहा कि ऑक्सीजन पर हमने कमाल कर दिया. 900 टन उत्पादन करने थे, 9500 टन उत्पादन करने लगे हैं।
ये बात क्या राहुल वोहरा से कह पाएंगे? वो तो चला गया…बिन ऑक्सीजन। गोवा के GMC में कई दिन तक रोज बिन ऑक्सीजन मरने वाले मरीजों के परिवारों को बता पाएंगे?
दिल्ली के बत्रा अस्पताल, गंगाराम अस्पताल, जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन के लिए छटपटाते मरीजों को कह पाएंगे?
मोदी जी ने कह तो दिया कि पहली वेव में भी हमने पूरे हौसले के साथ लड़ाई लड़ी थी, इस बार भी भारत विजय होगा लेकिन सच तो ये है कि लाखों और उनके परिवारों को मिलाकर करोड़ों लोगों के लिए ये लड़ाई खत्म हो चुकी है।
वो हार चुके हैं। उनका परिवार तबाह हो चुका। उन्हें इलाज नहीं मिला। उन्हें मौत मिली। बहुतों को मौत के बाद सम्मान तक नसीब नहीं हुआ।
मोदी सरकार ने सात साल में क्या कमाल का काम किया है, इन परिवारों को ये सुनकर कैसा लगेगा, ये बात पीएम के मन में एक बार भी नहीं आई?
जो किया देश ने किया, आपने क्या किया?
पीएम ने बताया कि देश दूसरी लहर से बड़ी बहादुरी से लड़ रहा है। कोई टैंकर से ऑक्सीजन पहुंचा रहा है, कोई विदेश से टैंकर ला रहा है लेकिन सरकार ने क्या किया?
पीएम के मन में एक बार भी नहीं आया कि देश से माफी मांगें कि फरवरी में कोरोना पर विजय का विश्व उद्घोष कर मैंने गलती की थी।
क्या वाकई में पीएम के मन में एक बार भी ये बात नहीं आई कि उनका जीत के भ्रम में जीना हजारों लोगों के लिए मौत बन गया? इस भ्रम में नहीं होते तो वैक्सीन देने आ रही कंपनियों को तब वापस नहीं करते।
पीएम ने ये बात तो बता दी कि वैक्सीन से हम कोरोना को हरा सकते हैं, लेकिन ये नहीं बताया कि वैक्सीन आएगी कहां से?
स्वास्थ्य मंत्रालय दिसंबर तक 216 करोड़ डोज वैक्सीन लाने लाने की बात कह रहा है। अगर ये वीके पॉल साहब के गणित पर आधारित है (क्योंकि और कोई हिसाब तो देश के सामने रखा नहीं गया) तो वो गड़बड़ गणित है।
जो वैक्सीनें अभी फेज एक-दो ट्रायल पर हैं उनकी कितनी सप्लाई होगी, ये भी जोड़ लिया गया है। नंबर किसने बताया है, कंपनी ने. वैक्सीन नहीं मिली तो जवाबदेही किसकी? कंपनी की। क्या हमने कंपनी को चुना था?
मान भी लिया कि दिसंबर तक आ जाएगी वैक्सीन तो तब तक क्या. तबतक जो संक्रमित होंगे, जो मरेंगे उनका क्या?
3 लाख से ज्यादा मौतें और एजेंडा वही?
मन की बात सुन कर मन में आशंका उठती है कि क्या इस दुष्काल के बाद भी सरकार अपने उसी एजेंडे पर है?
जब पीएम कहते हैं कि 7 साल में वो कर दिखाया जो 70 साल में नहीं हुआ और कहते हैं कि विवादों को शांति से सुलझाया तो क्या मंदिर की बात कर रहे थे? कश्मीर का जिक्र कर क्या 370 हटाने का जिक्र कर रहे थे?
जौनपुर के टैंकर चालक से क्या इसलिए बात की क्योंकि यूपी में अगले साल चुनाव हैं? एयरफोर्स, कैप्टन की चर्चा कर राष्ट्रीय प्रतीकों और सेना का फिर सियासी इस्तेमाल कर रहे थे? जब हवा के लिए जानें गई हों तो बिजली, पानी,सड़क, आम, लीची, कटहल कहना खल गया।
पीएम जब कहते हैं कि 7 साल में बड़ी कामयाबियां मिलीं, कई परीक्षाएं आईं, कोरोना भी एक परीक्षा है, जिससे हमें निकलना है तो लगता है कि सारा बोझ हमारे कमजोर, टूट चुके कंधों पर डाल रहे हैं।
क्या वाकई भ्रम है कि पीएम के मन की ये बात पब्लिक के मन को टीस नहीं पहुंचाएगी? ये परीक्षा सरकार की थी। फेल सरकार हुई है। इसे हमारी परीक्षा बनाने के पीछे मंशा जो भी हो लेकिन इस नाकामी को हमारी रिपोर्टकार्ड मत बनाइए। और परीक्षा देने की हमारी ताकत नहीं रही।
संतोष कुमार
(क्विंट की खबर से साभार)
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