इस साल की शुरुआत में ही चली गईं 11 करोड़ नौकरियां, औरतों में बेरोजगारी सबसे अधिक
दुनिया के श्रम बाजार की हालत में सुधार पर कई संकट मंडरा रहे हैं, जिनमें मुख्य हैं देशों में आपसी और आंतरिक असमानता।
ऐसा कहना है International Labour Organisation (ILO) Monitor के सोमवार को जारी किए गए 9वें संस्करण के World of Work में।
रिपोर्ट के मुताबिक, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी में भारी गिरावट आई है। साल 2021 के आखरी तिमाही में स्थिति में हुई सुधार के बाद 2022 के पहले तिमाही में कुल काम किए गए घंटों की संख्या कोरोना महामारी के पहले के स्तर से भी 3.8% नीचे आ गई है।
रिपोर्ट कहती है कि इसका मतलब इस दौरान लगभग 11.2 करोड़ नौकरियां गई हैं।
चीन में हाल ही में लगे लॉकडाउन की कुल काम किए गए घंटों की गिरावट में 86% भागीदारी है।
भारत और दूसरे निम्न-मध्य आय वाले देशों में महिलाओं और पुरुषों के बीच काम के घंटों की खाई 2020 के दूसरे तिमाही में बढ़ी थी।
लगेंगे 30 साल
हालांकि शुरुआत में महिलाओं द्वारा काम किए घंटे कम थे, इस वजह से इस बात का निम्न-मध्य आय वाले देशों के औसत पर कम असर पड़ा।
दूसरी तरफ, उच्च आय वाले देशों में पुरुषों और महिलाओं दोनों की काम में भागीदारी में बढ़ोतरी हुई है।
रिपोर्ट कहती है कि वर्तमान विकास दर से चलने पर उच्च आय वाले देशों में भी महिलाओं और पुरुषों के काम किए गए घंटों के बीच अंतर को खतम करने में 30 साल लगेंगे।
एक ILO के अधिकारी ने The Hindu अखबार को बताया कि हर 100 महिलाओं पर – जो महामारी के पहले काम करती थीं – औसतन 12.3 महिलाओं की नौकरी चली गई। पुरुषों से तुलना की जाए तो यह संख्या 7.5 है।
पिछले साल World Economic Forum (WEF) के Global Gender Gap Report 2021 में कहा गया था कि भारत ने महिलाओं और पुरुषों के बीच असमानता को 66.8% तक कम कर लिया है और 153 देशों की लिस्ट में भारत 112वें पायदान पर था। हालांकि ये खाई 2021 मे बढ़ी।
बेरोजगारी का मुद्दा
The Hindu के अनुसार ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार से गुहार लगाई है कि बेरोजगारी के मुद्दे पर ध्यान दें।
भारतीय मजदूर संघ (BMS) के जनरल सेक्रेटरी बिनॉय कुमार सिन्हा ने कहा, “महिलाओं में बेरोजगारी बढ़ी है, खासकर महामारी के बाद से स्वास्थ के क्षेत्र में। ILO की रिपोर्ट का सुझाव है कि मजदूरों की खरीदारी करने की क्षमता में सुधार लाना चाहिए। ILO द्वारा उचित रोजगार और उचित वेतन प्रस्तावित किया जा रहा है।”
“हालांकि भारत में ज्यादातर लोगों के पास उचित रोजगार नहीं है। अधिकतर मजदूर कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं और उनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होती है। Code on Wages 2019 में पास हुई थी लेकिन उसे उद्योगपतियों के दबाव में लागू नहीं किया गया है।”
AITUC जनरल सेक्रेटरी अमरजीत कौर ने कहा कि ILO के अनुमान ने भारत की दुर्गति को कम आंका है।
उन्होंने कहा, “हमारे आकलन के हिसाब से, जिनकी नौकरी महामारी के दौरान चली गई, उनमे से 30-60% मजदूर, यानि पाँच करोड़ लोगों ने, दुबारा कोई काम नहीं पकड़ा। MSME संगठनों के के सर्वे के अनुसार एक-तिहाई लघु एवं मध्यम उद्यम ठप हो गए। हॉकर और वेंडर फल और सब्जियों के गगनचुंबी दामों से परेशान हैं।”