2800 करोड़ की कम्पनी को मात्र 211 करोड़ में बेचा
मोदी-भाजपा सरकार के पास एक कुल्हाड़ी है। जिस पर एक लम्बा सा टेक लगा है राष्ट्रहित। इस राष्ट्रहित की कुल्हाडी से वह सरकारी कम्पनियों को एक-एक कर कांट-छांट रही है।
अभी 1974 से गठित सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (सीईएल) को बेच दिया गया है। 2800 करोड़ के सरकारी संस्थान को 211 करोड़ में नंदन फाइनेंस एंड लीजिंग को बेच दिया गया है।
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विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली यह सरकारी कम्पनी ने देश के विकास में काफी योगदान किया था। कम्पनी सौर फोटोवोल्टिक क्षेत्र में अग्रणी मानी जाती है। इसके अनुसंधान एवं विकास प्रयासों से देश में प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है। लेकिन मोदी सरकार को अब इसकी जरूरत नहीं है।
मोदी सरकार ने इससे पहले एयर इंडिया को बेच दिया था। रेल को बेचने के मार्ग में काफी आगे निकल चुकी है। बिजली को बेचने के लिए वह पूरा कानून ही लाने की तैयारी में है।
अर्थव्यवस्था की हालत हुई और खस्ता
सरकारी कम्पनियों को बेचने का यह काम राष्ट्रहित के नाम पर किया जा रहा है। ‘देश नहीं बिकने दूंगा’ की लफ्फाजी करने वाले मोदी से कोई पूछे कि और देश बिकने के क्या मायने होते हैं।
सरकारी कम्पनियों के बेचने से वहां के कर्मचारियों, मजदूरों पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। वे भी और नये आने वाले कर्मचारी-मजदूर निजी पूंजीपति के शोषण के कोल्हू में पेरे जाने को मजबूर हो रहे हैं। बिक चुके संस्थान अपने उप उत्पाद के तौर पर बेरोजगारी को बढ़ायेंगे और अर्थव्यवस्था की हालत को और खस्ता करेंगे।
लेकिन मोदी सरकार इन सब की परवाह किये बगैर एक के बाद दूसरे संस्थान को बेचने में आमादा है। क्योंकि उसे सिर्फ कारपोरेट पूंजी की चिंता है। बाकी कुछ भी उसके लिए मायने नहीं रखता है।
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