मोदी राज में पूंजीपतियों का बोलबाला, 2023 तक ज्यादातर ट्रेनों का हो जाएगा निजीकरण
By शशिकला सिंह
रेलवे का निजीकरण न करने के तमाम विरोधों के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार लगातार रेल के निजीकरण की दिशा में तेजी से क़दम बढ़ा रही है।
रेलवे की तमाम सेवाएं निजी हाथों मे देने, ठेका कर्मियों को नियुक्त करने के काम को भी रफ़्तार दे दी गयी है। 2023 तक भारी संख्या में ट्रेनों को प्राइवेट हाथों में सौंप दिया जायेगा।
मोदी सरकार देश में निजीकरण के माध्यम से मज़दूरों को आधुनिक गुलाम बनाना चाहती है। सभी क्षेत्रों में निजीकरण होने के बाद कुछ ही व्यक्तियों के पास पूरी तरह से पूंजी का केन्द्रीयकरण हो जायेगा।
साफ तौर नजर आ रहा है कि मोदी सरकार लगातार बड़े उद्योगपतियों की जेब भरती जा रही हैं। देश की जनता से GST की दरों में बेतहाशा वृद्धि कर पैसे ऐंठे जा रहे हैं।
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- रेलवे निजीकरण के कारण कुलियों के जीवनयापन पर मंडरा रहा है संकट
भारतीय रेल देश में गवर्नमेंट सेक्टर में सबसे बड़ा विभाग है। इसके निजीकरण से रेलवे के कर्मचारियों के वेतन और सुख सुविधा पर बुरा असर पड़ने वाला है।
वर्तमान में मोदी सरकार ने रेलवे के ज्यादातर सेक्टर्स को ठेकेदारों के हाथ में दे दिया गया है। रेलवे की तमाम सेवाएं निजी हाथों मे देकर ठेका कर्मियों को नियुक्त करने का काम तेज़ी से शुरू कर दिया गया है।
रेलवे प्रशासन ने काउंटरों और कर्मचारियों की व्यवस्था के काम को पहले निजी कंपनी के नाम कर दिया है। कर्मचारियों की ट्रेनिंग भी शुरू हो चुकी है। एक अगस्त से संबंधित काउंटरों पर निजी कर्मी तैनात हो गए हैं।
कई सुविधाओं को रेलवे ने किया बंद
नेशनल रेलवे मूवमेंट ऑफ़ सेव रेलवे के राष्ट्रीय प्रचार सचिव कमल उसरी ने वर्कर्स यूनिटी से बातचीत के दौरान कहा कि रेलवे का निजीकरण कर मोदी सरकार साफ तौर पर मज़दूरों को निशाना बनाना चाहती है। यह एक बहुत बड़ी लड़ाई है।
उनका कहना है कि रेलवे जनता की सवारी का सस्ता और सुलभ साधन है, तो इसको जनता को ही बचाना पड़ेगा। केवल कर्मचारियों और ट्रेड यूनियनों के विरोध से बड़ी जीत को हासिल नहीं किया जा सकता। अब इस लड़ाई में उन लोगों को जोड़ने की जरुरत है जिनकी सुविधाओं को रेलवे इन बंद कर दिया है।
उन्होंने बताया कि जैसे ही सरकार ने रेलवे को प्राइवेट करने का निर्णय लिया था, उसके कुछ दिनों के बाद से ही रेलवे में सीट आरक्षण में रियायत को सीमित करने का फैसला किया।
इसमें मुख्य रूप से वरिष्ठ नागरिक, खिलाड़ियों, शहीदों की विधवाओं और दिव्यांगों आदि को टिकट में मिलने वाले रियायती दरों पर आरक्षण टिकट को समाप्त किया है। अब समय की मांग यही कहती है कि सभी को एकजुट होकर आवाज़ उठाने की ज़रूरत है।
कमल का आरोप है कि मोदी सरकार देश में पूंजीवाद को लाना चाहती है। साथ ही देश की जनता दया को पर निर्भर करना चाहती है। उनका कहना है आज भी देश जनता जानती है कि अगर कही स्थाई रोज़गार है, तो वह सरकारी नौकरी में ही है।
महामारी के बाद 50 फीसदी ही चलाई गईं ट्रेनें
आप को बता दें कि कोरोना काल में जो पैसेंजर ट्रेनें बंद की गई थीं, उन्हें अभी तक शुरू नहीं किया गया है। ये कहना है ट्रेन परिचालन में उच्च पदस्थ अधिकारी का। उन्होंने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अभी तक पूरे देश में सिर्फ 50 प्रतिशत ट्रेनों को ही चलाया जा रहा है और इसी बीच ट्रेनों को प्राईवेट हाथों में देने की योजना पर भी तेजी से काम किया जा रहा है। मोदी सरकार चाहती है कि 2024 के पहले पहले अधिकांश ट्रेनों का परिचालन निजी हाथों में सौंप दिया जाए।
ज्ञात हो कि देश के कई स्टेशनों की तरह गोरखपुर रेलवे स्टेशन स्थित प्रतीक्षालय (वेटिंग हाल) के रख-रखाव की जिम्मेदारी पहले ही निजी कंपनी को सौंपी जा चुकी है। अब पूछताछ काउंटरों और क्लॉक रूम की बारी है।
फिलहाल, लखनऊ मंडल के अंतर्गत गोरखपुर जंक्शन, लखनऊ जंक्शन, बादशाहनगर, ऐशबाग, सीतापुर, मनकापुर, गोंडा, बस्ती और खलीलाबाद में एक अगस्त से नई व्यवस्था लागू करने की प्रक्रिया तेज हो चुकी है।
गौरतलब है कि सबसे पहले वित्त वर्ष 2023 में 12 निजी ट्रेनों की शुरूआत होगी। इसके बाद वित्त वर्ष 2023-24 में 45 ट्रेनें और बढ़ाई जाएंगी। वित्त वर्ष 2025-26 में 50 और निजी ट्रेनें इसमें शामिल होंगी। इसके बाद अगले वित्त वर्ष में 44 और ट्रेनें बढ़ा दी जाएंगी। वित्त वर्ष 2026-27 तक कुल 151 निजी ट्रेनों का परिचालन शुरू हो जाएगा।
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