AITUC : बजट महज चुनावी भाषण,झूठे दावों और जुमलों से भरा हुआ
इस साल का ये अंतरिम बजट वित्त मंत्री का एक चुनावी भाषण भर था. जिसमें उन्होंने अपनी सरकार की प्रशंसा करते हुए अप्रमाणित आंकड़ों और झूठ का बड़े ही बेशर्मी से इस्तेमाल कर ये साबित करने की कोशिश कि है की देश ने बीते एक साल में उपलब्धियां हासिल की हैं.
बजट एक बार फिर पूरी तरह से सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों, सहकारी समितियों और एमएसएमई के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय वित्त पूंजी और घरेलू सरकार के पसंदीदा कॉरपोरेट्स को लाभ पहुंचाने के लिए निर्देशित है, एफडीआई को प्रोत्साहित करने वाली नीति इस बात की स्पष्ट घोषणा करती है.
बजट के अनुसार सार्वजनिक संपत्तियों और बुनियादी ढांचे के निजीकरण और बिक्री का अभियान जारी रहना है. अमीरों के कर में कटौती जारी रहेगी लेकिन आम आदमी को सरकार के घाटे के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बढ़े हुए करों का सामना करना पड़ेगा.
रोज़गार
भाषण में 1.4 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित करने, 54 लाख युवाओं को रोजगार के लिए कुशल बनाने और सैकड़ों आईआईटी, आईआईएम, एम्स और विश्वविद्यालय स्थापित करने का दावा किया गया है. लेकिन उनके लिए रोजगार के अवसरों पर चुप है.
निश्चित अवधि के रोजगार को लागू किया जा रहा है. एक तरफ आउटसोर्सिंग, संविदाकरण को प्रोत्साहित किया जा रहा है और दूसरी तरफ स्वीकृत पद खाली हैं.
गंभीर बेरोजगारी और निराशा की स्थिति में हम देख रहे हैं कि कैसे राज्यों में भाजपा सरकारें पीएमओ के आदेश पर युवा बेरोजगारों को युद्धग्रस्त संघर्ष क्षेत्र इजरायल जाने के लिए लुभा रही हैं.
भाषण में 74 लाख रेहड़ी-पटरी वालों को ऋण सहायता देने का दावा किया गया है. जबकि उनकी स्वयं की स्वीकारोक्ति की केवल 2.3 लाख ऐसे लोगों को तीसरी बार क्रेडिट मिला है जो उनके सच्चाई को उजागर करता है.
मनरेगा के लिए बजट का आवंटन हर साल लगातार कम किया जा रहा है और इस साल भी यह 2022-23 में वास्तविक व्यय से 5 प्रतिशत कम है. इस आवंटन में किये गये कार्य का बकाया वेतन भी शामिल है.
दूसरी तरफ सच्चाई यह है कि नौकरी के लिए आवेदन करने वाले 56 मिलियन परिवारों में से केवल एक प्रतिशत को ही 100 दिनों का काम दिया गया. इसके साथ ही 5.48 करोड़ मनरेगा श्रमिकों को पंजीकृत जॉब कार्ड सूची से हटा दिया गया है.
कृषि
इस बजट में कृषि और संबद्ध सेवाओं के लिए अब तक का सबसे कम प्रावधान किया गया है. इनके बजट में 22.3 प्रतिशत की गिरावट देखी जा सकती है.
बजट भाषण में एमएसपी की गारंटी वाला कानून बनाने की मांग को दरकिनार करते हुए चरणबद्ध तरीके से न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाने की बात की गई है.
उर्वरक सब्सिडी के लिए आवंटन 2022-23 में खर्च से भी कम है. स्पष्ट रूप से यह नीति गरीब और सीमांत किसानों को खत्म करने के लिए की जा रही है.
गरीबी और कुपोषण
80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का दावा खुद सरकार ने किया है जो बताता है की देश में गरीबी बढ़ी है.
दूसरी तरफ यही सरकार 25 प्रतिशत गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर लाने का भी दवा कर रही है. जबकि सच्चाई ये है कि एक दशक पहले जो 19 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, उसमें 20 करोड़ की वृद्धि हुई है और यह संख्या बढ़ कर 39 करोड़ हो गयी है.
इस सरकार द्वारा गरीबी की परिभाषा बदलने के बावजूद विश्व भूख सूचकांक में भारत 125 देशों में से 112वें स्थान पर आ गया है.
5 साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सरकार खुद ही स्वीकार करती है की 65 फीसदी बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हो रही है .
क्राइम ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार दैनिक वेतन भोगियों के बीच आत्महत्याएं बढ़ी हैं. दूसरी ओर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए बजट आवंटन सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 1.5 प्रतिशत है.
महिला
श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी के झूठे दावे के उलट रोजगार के मामलें में वो उस स्तर तक भी नहीं पहुंच पाई हैं जो कोविड-19 से पहले मौजूद था.
महिलाओं के वेतन वाले रोजगार में नाटकीय रूप से गिरावट आई है. भारत के लिए लिंग समानता सूचकांक में और गिरावट आई है. दिसंबर 2023 तक निर्भया फंड का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा खर्च नहीं किया गया था.
शिक्षा
सार्वजनिक शिक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य में बजट आवंटन कम किया जा रहा था और यह प्रवृत्ति इस बार भी दिखाई दे रही है.
इस सच्चाई के विपरीत की बड़ी संख्या में सरकारी स्कूल बंद हो गए हैं, स्कूल बढ़ने का झूठा दावा किया जा रहा है. इसी तरह आईआईटी, आईआईएम, एम्स आदि के बारे में किए जाने वाले दावे भी जमीनी स्तर पर गुणवत्ता के साथ मौजूद नहीं हैं.
इसके अलावा और भी कई झूठ है जो इस बजट में बोले गए है:-
• कामकाजी लोगों का वेतन 50% बढ़ गया जबकि सच्चाई ये है की मज़दूरी कम हो रही है
• सरकार 53 लाख घर बनाने का दावा करती है, जबकि उनके खुद के आंकड़े बताते है कि केवल 13 लाख घर ही पूरा किये गए है
• बहुप्रचारित आयुष्मान भारत योजना की सिफारिशों में वादा किया गया ईएसआईसी कवरेज शामिल नहीं है
• सार्वजनिक क्षेत्र आधारित वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए धन लगातार कम हो रहा है, जबकि पीएम जय अनुसंधान का दावा करते हैं
(AITUC SECRTARIAT द्वारा जारी )
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