उत्तराखंडः बिना पुनर्वास के बनभूलपुरा को उजाड़ने की साजिश
बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा, हल्द्वानी जिला नैनीताल (उत्तराखंड) हल्द्वानी के गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती, किदवई नगर, इन्दिरा नगर पूर्वी, इंदिरा नगर पश्चिमी बनभूलपुरा के इस इलाके को रेलवे द्वारा जमीन के मालिकाने का झूठा दावा कर उजाड़े जाने के विरोध में बातें की गयी। रेलवे द्वारा आबादी वाली जगह जिसमें उत्तराखण्ड सरकार, लोगों के निजी स्वामित्व व पट्टे पर प्राप्त जमीन पर भी अपना दावा किया गया है।
रेलवे जिस जमीन पर मालिकाने का दावा कर रहा है, वहां 2 सरकारी इंटर कालेज हैं। 1944 से सरकारी प्राथमिक स्कूल स्थित है। एक माध्यमिक स्कूल और एक सरकारी चिकित्सालय भी बने हैं। यहां पर सड़क, बिजली, पानी आदि सुविधाएं भी सरकार द्वारा दी गई हैं। नगर निगम हल्द्वानी यहां लोगों से जमीन का कर लेता रहा हैं। जो दशकों ये यहां मौजूद हैं। जाहिर है कि ये सरकारी संस्थान सरकार द्वारा योजना बना, भूमि आवंटित कर, नक्शे पास कर बनाये गये हैं। रेलवे ने कभी भी इनके निर्माण पर आपत्ति दर्ज नहीं करवायी। ऐसे में रेलवे का भूमि मालिकाने का दावा मनगढ़न्त और बेबुनियाद है।
स्वामित्व का मामला-
1. सूचना के अधिकार के तहत नसीम टेलर ने तीन बिन्दुओं पर (1. हल्द्वानी रेलवे स्टेशन से लालकुआं स्टेशन को जाने वाली रेलवे लाइन के दोनों ओर रेलवे को हस्तांतरित भूमि की माप व क्षेत्रफल, 2. भूमि किस अधिसूचना द्वारा कब हस्तान्तरित/अधिग्रहित की गयी उसका ब्यौरा, 3. उक्त भूमि अर्जन/हस्तान्तरण किन परियोजनाओं के लिये किया गया इसका विवरण) 25/09/2017 को सूचना मांगी। जिस पर अन्ततः सूचना आयोग, दिल्ली तक पहुंचने के बाद पूर्वोत्तर रेलवे ने लगभग तीन साल बाद 12/11/2020 को आरटीआई/05/17/8280 में कहा ‘‘आवेदक कर्ता के द्वारा मांगी गयी सूचना के सम्बन्ध में अवगत कराना है कि लैण्ड प्लान 04 पृष्ठ में संलग्न है। इसके अलावा कोई भी सूचना उपलब्ध नहीं है।’’ साफ है कि रेलवे के पास स्वामित्व के कोई दस्तावेज नहीं हैं।
2. रेलवे 1959-60 का भूमि प्लान दिखाता है। जिसका मतलब है कि रेलवे की कोई योजना है, पर यह स्वामित्व का दस्तावेज नहीं है।
3. रेलवे ने राजस्व विभाग द्वारा 2007 में जारी हुयी खतौनियों को दिखाया है। जिसमें भूमि का प्रकार खेवट (स्थानान्तरणाधीन) दर्ज है। जिससे रेलवे द्वारा भूमि अर्जन/अधिग्रहण न होने की पुष्टि होती है। जो रेलवे के जमीन पर मालिकाने के दावे को गलत बताता है।
4. इसके बावजूद रेलवे आबादी वाले स्थान पर सीमांकन और नोटिस चस्पा कर उजाड़ने की बात कर रहा है।
5. उत्तराखण्ड सरकार ने उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका (MCC 16/2017) में शपथपूर्वक बिन्दु 20 में कहा है ‘‘उपर्युक्त दस्तावेजों से स्पष्ट है कि रेलवे विभाग ने न तो ईमानदारी से कार्यवाही की, न ही न्यायसंगत और उचित व्यवहार किया। लेकिन माननीय न्यायालय के 9/11/2016 की कार्यवाही के निर्णय की आड़ में राज्य सरकार की सम्पत्ति को; और यहां तक कि उन व्यक्तियों जिनके पास जमीन का वैध अधिकार है या वे जिनकी सम्पत्ति अतिक्रमणकारी चिन्हित होने के अधीन है; को हथियाया है, यह न सिर्फ गैरकानूनी है बल्कि न्याय के अनुसार भी शर्मनाक है।’’
6. यद्यपि हल्द्वानी रेलवे स्टेशन 1883-84 में बना है, पर औपनिवेशिक काल से लेकर आज तक यह भूमि कभी रेलवे के पास नहीं रही। यह सरकारी नजूल भूमि, लोगों की निजी जमीन या भू-पट्टे वाले वाली भूमि है, जिस पर रेलवे दावा कर रहा है।
बनभूलपुरा का मामला-
रेलवे 29 एकड़ जमीन पर मालिकाने की बात कर रहा था। जिसमें बनभूलपुरा के इन्दिरा नगर पूर्वी, इन्दिरा नगर पश्चिमी, किदवई नगर, आदि का इलाका आता है। यही वह भू-क्षेत्र है जिस पर रेलवे के पास भूमि के स्वामित्व के कोई दस्तावेज नहीं हैं। पूर्वोत्तर रेलवे ने मामले की सुनवाई करते हुए अपने फैसले में 31.87 हेक्टेयर जमीन पर दावा किया है। रेलवे जमीन पर अपने दावे को बेवजह बढ़ाते जा रहा है। उसके इन मनमाने दावों को रोकने की कोई विधिक कार्यवाही उच्च न्यायालय भी नहीं कर रहा है।
बनभूलपुरा का संघर्ष
फरवरी माह 2022 में बनभूलपुरा के लोगों को रेलवे प्रशासन द्वारा अलग-अलग चौराहों पर नोटिस चस्पा कर घर खाली करने का आदेश दिया गया। मामला उसके बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल में पहुंचा है। उत्तराखंड हाईकोर्ट में समाचार पत्रों के माध्यम से जिलाधिकारी नैनीताल ने बताया कि इस जगह को खाली करने के लिए कितने करोड़ की रकम खर्च होगी, इतना खर्चा आएगा, पुलिस फोर्स को इस जगह रुकवाया जाएगा। इतनी तारीख तक बनभूलपुरा के इलाके में लाइट काट दी जाएगी आदि-आदि बातें कही गई। इसके बाद इस इलाके में 4 मई, 2022 को क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और परिवर्तनकामी छात्र संगठन व बस्ती निवासियों ने मिलकर एक ज्ञापन एसडीएम हल्द्वानी के माध्यम से मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार को भेजा गया। ज्ञापन में कहा गया कि यहां लोग वर्षों से निवास कर रहे हैं उनके पास तमाम सारे कागजात मौजूद हैं इसलिए इन लोगों को यहां से ना उजड़ा जाए। इसके पश्चात इस इलाके को बचाने के लिए, इस इलाके के घरों, स्कूलों, अस्पतालों आदि जगह को बचाने के लिए मई माह में ही बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा का गठन किया गया। इस संघर्ष समिति में उक्त संगठनों के अलावा बनभूलपुरा के निवासी मौजूद हैं। 16 मई, 2022 को शहर में बाल सत्याग्रह कर इस इलाके को बचाने की अपील की गई। उत्तराखंड हाईकोर्ट में इन परिवारों को बचाने के लिए जनहित याचिका दायर की गई।
4 जून 2022 को स्थानीय विधायक सुमित हृदेश को ज्ञापन देकर मांग की गई बनभूलपुरा के मामले को आगामी विधानसभा सत्र में मजबूती से उठाया जाए और इतनी बड़ी आबादी को बेघर होने से बचाया जाए। इस संघर्ष के बाद विधायक ने मामले को विधानसभा में उठाया। नैनीताल संसदीय क्षेत्र के सांसद अजय भट्ट के इस इलाके के बारे में कोई कार्यवाही नहीं करने को लेकर 13 जून को शहर में ‘सांसद लापता है’ के पोस्टर चस्पा किए गये। जिसके पश्चात सांसद शहर में पहुंचे और उन्होंने बस्ती में लोगों को उजाडे जाने को लेकर अपनी हमदर्दी प्रकट की। 2 जुलाई, 2022 को याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी को एक बाल आग्रह पत्र देने का कार्यक्रम स्थानीय बच्चे और महिलाओं द्वारा रखा गया था। 1 जुलाई को इसकी सूचना स्थानीय एसडीएम कोर्ट हल्द्वानी में दी गई और रविशंकर जोशी के घर पर जाकर यह बताया गया कि हम 2 तारीख को ज्ञापन देंगे। उन्होंने एसडीएम कोर्ट में ही आने का वायदा कर वहीं ज्ञापन लेने की बात कही। रविशंकर जोशी ज्ञापन लेने नहीं आये। उत्तराखंड हाईकोर्ट में संघर्ष समिति से खतरे की बात कहकर रविशंकर जोशी ने सुरक्षा की मांग की। जो सुरक्षा उनको पहले से ही मिली हुई थी। अपने लिए और सुरक्षा की मांग कर रविशंकर जोशी ने मामले को अपने पक्ष में भुनाने का काम किया। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल एसएसपी को इस मामले की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा गया। संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं के बयान पुलिस द्वारा ले लिए गए हैं। संघर्ष समिति ने 11 जुलाई को एसएसपी को ज्ञापन प्रेषित कर मांग की गई कि रविशंकर जोशी द्वारा लगाए गए आरोप झूठे और मनगढ़ंत हैं। जो बच्चे और महिलाएं उनको आग्रह पत्र देना चाहते थे उनके मना करने पर उनको नहीं दिया गया है।
बस्ती बचाओ संघर्ष समिति बनभूलपुरा का मानना है कि इस मामले को जनता की लड़ाई के साथ-साथ न्यायालय में भी चुनौती देने की जरूरत है। क्योंकि 2017 में उत्तराखंड सरकार इस जमीन को अपना बताती रही है और आज वह इसकी पैरवी नहीं कर रही है। इस इलाके में रहने वाली बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक है और आज पूरे देश भर के अंदर मजदूर-मेहनतकशों, अल्पसंख्यकों पर सरकारें हमलावर हैं। उसी कड़ी में यहां भी लोगों के जनवादी अधिकारों का घोर उल्लंघन किया जा रहा है। जिसके लिए आज सभी न्याय और इंसाफपसंद लोगों को सामने आकर उनके पक्ष में खड़े होकर संघर्ष करने की जरूरत है।
पुनर्वास का मामला-
गफूर बस्ती, ढोलक बस्ती; दो ऐसी बस्तियां हैं, जो रेलवे लाइन से सटी हुयी हैं। इनके बारे में 12 जून 2011 में पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को इन दो बस्तियों के 2000 परिवारों के पुनर्वास के लिए पत्र प्रेषित किया था।
तब से लगातार मुख्य सचिव उत्तराखण्ड सरकार से राजीव आवास योजना के जरिये आवास देने से लेकर वनक्षेत्राधिकारी द्वारा वन भूमि आवंटित करने, मुख्य नगर अधिकारी द्वारा पुनर्वास हेतु 2 हेक्टेयर जमीन देने की बातें हुयी। 29/10/2016 में उत्तराखण्ड सरकार ने ढोलक बस्ती, गफूर बस्ती आदि बस्तियों का पुनर्वास हेतु सर्वे की बात की। लेकिन अभी तक बस्तियों के पुनर्वास का मामला अधर में लटका पड़ा है। इन तथ्यों से साफ है कि एक दशक बाद भी सरकार ने पुनर्वास की कार्यवाही पूरी नहीं की है।
संलग्न-
1. 12/11/2020 में रेलवे द्वारा नसीम टेलर को सूचना अधिकार पत्र सं. 05/17/8280 की छायाप्रति।
2. खतौनियों की छाया प्रति।
3. उत्तराखण्ड सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका में प्रस्तुत शपथ पत्र MCC 16/2017 ।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)