बांग्लादेश में अचानक पेट्रोल-डीजल के दाम डेढ़ गुना, पाकिस्तान में दो गुना हुए, भारत का क्या होगा?
By मुकेश असीम
बांग्लादेश में कल पेट्रोल डीजल के दाम एक झटके में ही 51.7% बढ़ा दिए गए, डेढ़ गुने से भी ज्यादा हो गए। मंत्री नसरुल हमीद ने कहा है, “नये दाम सबको सहनीय नहीं लगेंगे। पर हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। जनता को सब्र रखना होगा।”
क्यों? क्योंकि आयात के लिए विदेशी मुद्रा नहीं है। आईएमएफ से कर्ज लेना है। उसकी शर्त है ‘सबसिडी’ घटाओ।
जी हां, ‘सबसिडी’ नहीं घटायेंगे, आम लोगों से वसूली नहीं बढ़ाएंगे, तो देशी विदेशी पूंजी को बड़ी बड़ी रियायतें कहां से देंगे?
तीव्र पूंजीवादी वृद्धि, जीडीपी बढ़ने, प्रति व्यक्ति औसत आय बढ़ जाने वगैरह वगैरह की जो भी खबरें हम सुनते हैं उनका नतीजा यही होता है।
पहले इस नतीजे के आने में दशकों लग जाते थे, अब घटते घटते कुछ साल ही लगने लगे हैं। हम खबर सुनना शुरू ही करते हैं भारी और तेज विकास की, कि सुखद लगने वाली खबर संकट की खबरों में बदल जाती है।
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श्रीलंका को 2019 में ही विश्व बैंक ने उच्च मध्य आय वाले देशों में शामिल किया था, सबसे अमीर देशों से बस एक पायदान नीचे। अब 2022 में देखिए।
हम अपने देश के तजुर्बे से जानते ही हैं कि यह तीव्र वृद्धि, भारी विकास असल में चंद पूंजीपतियों के मुनाफों के अंबार के सिवा कुछ नहीं होता। हां, इस बीच बैंक व अन्य वित्तीय कंपनियां खुलकर कर्ज बांटते हैं तो उससे आम मेहनतकश जनता और मध्य वर्ग में भी थोडी चमक दमक का अहसास होने लगता है।
बांग्लादेश तो इस प्रयोग का केंद्र रहा है, वहां के ग्रामीण बैंक के मौहम्मद यूनुस तो गरीब स्त्रियों को कर्ज बांट, किश्तों पर मोबाइल बेच गरीबी दूर करने वाले फरिश्ते का नोबेल पुरस्कार पा गए, खूब मालामाल भी हो गए, वो अलग से। बाद में उनके बहुत से झूठ सामने आए, पर उससे क्या?
बांग्लादेश सस्ते मजदूरों की बड़ी संख्या
हां, बांग्लादेश में सस्ते मजदूरों की बड़ी तादाद उपलब्ध थी तो भारत व अन्य मुल्कों के कई पूंजीपति अपने कारखाने वहां ले गए। इसलिए भी कि मजदूरों से कैसे ही कितना भी काम कराओ, कितने भी असुरक्षित माहौल में, कितने मर जायें, वहां की हुकूमत को कोई ऐतराज नहीं।
याद करिए, अभी कुछ साल पहले ऐसी एक ही ‘दुर्घटना’ में वहां 1200 मजदूर मारे गए थे – कपड़ों के कारखाने की पूरी इमारत धराशाई हो गई थी।
उधर पाकिस्तान ने डीजल पेट्रोल बिजली दरें डेढ़ से दो गुनी कर दीं तब भी आईएमएफ अभी संतुष्ट नहीं है। शरीफ सरकार के बजाय अब खुद फौजी जनरल ही अमरीका, सऊदी, यूएई फोन लगा मदद मांग रहे हैं।
पर उससे क्या? जीडीपी बढी, प्रति व्यक्ति औसत भी ऊंचा हुआ, पर नतीजा वही जो सभी देशों में हो रहा है।
भारत बडा देश है, अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्र हैं, पूंजीवाद भी बडा और अधिक चालाक है तो संकट को अचानक उस हालत तक नहीं पहुंचने देता जिससे हमारे चारों ओर वाली खबर का हिस्सा बने, पर यहां भी अधिकांश मेहनतकश आबादी के ‘अमृतकाल’ की हकीकत तो हम जानते ही हैं।
भारत और इसके चारों ओर के दक्षिण एशियाई मुल्कों की अर्थव्यवस्था बारूद के ढेर पर है। उक्रेन के बाद ताइवान में भी साम्राज्यवादी गिरोहों ने जंग छेडी तो हालात और भी भयावह होंगे। शासक चाहते हैं जनता सब्र रखे! जनता कितना सब्र रखेगी?
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