दुर्गापूजा पर टिप्पणी करने पर काशी विद्यापीठ के दलित प्रोफेसर को निकाला
वाराणसी में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में एक दलित टीचर को सोशल मीडिया पर सुझाव देने के कारण नौकरी से निकाल दिया गया है। इतना ही नहीं विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने पर भी रोक लगा दी गयी है।
हिंदी के वरिष्ठ लेखक और आलोचक वीरेंद्र यादव ने इस मामले पर लिखा है कि संविधान को सर्वोपरि बताएंगे तो नौकरी जा सकती है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के राजनीति शास्त्र के दलित अतिथि प्रवक्ता मिथिलेश कुमार गौतम की सेवाएं तत्काल प्रभाव से उनकी सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी के कारण समाप्त कर दी गईं।
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उनके विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। उनका अपराध यह था कि उन्होंने अपनी टिप्पणी में लिख दिया था कि ” नौ दिनों के व्रत के बजाय यदि स्त्रियाँ संविधान और हिंदू कोड बिल का पाठ करें तो उनका जीवन भय और दासता से मुक्त होगा। जय भीम.” यानि बाबा साहेब आंबेडकर की जय के साथ तर्क बनाम आस्था की बात करना जोखिम भरा है, क्योंकि बदले भारत में इससे किसी की भावनाएं आहत हो सकती हैं।
लगता है धार्मिक कर्मकांड , पाखंड आदि के विरुद्ध तर्क व वैज्ञानिक सोच की बात कहने सुनने के दिन अब भारतीय समाज में लद गए और अज्ञान व आस्था ही अब रोशनी की मीनार है। मनुस्मृति बनाम संविधान की बहस भी अब जोखिम से खाली नहीं है। अंत में वीरेंद्र लिखते हैं कि देश सचमुच बदल गया है।
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भीम आर्मी महिला विंग सहित कई दलित समूहों ने अतिथि व्याख्याता के समर्थन में कहा है कि विश्वविद्यालय की कार्रवाई सत्ता का घोर दुरुपयोग है।
इनमें से कुछ समूह उनकी बहाली की मांग को लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन से मिलने की योजना बना रहे हैं।
(संलग्न समाचार आज के ‘दि हिन्दू’ के मुखपृष्ठ पर प्रकाशित है)
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