इंडियन बैंक का तुगलकी फरमान, महिला कर्मी गर्भवती है तो नहीं मिलेगा काम, क्या कहता है कानून जानें यहां
दिल्ली में इंडियन बैंक ने हाल ही में कर्मचारियों के लिए भर्ती के नए दिशा निर्देश जारी किये हैं। जिसके बाद दिल्ली महिला आयोग ने इंडियन बैंक के महाप्रबंधक (मानव संसाधन) को समन जारी किया है।
आयोग ने इंडियन बैंक द्वारा कर्मचारियों की भर्ती के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने की मीडिया रिपोर्टों के बाद ये फैसला लिया है।
बैंक ने कथित तौर पर ऐसे नियम बनाए हैं, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई महिला उम्मीदवार तीन महीने की गर्भवती है, तो उसे ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ माना जायेगा और उसका चयन होने पर उसे तत्काल कार्यभार नहीं दिया जाएगा।
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इंडियन बैंक ने अपने जवाब में आयोग को सूचित किया कि गर्भावस्था की स्थिति में महिला उम्मीदवारों के शामिल होने के लिए उनके द्वारा कोई नये दिशानिर्देश जारी नहीं किये गये थे, बल्कि वह कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, भारत सरकार द्वारा जारी मौजूदा दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं।
क्या कहता है कानून
आप को बता दें कि 1958 में भारत सरकार ने 12 सप्ताह की गर्भवती पाए जाने पर महिलाओं को अस्थायी रूप से अयोग्य घोषित किये जाने के लिए जारी दिशा निर्देश, को कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा 1985 में संशोधित किया गया था।
इसके अलावा, इंडियन बैंक ने आयोग को सूचित किया कि वे महिला कर्मचारियों के कार्यभार से जुड़ी किसी भी अस्पष्टता को दूर करने के लिए अपने ‘फिटनेस प्रमाणपत्र’ में सुधार कर रहे हैं।
सुधार में मुख्य रूप से महिलाओं की गर्भावस्था की स्थिति के साथ-साथ गर्भाशय/गर्भाशय ग्रीवा/अंडाशय या स्तन के रोगों के उनके इतिहास की जानकारी मांगी गयी है।
संशोधित प्रारूप भी महिलाओं के खिलाफ भेदभाव करता है क्योंकि इसमें महिलाओं की बीमारियों का विवरण मांगा गया है जबकि पुरुष विशिष्ट बीमारियों का कोई जिक्र नहीं है।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने इस पर कड़ा संज्ञान लिया है और भेदभावपूर्ण दिशा-निर्देशों को वापस नहीं लेने और इसके बजाय महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह को दर्शाता एक नया फिटनेस प्रमाणपत्र बनाने की वजह बताने के लिए इंडियन बैंक को सम्मन जारी किया है।
आयोग ने भारत सरकार को लिखा पत्र
इसके अलावा, आयोग की अध्यक्ष, स्वाति मालीवाल ने भारत सरकार से मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने की मांग का भी पत्र लिखा है। आयोग ने कहा है कि कई अन्य बैंक और विभाग इन पुराने दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं जो 35 साल पहले जारी किए गए थे।
आयोग ने विभाग को इस मामले की जल्द से जल्द जांच करने और सभी विभागों और बैंकों से गर्भवती महिलाओं के कार्यभार ग्रहण करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाने का अनुरोध किया है।
साथ ही इस मुद्दे पर तत्काल स्पष्टीकरण जारी करने का आग्रह किया है।
आयोग ने की दिशा-निर्देशों को वापस लेने की मांग
आयोग ने विभाग से महिलाओं के खिलाफ किसी भी तरह के भेदभाव को रोकने के लिए ‘सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2022’ के अनुरूप अपने दिशानिर्देशों को संशोधित करने के लिए भी कहा है।
दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा स्वाति मालीवाल ने कहा, “यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि इंडियन बैंक ने अपने लिंगभेदी दिशा निर्देशों को वापस नहीं लिया है। इसके बजाय उन्होंने एक नया फिटनेस प्रमाणपत्र विकसित किया है जो कि भेदभावपूर्ण प्रतीत होता है।
यह मामला उन लोगों की पितृसत्तात्मक मानसिकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो गर्भवती होने पर एक महिला को ‘अस्थायी रूप से अयोग्य’ मानते हैं। जब आयोग ने इसी तरह के मामले में SBI को नोटिस जारी किया था, तो उन्होंने तुरंत अपने गलत दिशा-निर्देशों को वापस ले लिया था।
“हमने इंडियन बैंक के अधिकारियों को समन जारी किया है और मामले में कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी है। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को बैंकों और अन्य विभागों को तत्काल पत्र भेजकर उनसे अपने लिंगभेदी दिशा निर्देशों को वापस लेने का आग्रह करना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “मातृत्व लाभ हर गर्भवती महिला का अधिकार है जिसे किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता।”
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