दिल्ली: DTC के ठेका कर्मचारियों की ESI बंद, डिपो मैनेजमेंट द्वारा मनमानी ढंग से लिया जाता है काम

दिल्ली: DTC के ठेका कर्मचारियों की ESI बंद, डिपो मैनेजमेंट द्वारा मनमानी ढंग से लिया जाता है काम

दिल्ली परिवहन निगम यानि डीटीसी में ठेके पर 8 हजार ड्राइवर और 15 हजार  कंडेक्टर किलोमीटर योजना से परेशान है।

डीटीसी चार ज़ोन में बंटा है, जिसमें 118 वीवीएम डिपो है  इसमें एक दिन  में बसें 100 किलोमीटर चलती हैं। 912  कश्मीरी गेट डिपो की बसें एकदिन में 150 किलोमीटर चलती हैं।

इन बसों के ड्राइवरों को एक किलोमीटर पर 8 रूपये 22 पैसे मिलते हैं। अगर ये ड्राइवर महीने में 2250 किलोमीटर से ज्यादा चलाते हैं तो इनको  2250 किमी से  अधिक चलाने पर 8 रुपये 61 पैसे मिलते हैं।

गाड़ी ख़राब / ब्रेक डाउन  होने पर 783 रुपये दिहाड़ी मिलती है

अगर कोई गाड़ी डिपो से निकलने के बाद सड़क पर ब्रेक डाउन हो जाता है तो उस दिन की दिहाड़ी 783 रुपये मिलती है।

डीटीसी  वर्कर्स यूनिटी के सचिव राजेश का कहना है कि,  कोरोना से पहले तक ठेके के  उन कर्मचारियों को जिनका वेतन 15 हजार रुपए से कम था उन्हें ईएसआई हेल्थ कार्ड मिलता था,  अगर कोई ड्राईवर बीमार हो जाता था तो उस कार्ड से  उसका ईलाज और बीमार दिनों की दिहाड़ी मिल जाती थी, लेकिन वो अब बंद कर दिया गया है।

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सरकार कहती है कि उस समय 5 रूपये प्रति किमी  मिलते थे और अब 8 रुपए 22 पैसे प्रति किमी मिलते हैं, इसलिए ईएसआई कार्ड बंद कर दिए।

राजेश कहते हैं – लेकिन हम सरकार से पूछते हैं कि इस दौरान बढ़ती महंगाई , कोरोना  जैसी चीजों ने हमारे जीवन पर बहुत बुरा असर किया है और सरकार ने उस दौरान हमारी कोई मदद नहीं की थी , तो इसे किस आधार पर बंद कर दिया?  कोरोना के दौरान मार्च 2020 में केजरीवाल सरकार ने हमें सिर्फ 15 मार्च तक यानि आधे महीने का ही वेतन दिया था।

सरकार ने कोरोना के हम ड्राइवरों को आर्थिक अनुदान देने का दावा किया है लेकिन वह पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन और इन्टरनेट आधारित था जिसे अधिकतर ड्राइवर और  संचालक नहीं समझ पाए थे,  क्योंकि लॉकडाउन के बाद अधिकतर ड्राइवर और संचालक अपने गाँव चले गये थे जहाँ इंटरनेट आदि की सुविधा नहीं थी।

इस योजना का लाभ केवल उन्हीं को मिला जो दिल्ली में रह गये थे।

एक्टू के अभिषेक डीटीसी कर्मचारियों की समस्याओं  पर कहते हैं कि सबसे बड़ी गड़बड़ी तो यह है कि  लोग कलस्टर बसों को भी डीटीसी की बसें बोलते हैं , वे डीटीसी की बसें नहीं हैं , वो प्राइवेट बसें हैं  और उनकी  सर्विस कंडिशन  अगल और  हालत बहुत बुरी है।

डीटीसी से अनुबंध पर करते हैं काम 

अभिषेक आगे कहते हैं कि डीटीसी में लोग सीधे अनुबंध पर काम करते हैं  वे  बाकी संस्थाओं की तरह इनके बीच में कोई कंट्राक्टर नहीं  होता।  डीटीसी में किलोमीटर वाला मामला बहुत पेचीदा है।

मतलब जब भी आप आधिकारिक तौर पर देखेंगे  मने यदि आप किसी ड्राइवर की सैलेरी स्लिप देखेंगे तो उस  पर साफ़ डेली वेजर लिखा हुआ  रहता है, उस पर कहीं भी किलोमीटर का जिक्र नहीं होता।

लेकिन जब काम की बात आती है तो कहा जाता है कि आपको इतने किलोमीटर गाड़ी चलानी है, लेकिन यह भी आधिकारिक तौर  पर कहीं नहीं होता।

लेकिन सड़क की  हालत पर तो ड्राइवर का कोई बस होता नहीं और पेमेंट भी  डेलीवेज के हिसाब से ही देते हैं। एक दिक्कत यह भी है कि खुद इन ड्राइवर और कंडक्टरों को ही नहीं पता कि वे किलीमीटर के तहत नहीं , डेलीवेज मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं।

डीटीसी की असली समस्या 

अभिषेक कहते हैं कि डीटीसी  की असली समस्या यह है कि वहां मनमाने तरीके से  ठेका कमर्चारियों से काम लिया जाता है।  सबसे  दिक्कत जो  कोई ड्राइवर या  कंडक्टर  सामना करता है , जिसमें कंडक्टर कम  और ड्राइवर को ज्यादा  सामना करना पड़ता है , वह यह कि जब वो काम के लिए डिपो पहुंचता है  तो उससे कहा जाता है कि आपके  लायक ड्यूटी आज नहीं है।  अब सवाल है कि , वह ड्राइवर तो ड्यूटी पर पहुंचे , लेकिन उसे काम तो डिपो ने नहीं दिया तो इसमें उस ड्राइवर की क्या गलती?  ऐसे में उसे वहीं डिपो पर बैठा दिया जाता है , कभी तीन से चार घंटे तक उसे बैठाकर रखा जाता है , फिर यदि उसे ड्यूटी मिली भी तो उससे 12 से 14 घंटे तक काम करना पड़ता है।

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जो कमर्चारी थोड़े एग्रेसिव हैं वो कह देते हैं – मैं नहीं करता , जो करना है , कर लो , तो वे बच जाते हैं। कहने का मतलब कि डीटीसी में  इन ड्राइवर और कंडक्टरों का शोषण ऑफिसियल नहीं , अनऑफिसियल किया जाता डिपो मैनेजर/ प्रबंधनों द्वारा।  इसमें जो लोग लड़ गये मैनेजर से  वे बच जाते हैं जो नहीं विरोध कर पाते वे फंस जाते हैं।

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WU Team

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