‘बुलडोज़र राज’ के विरोध में जंतर-मंतर पर मज़दूर संगठनों का प्रदर्शन
दिल्ली के जंतर मंतर पर देश में चल रहे ‘बुलडोज़र राज’ के खोलाफ हज़ारों की संख्या में झुग्गियों, बस्ती कॉलोनियों में रहने वाले और असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों ने प्रदर्शन किया।
साथ ही अपनी मांगों का एक सामूहिक मांग पत्र प्रधान मंत्री और शहरी गरीब मंत्री को दिया। मजदूर आवास संघर्ष समिति के बैनर तले हज़ारों मज़दूरों की मांग है कि सभी के पुनर्वास को पहले सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
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प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जहां एक तरफ देश आज़ादी का अमृत महोत्सव को मना रहे हैं, उसी समय झुग्गियों, बस्ती कॉलोनियों में रहने वाले और असंगठित क्षेत्र के हजारों श्रमिकों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया हैं।उनका कहना है कि बिना किसी पुनर्वास के अपनी आजीविका से वंचित भी कर दिया गया है।
मजदूर आवास संघर्ष समिति के सदस्यों का कहना है कि एक तरफ सरकार गरीबों और मजदूरों की हितैषी होने का दिखावा कर रही है तो दूसरी तरफ रोज़ी-रोटी और मकान की तबाही का जश्न मना रही है।
दिल्ली में नफरत का माहौल बनाकर सरकार सांप्रदायिक एजेंडे को हवा देते हुए तोड़फोड़/बेदखली के इन अभियानों को आगे बड़ा रही है और इस तरह मजदूर वर्ग की एकता को भी तोड़ने का प्रयास कर रही है।
सरकार के पास आवास की कोई योजना नहीं
मजदूर आवास संघर्ष समिति ने बताया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण ने दिल्ली-एनसीआर में 63 लाख घरों को बेदखल करने की घोषणा की, लेकिन पुनर्वास के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया।
इसके अतिरिक्त, असंगठित क्षेत्र के 50,000 मजदूरों के लिए कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है, न ही सरकार द्वारा उनके आवास की योजना है, जबकि दिल्ली में 28,000 घर खाली पड़े हैं।
जमीनी हकीकत इस दावे का भी खंडन करती है कि प्रधानमंत्री आवाज योजना के तहत मार्च, 2022 तक लगभग 123 लाख घरों को मंजूरी दी गई है।
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सभी झुग्गी बस्तियों और श्रमिक कॉलोनियों के आवासों की ओर से, यूनियनों और संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए जिनमें मजदूर आवास संघर्ष समिति, हॉकर्स ज्वाइंट एक्शन कमेटी, वर्किंग पीपल्स कोएलिशन, ऐक्टू, धोबीघाट झुग्गी अधिकारी मंच फरीदाबाद आरडब्ल्यूए, रेहड़ी पटारी विकास संघ, बस्ती सुरक्षा मंच, सामाजिक न्याय एवं अधिकार समिति, आरडब्ल्यूए दयाल नगर, कृष्णा नगर ग्राम विकास समिति, आगरा आवास संघर्ष समिति, आश्रय अभियान बिहार, बेला राज्य आवास संघर्ष समिति, दिल्ली घरेलू कामगार संघ, दिल्ली शहरी महिला कामगार संघ, संग्रामी घरेलु कामगार संघ, दिल्ली रोज़ी रोटी अधिकार अभियान।
ट्रेड यूनियनों की मुख्य मांगे
- जबरन विस्थापन (बेदखली) पर तत्काल रोक लगाए।
- पूर्ण पुनर्वास से पहले विस्थापन नहीं।
- वंचित बस्तियों का सर्वेक्षण कर पुनर्वास के लिए सुनिश्चित करें।
- जबरन बेदखली करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
- हर राज्य की एक पुनर्वास नीति होनी चाहिए जिसकी कट ऑफ डेट 2021 की जाए।
- स्ट्रीट वेंडर हॉकर्स आदि का सर्वे तत्काल कर सीओवी दें और सीओवी का सम्मान करें।
- असंगठित श्रमिकों को नियमित करें और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
- 20-30% शहरी क्षेत्र श्रमिकों के लिए आरक्षित होना चाहिए।
आप को बता दें कि COVID-19 महामारी की शुरुआत से लेकर अब तक, 6 लाख से अधिक लोगों को उनके घरों से बेदखल किया जा चुका है और लगभग 1.6 करोड़ लोग अब विस्थापित होने के खतरे और अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बजाय बुलडोजर का उपयोग करके “न्याय” देने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
DUSIB नीति 2015, 676 मान्यता प्राप्त मलिन बस्तियों के निवासियों के पुनर्वास की गारंटी देती है, हालांकि यह उन सैकड़ों मलिन बस्तियों/बस्तियों पर चुप है जिनका सर्वेक्षण भी नहीं किया गया है। हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और तमिलनाडु जैसे कई अन्य राज्यों में भी ऐसी ही स्थिति है।
गौरतलब हैं कि एनसीआरबी की रिपोर्ट “भारत में दुर्घटना से होने वाली मौतें और आत्महत्याएं” – से पता चलता है कि 2021 में आत्महत्या पीड़ितों के बीच दैनिक वेतन भोगी सबसे बड़ा व्यवसाय-वार समूह बना रहा, जो दर्ज किए गए 1,64,033 आत्महत्या पीड़ितों में हर चार में से एक है।
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