शहरी बेरोजगारों के लिए जॉब गारंटी, यूनिवर्सल बेसिक इनकम से होगी आय की असमानता कम: EAC-PM की रिपोर्ट
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष विवेक देबरॉय ने भारत में असमानता की स्थिति पर 18 मई को एक रिपोर्ट जारी की जिसमे शहरी बेरोजारों के लिए रोजगार गारंटी योजना और आय की असामनता को घटाने के लिए न्यूनतम आय योजना या यूनिवर्सल बेसिक इनकम (UBI) जैसी स्कीम लागू करने का सुझाव दिया है।
यह रिपोर्ट गुरुग्राम के इंस्टिट्यूट ऑफ़ कॉम्पेटिटिवेनेस द्वारा तैयार किया गया है। इस रिपोर्ट में भारत में आय वितरण के विषम असामनता को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम आय को बढ़ाने के लिए सुझाव दिए गए हैं।
साथ ही साथ सामाजिक क्षेत्र में ज़्यादा खर्च करने की सलाह यह रिपोर्ट देती है ताकि कमजोर आर्थिक स्थिति के लोगों को तात्कालिक झटकों से थोड़ी सुरक्षा मिले और उनका गरीबी में पतन ना हो।
श्रम बल में प्रतिभागिता में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंतर
रिपोर्ट के मुताबिक़ शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में श्रम बल में प्रतिभागिता में अंतर को मद्देनज़र रखते हुए ये समझ बनती है कि महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) की तरह, शहर के लिए भी ऐसी स्कीम की ज़रूरत है जो की मांग पर आधारित हो और अधिशेष श्रम का पुनर्वास हो सके।
श्रम बाजार में आय का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए UBI और न्यूनतम आय को बढ़ाना सुचारु कदम हो सकते हैं।
EAC-PM का कहना है कि भारत जैसे बहुआयामी सन्दर्भ में गरीबी नापने का सबसे मुख्य पहलु है कि हमारे पास गरीबी में फसने और उससे निकलने की परिवर्तनशीलता का मानचित्रण हो।
आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के तीन राउंड के नतीजों को देखते हुए कॉउंसिल का कहना है कि आंशिक बदलाव को छोड़कर 2017-18, 2018-19 और 2019-20 तक शुरूआती 1% आय कमाने वाले लोग भारत के कुल आय का 6-7% हिस्सा कमाते हैं। शुरूआती 10% कमाने वाले कुल आय का एक-तिहाई हिस्सा कमाते हैं।
शुरूआती 1% की कुल आय में हिस्सेदारी बढ़ी
इन तीन सालों में शुरूआती 1% की आय में हिस्सेदारी 6.14% से बढ़ कर 6.82% हो गयी। शुरूआती 10% की हिस्सेदारी मामूली गिरावट के साथ 35.18% से 32.52% हो गयी। हालांकि इसका सबसे निम्न स्तर पर जीने को मजबूर लोगों की आय पर कोई असर नहीं पड़ा।
शुरूआती 1% की हिस्सेदारी में 15% का इज़ाफ़ा हुआ और शुरूआती 10% की हिस्सेदारी में 1% की गिरावट आयी।
देबरॉय ने कहा, “भारत के पास कभी आय की असमानता पर व्यापक और विस्तृत डाटा नहीं रहा और ना ही होगा। आखरी डाटा NCAER की तरफ से जारी किया था पर उसको लेकर भी कुछ उलझनें थीं। NSS द्वारा 2011-12 में उपभोग और व्यय पर डाटा जारी किया गया था और PLFS के पहले वही एक विश्वनीय स्रोत रहा है। इस रिपोर्ट में भी ज़्यादातर PLFS की डाटा का इस्तेमाल हुआ है।”
वित्तीय वर्ष 2017 के आर्थिक सर्वेक्षण में उस वक्त के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने सब्सिडी ट्रांसफर के बजाय UBI का समर्थन किया था।
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