जम्मू कश्मीर के 90 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने का प्रयास जारी, मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पहुंचा
पिछले 8 दिनों से छत्तीसगढ एवं जम्मू कश्मीर सरकार एवं प्रशासन से नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर द्वारा 90 बंधुआ मजदूरों को बडगाम जिले के ईंट भट्टे से मुक्त कराने का प्रयास जारी है।
इसी के चलते दिनांक 14 सितम्बर को माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आदेश पर प्रशासन ने त्वरित करवाही करते हुए जांजगीर चांपा के नायब तहसीलदार, श्रम निरक्षक, उप निरीक्षक की संयुक टीम बनाई गई जिसे बड़गांव जम्मू कश्मीर भेजा गया।
मज़दूरों ने डीसी ऑफिस के बाहर जमाया डेरा
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर के साथ मिल कर मज़दूरों ने पैदल यात्रा कर बड़गांव के डिप्टी कमिश्नर को पत्र सौंपने का निर्णय लिया।
काफी दिक्कतों का सामान करने के बाद सभी मज़दूर शाम तक डिप्टी कमिश्नर बड़गांव के कार्यालय पर पहुंच गए और डिप्टी कमिश्नर से मिलने के लिए डीसी ऑफिस के बाहर डेरा जमा लिया।
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मजदूरों के पास न खाने के लिए पैसा है और ना ही यात्रा के लिए किंतु मजदूरों ने बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 के तहत कार्यवाही की मांग की है और मजदूरों की एक ही मांग है कि डीसी मजदूरों का बयान दर्ज करें फिर पूर्ण जांच करें उसके बाद एक रिलीज ऑर्डर के साथ उन्हें पुलिस संरक्षण में छत्तीसगढ़ तक पहुंचाया जाए।
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर के संयोजक निर्मल गोराना का कहना है कि किंतु मजदूरों के बयान में फेरबदल के प्रयास में जुटा बड़गांव प्रशासन बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 के कानून का उल्लंघन कर रहा है।
बंधुआ मजदूरों की सुरक्षा एक बड़ा सवाल
नेशनल कैंपेन कमेटी फॉर इरेडिकेशन ऑफ बॉन्डेड लेबर के संयोजक निर्मल गोराना ने बताया की 15 सितम्बर की सुबह में ही प्रशासन की ओर से कई प्रतिनिधि व मिडिया के प्रतिनिधि पहुंचे जिनमें से कई लोगों ने अपने आप को डीएम बताया तो मजदूरों ने कहा कि आपके जिले में कितने कलेक्टर होते हैं क्योंकि हमारे जांजगीर-चांपा का तो एक ही कलेक्टर होता है।
मज़दूरों का कहना है कि इस बड़गांव जिले में जो भी हमसे मिलने आ रहा है अपने आप को कलेक्टर बोलता है और हमें कागज पर साइन करने के लिए दबाव दे रहा है ऐसे में हम कैसे पहचान करें कि हमें कौन सुरक्षा देगा और हमारा बयान कौन दर्ज करेगा।
पुलिस ने मज़दूरों के साथ की हाथापाई
निर्मल गोराना ने बताया कि अंत में मजदूरों ने एक पत्र पर अपने बयान स्वयं अपने हाथ से लिखे और उस पत्र पर केवल एक ही मजदूर का साइन मांगा जा रहा था। तब 5-6 मजदूरों ने साइन करके बयान का कागज अपने आप को डीएम बताने वाले व्यक्ति को दे दिया गया इसके बाद मौके पर उपस्थित पुलिस ने मजदूरों को धक्का देना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं पुलिस ने कुछ मजदूरों के साथ हाथापाई भी की।
आप को बता दें कि मजदूर लगभग 15 से 20 किलोमीटर पैदल चलकर अपनी मानगो का ज्ञाप सौंपने आए हैं। जिनमें गर्भवती महिलाएं एवं धात्री माताएं एवं वृद्ध मजदूर तथा नन्हे नन्हे बच्चे जो भट्टे में बाल बंधुआ मजदूर बनकर काम कर रहे थे सड़क पर निकल गए और सभी ने ठान लिया कि अब वह बड़गांव के डिप्टी कमिश्नर से मिलेंगे और मुक्ति की गुहार एक मांग पत्र के माद्यम से करना चाहते है।
जांजगीर चांपा से निकली हुई टीम अभी बंधुआ मजदूरों तक नहीं पहुंची।
क्या कहता है कानून
निर्मल गोराना ने आगे बताया कि बड़गांव प्रशासन बार-बार बंधुआ मजदूरो से जो खुद गुलामी से जकड़े है, से गुलामी का सबूत मांग रहा है जबकि बर्डन ऑफ प्रूफ बंधुआ मजदूरी प्रथा उन्मूलन अधिनियम 1976 की धारा 15 के तहत प्राथमिक नियोक्ता पर है न की बंधुआ मजदूर से।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बंधुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत सरकार के मामले में 1983 में कहा की यदि किसी को कर्ज देकर काम लिया जा रहा है तो कोर्ट को भी यह अनुमान लगाते मानना पड़ेगा की श्रमिक बंधुआ मजदूर है।
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बंधुआ मजदूर मायावती के नाम से आज 90 बंधुआ मजदूरों का मामला राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग(केस नंबर 15459/2022) पहुंच गया है। कल निर्मल गोराना राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जायेंगे।
गौरतलब है कि देश में केवल बंधुआ मजदूर ही नहीं बाल बंधुआ मजदूर मज़दूरी के मामले भी लगातार बढ़ते ही जारहे है। बुधवार को फ्री प्रेस जर्नल से मिली जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र में आदिवासी समुदाय के लोग अपने परिवार से बच्चों को प्रतिवर्ष 10,000 रुपये के लिए बाल मज़दूरी करवा रहे हैं।
महाराष्ट्र पुलिस ने बताया कि हाल ही में बाल मजदूर के रूप में काम करने वाली एक 11 वर्षीय बच्ची की मौत के बाद मामला सामने आया था, उन्होंने कहा कि इस संबंध में हत्या का मामला दर्ज किया गया है।
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