विरोध के बाद रुकी हसदेव में पेड़ों की कटाई, दुनिया के घने जंगलों में से एक है हसदेव अरण्य

By शशिकला सिंह
सोमवार 30 मई को छत्तीसगढ़ परसा कोल ब्लॉक में पेड़ों की कटाई फिर से शुरू की गई। आदिवासियों और प्रदर्शनकारियों के विरोध की वजह से पेड़ों की कटाई को रोक दिया गया।
पेड़ों की कटाई में कोई रुकावट न हो इसलिए प्रशासन की तरफ से भारी पुलिस फोर्स मंगवाई थी, लेकिन आदिवासी जनता के विरोध के कारण उन्हें कटाई का काम रोकना पड़ा।
हसदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता अलोक का कहना है कि “स्थानीय लोग और संगठन अलग-अलग तरीकों से अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं। कोई पेड़ से लिपटकर ‘चिपको आंदोलन’ जैसा संदेश देने की कोशिश कर रहा है तो कोई धरना प्रदर्शन कर रहा है। कल हुई कटाई में लगभग 250 पेड़ों को काट दिया गया था। लेकिन भारी प्रदर्शन के वजह से प्रसाशन के लोगों को कटाई रोकनी पड़ी।”
तीन दशकों से छत्तीसगढ़ में जन पत्रकारिता करने वाले वरिष्ठ पत्रकार कमल शुक्ला का कहना है कि कम से कम यहां 10 लाख पेड़ काटे जाने हैं।
वर्कर्स यूनिटी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि 15 दिन पहले रात के अंधेरे में 300 पेड़ काट दिए गए थे।
गौरतलब है कि कांग्रेस की छत्तीसगढ़ राजस्थान सरकार के बीच सहमति से हसदेव में कोयला खदान अडानी को दिए गए हैं जहां से कोयला खनन किया जाएगा।
- अडानी की कंपनी के लिए काटे जा रहे लाखों पेड़, हसदेव अरण्य को बचाने की आवाज तेज
- बस्तर में आदिवासी इलाकों पर ड्रोन से हवाई हमले, सरकार का इनकार, पत्रकारों ने दिखाए सबूत
हसदेव अरण्य के बारे में?
कमल शुक्ला के मुताबिक ये दुनिया के सबसे घने जंगलों में से एक है। पौने दो लाख एकड़ में फैला ये घना जंगल जैव विविधता का एक तरह से संग्रहालय है।
यहां 82 तरह के पक्षी, दुर्लभ प्रजाति की तितलियां और 167 प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं।
हसदेव अरण्य गोंड, लोहार और ओरांव जैसी आदिवासी जातियों के 10 हजार लोगों का घर है।
विरोध तेज, राहुल गांधी चुप
सोमवार को ही छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की अगुवाई में रायपुर में हसदेव को उजाड़ने के विरोध में प्रदर्शन का ऐलान किया गया है। यहां के जंगलों को बचाने के लिए स्थानीय लोग प्रदर्शन कर रहे हैं।
सोशल मीडिया पर #HasdeoBachao का नारा चल रहा है।
वे कांग्रेस नेता राहुल गांधी को 2015 का उनका वादा याद दिला रहे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि वह जल-जंगल-जमीन बचाने के संघर्ष में आदिवासियों के साथ हैं।
अब कांग्रेस की सरकार ही खदानों के विस्तार को मंजूरी दे रही है और तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद राहुल गांधी चुप हैं।
हालांकि विदेश में उन्होंने आश्वासन जैसा कुछ कहा था लेकिन पेड़ों की कटाई में उनका वादा बहुत ठोस नजर नहीं आ रहा।
खदान के लिए काटे जाएंगे लाखों पेड़
कोल ब्लॉक के विस्तार की वजह से जंगलों को काटा जाना है। पेड़ काटने के बारे में अलग अलग अनुमान है। एक सरकारी अनुमान के मुताबिक, लगभग 85 हजार पेड़ काटे जाएंगे।
वहीं स्थानीय लोगों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि हसदेव इलाके में कोल ब्लॉक के विस्तार के लिए 2 लाख से साढ़े चार लाख पेड़ तक काटे जा सकते हैं।
इससे न सिर्फ़ बड़ी संख्या में पेड़ों का नुकसान होगा बल्कि वहां रहने वाले पशु-पक्षियों के जीवन पर भी बड़ा खतरा खड़ा हो जाएग।

क्या है विवाद?
छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार ने 6 अप्रैल 2022 को एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसके तहत, हसदेव क्षेत्र में स्थित परसा कोल ब्लॉक परसा ईस्ट और केते बासन कोल ब्लॉक का विस्तार होगा।
जंगलों को काटा जाएगा और उन जगहों को पर कोयले की खदानें बनाकर कोयला खोदा जाएगा। स्थानीय लोग और वहां रहने वाले आदिवासी इस विरोध कर रहे हैं।
पिछले 10 सालों में हसदेव के अलग-अलग इलाकों में जंगल काटने का विरोध चल रहा है। कई स्थानीय संगठनों ने जंगल बचाने के लिए संघर्ष किया है और आज भी कर रहे हैं।
विरोध के बावजूद कोल ब्लॉक का आवंटन कर दिए जाने की वजह से स्थानीय लोग और परेशान हो गए हैं। आदिवासियों को अपने घर और जमीन गंवाने का डर है।
(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)