लेबर कोड किस तरह आपके काम को बदल कर रख देंगे?
श्रम कानूनों की जगह नए लेबर कोड लागू करने में महामारी और मजदूर यूनियनों के विरोध का सामना करने के बाद अब मोदी सरकार चरणबद्ध तरीके से नहीं बल्कि एक झटके में पूरे देश में इन नियमों को लागू करना चाहती है।
अब देखने वाली बात यह है कि चार लेबर कोड आपके कामकाजी जीवन को कैसे बदलेंगे?
एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में नौकरी के बाजार में व्यापक बदलाव लाएंगे, जिसमें कर्मचारियों को कितना शुद्ध वेतन मिलता है। उन्हें रोजगार दिया जा सकता है और निकाल दिया जा सकता है।
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बहरहाल संसद द्वारा नए लेबर कोड को पारित किया जा चूका है। अब मोदी सरकार लगातार राज्यों पर इस बात का दबाव बना रही है कि लेबर संहिताओं के तहत नियमों को जल्दी सहमति दे दी जाये।
केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 90% राज्यों ने बड़े पैमाने पर मसौदा नियम तैयार किए हैं।
कोड कुल मिलाकर 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को समेकित करते हैं। ये हैं मजदूरी पर संहिता, 2019; औद्योगिक संबंध संहिता, 2020; व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020; और सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020।
वर्तमान में, 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वेतन संहिता के तहत अपने हिस्से के मसौदा नियमों को तैयार किया है, जबकि 27 ने सामाजिक सुरक्षा पर मसौदा नियमों को पूरा किया है। औद्योगिक संबंध संहिता पर 25 ने मसौदा नियम बनाए हैं और व्यावसायिक सुरक्षित संहिता पर 24 ने मसौदा तैयार किया है।
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आप को बता दें कि नए लेबर कोड के आजाने के बाद प्रबंधन को यह अधिकार हो जायेगा कि वह कर्मचारियों की छंटनी करना कर सकते हैं।
फायरिंग के पुराने नियमों ने दो प्रमुख समस्याएं पैदा कीं। सबसे पहले, जब कोई कंपनी घाटे में चलती है, तो वह लागत बचाने के लिए कर्मचारियों से जल्दी छुटकारा नहीं पा सकती है। यह फर्मों का खून बहाता है, अंततः आर्थिक उत्पादन को नीचे खींच रहा है।
दूसरे, कई फर्म औपचारिक क्षेत्र पर लागू होने वाले विभिन्न कानूनों से बचने के लिए अपनी कुल कर्मचारी शक्ति का खुलासा नहीं कर सकती हैं। नेशनल लेबर इंस्टीट्यूट के पूर्व अर्थशास्त्री ध्रुव प्रसाद गोला कहते हैं, “इन कानूनों के तहत, फर्मों ने श्रम कानूनों से बचने के लिए छोटे रहने और अपनी उपस्थिति छिपाने को प्राथमिकता दी।”
हायरिंग, फायरिंग
सीधे शब्दों में कहें तो इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड 2020 में, सरकार ने कंपनी प्रबंधन को यह आज़ादी दे दी है कि वह 300 कर्मचारियों तक की कंपनियों को सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना नौकरी से निकाल सकती है। कर्मचारियों को आग लगाने या संयंत्रों को बंद करने की अनुमति दी है।
300 से अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों में छंटनी कर्मचारियों की सहमति के लिए आवेदन करने की आवश्यकता होगी। हालांकि, यदि अधिकारी उनके अनुरोध का जवाब नहीं देते हैं, तो छंटनी के प्रस्ताव को स्वीकृत माना जाएगा।
पहले श्रम कानूनों में “कामगारों” की छंटनी करने से पहले 30- से 90-दिन की नोटिस अवधि की आवश्यकता होती थी, जो मुख्य रूप से दुकान-फर्श श्रमिकों का एक वर्ग है।
100 या अधिक कामगारों वाली निर्माण इकाइयों, बागानों और खानों के मामले में, छंटनी के लिए भी सरकार की मंजूरी की आवश्यकता होती है। निश्चित रूप से, भारत के 90% कार्यबल, जो अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं, इन परिवर्तनों से प्रभावित नहीं होंगे।
जहां के तरफ सभी श्रम अर्थशास्त्री सहमत नहीं हैं कि परिवर्तन अच्छे हैं। लेकिन मज़दूर यूनियनों का विरोध लगरत जारी है।
दो दिन में फुल एंड फाइनल
मजदूरी पर संहिता, 2019 चार मजदूरी और भुगतान से संबंधित श्रम कानूनों को समाहित करती है: मजदूरी का भुगतान अधिनियम, 1936; न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948; बोनस भुगतान अधिनियम, 1965; और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976।नए वेज कोड में नौकरी छोड़ने के बाद फुल एंड फाइनल को लेकर बड़ा बदलाव किया गया है। देश में सभी कंपनियों को नया वेतन कोड लागू होने के बाद उसके हिसाब से काम करना होगा।
यदि किसी कर्मचारी ने नौकरी छिड़ने का निर्णय लिया है या कर्मचारी को किन्ही कारणों से नौकरी से निकाला गया हो तो उसे अपने बकाया वेतन का फुल एंड फाइनल सत्तेल्मेंट करने के लिए बार बार कंपनी के चकर काटने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
ऐसे सभी कर्मचारियों के उनके काम के आखरी दिन के बाद दो दिनों के भीतर फुल एंड फाइनल सेटलमेंट किया जाना होगा।
मजदूरी पर संहिता, 2019 चार मजदूरी और भुगतान से संबंधित श्रम कानूनों को समाहित करती है: मजदूरी का भुगतान अधिनियम, 1936; न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948; बोनस भुगतान अधिनियम, 1965; और समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976।
कम हो जाएगी इन-हैंड सैलरी
सबसे बड़े नुकसान की बात ये है कि इन-हैंड सैलरी यानी टेक होम सैलरी कम हो जाएगी। नए लेबर कोड के लागू होने के बाद कर्मचारियों की बेसिक सैलरी, उनकी टोटल सैलरी की कम से कम 50 फीसदी हो जाएगी।
इस बदलाव से उनका PF कंट्रीब्यूशन बढ़ जाएगा। रिटायरमेंट के लिहाज से एक्सपर्ट इस बदलाव को अच्छा मान रहे हैं। इसके साथ ही कर्मचारियों की ग्रेच्युटी (New Wage Code Gratuity) को भी बढ़ जायेगा।
नई व्यवस्था में ग्रेच्युटी की गणना ‘डीम्ड’ बेसिक सैलरी (Deemed Basic Salary) के आधार पर होगी, जो कि टोटल सैलरी के 50 फीसदी से कम नहीं होनी चाहिए।
मज़दूर यूनियनों अधिकारों में आएगी कमी
औद्योगिक संबंध संहिता श्रमिकों के हड़ताल पर जाने के अधिकार पर नई शर्तें निर्धारित करती है। यूनियनों को अब देना होगा 60 दिन की हड़ताल का नोटिस यदि श्रम न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष कार्यवाही लंबित है, तो मज़दूर समाप्त होने के बाद 60 दिनों तक हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं।
ये शर्तें सभी उद्योगों पर लागू होती हैं। इससे पहले, कर्मचारी दो सप्ताह से छह सप्ताह के बीच नोटिस देकर हड़ताल पर जा सकते थे।
फ्लैश स्ट्राइक को गैरकानूनी घोषित कर दिया जाएगा। इस सभी नियमों को देख कर साफ तौर पैर अनुमान लगाया का सकता है कि मज़दूर यूनियनों के अधिकारों को खत्म कर दिया जा रह है।
जिसके विरोध में पुर देश में ट्रेड यूनियनों का प्रदर्शन लगातरा जारी है।
कार्यस्थल सुरक्षा
व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020, कर्मचारियों की व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन करती है। नए लेबर कोड में अब फर्मों को कर्मचारियों के कुछ वर्गों को मुफ्त वार्षिक स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएंगे। जबकि सभी प्रतिष्ठानों में काम करने वाली महिलाओं को सुविधा दी जाएगी।
अभी कुछ दिनों पहले ILO ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इस बात का जिक्र किया गया है की वर्तमान समय में भारत के मज़दूर अपने कार्य स्थलों पैर बिलकुल सुरक्षित नहीं हैं।
ध्यान देने वाली बात यह है कि पिछले दिनों भारत में औद्योगिक दुर्घटनाएं बेतहाशा बढ़ी हैं और उनमें हज़ारों मजदूर मारे गए हैं।
मोदी सरकार ने जबसे 44 श्रम कानूनों को खत्म कर उन्हें चार लेबर कोड में समेटा है, और उसे लागू करने को प्रोत्साहित कर रही है, तबसे फैक्ट्री में कार्यस्थल पर सुरक्षा के मानकों में भारी लापरवाही बरती जा रही है।
इन लेबर कोड का ट्रेड यूनियनें शुरू से ही विरोध कर रही हैं।
सामाजिक सुरक्षा
सामाजिक सुरक्षा पर संहिता, 2020 पहली बार सामाजिक सुरक्षा को सार्वभौमिक बनाने का वादा करती है, जिसमें संगठित और अनौपचारिक दोनों तरह के श्रमिकों के साथ-साथ गिग और प्लेटफॉर्म कार्यकर्ता भी शामिल हैं।
इसके लिए मॉडल ई-श्रम पोर्टल है, जो देश में असंगठित श्रमिकों और प्रवासी मजदूरों का पहला राष्ट्रीय डेटाबेस है।
लेकिन बीते 26 अगस्त को एक साल पूरा होने का बावजूद भी 74 प्रतिशत से कुछ अधिक असंगठित मज़दूरों ने पंजीकरण कराया है। सरकार ने कुल 380 मिलियन श्रमिकों को नामांकित करने का लक्ष्य रखा है।
26 अगस्त, 2021 को शुरू किया गया, ई-श्रम का उद्देश्य स्वास्थ्य लाभ से लेकर बीमा तक सभी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को एकीकृत करना है, जैसे कि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना।
- मज़दूरों और यूनियनों की मांगों को दरकिनार कर नए लेबर कोड को लागू करने की जल्दी में मोदी सरकार
- तिरुपति में श्रम सम्मेलन के दूसरे दिन भी ट्रेड यूनियनों का प्रदर्शन रहा जारी
सामाजिक सुरक्षा संहिता में कहा गया है कि भविष्य निधि से संबंधित योजनाओं सहित उपयुक्त कल्याणकारी योजनाओं को समय-समय पर तैयार और अधिसूचित करेगा, रोजगार चोट लाभ, आवास, बच्चों के लिए शैक्षिक योजनाएं, श्रमिकों का कौशल उन्नयन, अंतिम संस्कार सहायता, और पुराना आयु गृह शामिल हैं।
गौरतलब है कि आगामी 13 नवम्बर को राजधानी दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक मार्च करने के लिए मेहनतकश आवाम का आह्वान किया गया है। जिसमें देशभर से किसानों, मज़दूरों और खेतिहर मज़दूरों के आने की उम्मीद है। मासा की मांग है मज़दूर विरोधी नए लेबर कोड को तत्काल रद्द किया जाए।
साथ ही मज़दूरों के लिए वेतन का सही प्रारूप तैयार किया जाए। 28 अगस्त को दिल्ली के राजेंद्र भवन में आयोजित कन्वेंशन में देशभर के मज़दूरों और मज़दूर यूनियनों में हिस्सा लिया था। कन्वेंशन में फासीवादी और पूंजीवादी दमन के खिलाफ एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की बात पर जोर दिया गया था।
(स्टोरी संपादित-शशिकला सिंह)
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