खुलासाः भारत का लेबर फोर्स हो रहा बूढ़ा, मामूली शिक्षा और ट्रेनिंग ने बढ़ाई मुसीबत
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी Centre for Monitoring Indian Economy (CMIE)(सीएमआईई) की हाल ही में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की मज़दूर शक्ति बूढ़ी हो रही है और कम शिक्षित भी।
CMIE के उपभोक्ता Pyramids Household Survey (CPHS) के अनुमान बताते हैं कि 2016-17 में, मज़दूर बल का 17 फीसदी हिस्सा 15-24 वर्ष आयु वर्ग में था।
जबकी 2021-22 तक यह आंकड़ा घटकर 13 फीसदी रह गया था। यह गिरावट इसलिए नहीं आई क्योंकि भारत की जनसंख्या का में युवाओं की आबादी काम हो गई है।
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इसके विपरीत, कुल जनसंख्या में 15-24 वर्ष आयु वर्ग की हिस्सेदारी 2016-17 में 26 फीसदी थी जो 2021-22 में बढ़कर 28 फीसदी हो गई है। लेकिन, इस आयु वर्ग की मज़दूर भागीदारी दर में गिरावट आई है।
ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि देश में युवाओं ने किसी न किसी कारण से मज़दूरी बाजार में शामिल होना काम कर दिया है।
युवाओं में बढ़ा शिक्षा का रुझान
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मज़दूर बल में कमी आने का सबसे बड़ा कारण यही है कि अब 15-24 उम्र वाले युवाओं में शिक्षा की तरफ अपना रुझान दिखाया है।
2016-17 में, कामकाजी उम्र की आबादी के लगभग 15 फीसदी ने घोषणा की है कि वह छात्र हैं। यह अनुपात अगले तीन वर्षों में से प्रत्येक में एक फीसदी दर से बढ़कर 2019-20 तक 18 फीसदी तक पहुंच गया।
फिर, 2019-20 के महामारी वर्ष में, यह 2021-22 में तीन फीसदी से बढ़कर 21 फीसदी और फिर दो फीसदी अंक से बढ़कर 23 फीसदी हो गया।
जहां वक तरफ 2016-17 और 2021-22 के बीच कामकाजी उम्र की जनसंख्या में 121 मिलियन की बढ़ोत्तरी हुई। इसी अवधि के दौरान, छात्रों की संख्या में 104 मिलियन की बढ़ोत्तरी हुई।
वहीं दूसरी तरफ इस अवधि के दौरान मज़दूर बल में 10 मिलियन की कमी आई।
42 फीसदी मज़दूरों की आयु 40 वर्ष के ऊपर
रिपोर्ट में बताया है कि 2016-17 में, भारत में कुल रोजगार का एक चौथाई 30 वर्ष से कम आयु के लोगों का था। यह 2019-20 तक गिरकर 21 फीसद और फिर 2021-22 तक 18 फीसदी हो गया।
उनके तीसवें दशक में कार्यबल का अनुपात भी 2016-17 में 25 फीसद से गिरकर 2021-22 में 21 फीसद हो गया है। नतीजतन, कार्यबल में जो कुछ बचा है वह ज्यादातर मज़दूर 40 वर्ष से ऊपर के हैं।
2016-17 में, 42 फीसदी कार्यबल अपने चालीसवें और अर्द्धशतक में था।
2019-20 तक, यह बढ़कर 51 फीसदी हो गया था। आधे से अधिक कार्यबल में मध्यम आयु वर्ग के मज़दूर शामिल थे, जब भारत में महामारी आई थी।
2021-22 तक, उनका अनुपात बढ़कर 57 फीसदी हो गया था।
एक संबंधित समस्या यह है कि कार्यबल की शैक्षिक योग्यता बिगड़ रही है। स्नातक और स्नातकोत्तर की हिस्सेदारी 2017-18 में 12.9 फीसदी से बढ़कर 2018-19 तक 13.4 फीसदी हो गई।
फिर यह 2019-20 में गिरकर 13.2 फीसदी और फिर 2020-21 में 11.8 फीसदी पर आ गया।
यह ठीक हो गया लेकिन 2021-22 में केवल आंशिक रूप से 12.2 फीसदी पर आ गया। नौकरीपेशा लोगों के बीच स्नातकों में यह अचानक गिरावट और अधूरी वसूली भारत की प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए अच्छा संकेत नहीं है।
भारत के कार्यबल में ज्यादातर ऐसे लोग शामिल हैं जिनकी अधिकतम शैक्षणिक योग्यता माध्यमिक शिक्षा है (जिन्होंने अपनी 10 वीं या 12 वीं की परीक्षा पास की है)।
2016-17 में उनका 28 फीसदी कार्यबल था और 2021-22 में उनका हिस्सा 38 फीसदी हो गया। जिन लोगों की अधिकतम शिक्षा 6वीं से 9वीं कक्षा के बीच थी, उनमें भी इतनी ही वृद्धि हुई है।
उनकी हिस्सेदारी 2016-17 में 18 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 29 फीसदी हो गई।
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