झारखंड: सोरेन सरकार का बड़ा फैसला, OBC आरक्षण 27% करने को दी मंजूरी
झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता के बीच मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मंत्रिपरिषद की बैठक में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए।
इनमें राज्य में सरकारी नौकरियों में पिछले वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया गया है। पहले यह आरक्षण 14 फीसदी ही था।
इस फैसले के बाद झारखंड पिछड़े वर्गों को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में दूसरा राज्य बन जायेगा इसके पहले तमिलनाडु ने पिछड़े वर्गों को इतना आरक्षण दिया गया था।
झारखंड में सोरेन सरकार ने स्थानीयता के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाने का फैसला ले लिया है। आज हुई कैबिनेट की बैठक में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कुल 43 प्रस्तावों पर स्वीकृति प्रदान की।
इसमें से 1932 के खतियान को पारित करने का फैसला भी था।
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इस संबंध में कैबिनेट सेक्रेटरी वंदना दादेल ने बताया कि झारखंड की स्थानीयता और निवासी की परिभाषा और पहचान के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाया जाएगा।
साथ ही सामाजिक सांस्कृतिक एवं अन्य लाभों को स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक 2022 के गठन के संबंध में जो मुख्य प्रावधान हैं, उनमें वैसे व्यक्ति जिनके पूर्वज का नाम 1932 तथा पूर्व के सर्वे खतियान में दर्ज है, उसके आधार पर स्थानीयता की परिभाषा रखी गई है।
यही नहीं जो भूमिहीन होंगे या जिनके पास खतियान नहीं होगा, ऐसे मामलों में ग्राम सभा द्वारा पहचान किया जाएगा। इस विधेयक को राज्य सरकार विधानसभा में भेजेगी और उस पर अप्रूवल लेने के बाद उसे केंद्र सरकार की नवमी अनुसूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार अनुरोध करेगी। इसके लिए नया विधेयक लाया जाएगा।
राज्य में कुल आरक्षण हुआ 77 प्रतिशत
वहीं राज्य सरकार ने पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति को 12 फीसद, अनुसूचित जनजाति 28 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग अनुसूचित 2 में आनेवाले को 15 फीसदी , पिछड़ा वर्ग अनुसूचित 2 में आनेवाली ओबीसी को 12 फीसदी आरक्षण और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसदी का आरक्षण का प्रस्ताव आज की कैबिनेट में दिया गया। यानी अब राज्य में कुल 77 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
इस विधेयक का नाम झारखंड पदों एवं सेवाओं की नियुक्ति में आरक्षण अधिनियम 2001 यथा संशोधित में तथा संशोधन हेतु 2022 विधेयक रख गया है। इसे भी पहले विधानसभा से पारित कराकर केंद्र सरकार से नवमी अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया जाएगा।
आगे की क्या प्रक्रिया होगी जानें
अब 1932 के खतियान को लेकर पहले विधेयक को झारखंड विधानसभा में पेश किया जाएगा। विधानसभा में इसे पास करने के बाद सरकार इसे राज्यपाल के पास भेजेगी। उसके बाद राज्यपाल इससे नवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार के पास भेजेंगे और वहां अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
बता दें जेएमएम के कई नेता और आदिवासी संगठन राज्य में वर्षों से 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता लागू करने की मांग करते रहे हैं। राज्य सरकार पहले ही रघुवार दास सरकार की तरफ से पेश स्थानीयता नीति को रद्द कर चुकी है।
क्या मायने हैं 1932 के खतियान का
1932 के खतियान काे आधार बनाने का मतलब यह है कि उस समय जिन लाेगाें का नाम खतियान में था, वे और उनके वंशज ही स्थानीय कहलाएंगे। उस समय जिनके पास जमीन थी, उसकी कई बार खरीद-बिक्री हाे चुकी है।
उदाहरण के तौर पर 1932 में अगर रांची जिले में 10 हजार रैयतों थे ताे आज उनकी संख्या एक लाख पार कर गई। अब ताे सरकार के पास भी यह आंकड़ा नहीं है कि 1932 में जाे जमीन थी, उसके कितने टुकड़े हाे चुके हैं।
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स्थानीयता काे लेकर विवाद 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी के समय शुरू हुआ, जब उन्होंने 1932 के खतियान काे आधार बनाने की कोशिश की।
अर्जुन मुंडा के मुख्यमंत्रित्व काल में सुदेश महतो की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बनी, लेकिन इसकी रिपोर्ट पर कुछ नहीं हाे पाया।
2014 में मुख्यमंत्री रघुवर दस ने पहली बार स्थानीय नीति काे परिभाषित किया। इसमें 1985 से झारखंड में रहने वालों काे स्थानीय माना, अगर वे जमीन खरीदकर यहां बस गए हो या उनके बच्चों ने पहली से मैट्रिक तक की पढ़ाई झारखंड में की हाे। या फिर राज्य के केंद्र सरकार के कर्मचारी हाें।