झारखण्ड: एचईसी को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में केंद्र सरकार, मज़दूरों ने प्लांट में ताला जड़ किया काम ठप्प
एचईसी को बेचने की योजना पर चल रही सरकार, 18 महीनों से बिना वेतन काम कर रहे मज़दूरों ने लिया आंदोलन का रास्ता, 16 जनवरी से ही उत्पादन पूरी तरह से ठप्प है.
झारखण्ड के रांची स्थित एचईसी (हैवी इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन) को निजी हाथों में सौंपने की योजना पर आगे बढ़ रही सरकार की मंशा के खिलाफ मज़दूरों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है. बीते कई महीनों से मज़दूर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
एचईसी मुख्यालय के समक्ष प्रदर्शन कर रहे मजदूरों का कहना है कि ” यहां कर्मियों का एक-एक दिन काटना मुश्किल हो रहा है और अगर स्थिति ऐसी ही रही तो कर्मियों का आक्रोश कभी भी भड़क सकता है. केंद्र की सरकार ने हमलोगों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया है. सरकार अगर हमारी नहीं सुनती तो हम अब आर-पार कि लड़ाई लड़ने को तैयार हैं.”
इन दिनों एचईसी मुख्यालय के समक्ष आंदोलनकारी मजदूरों का प्रदर्शन लगातार जारी है. इस कारण गत 16 जनवरी से ही प्लांट के अंदर का उत्पादन भी पूरी तरह से ठप्प है.
प्लांट में कार्यरत मज़दूर और अधिकारी ने मुख्य गेट को ही धरनास्थल बना लिया है.19 जनवरी को तो प्रदर्शनकारी मजदूरों के एक जत्थे ने प्लांट स्थित एचएमबीपी एडीएम बिल्डिंग में ताला भी जड़ दिया.
20 जनवरी को प्लांट मुख्यालय गेट से ‘आवाज़ उठायें एचईसी बचाएं” आक्रोश रैली निकालकर मज़दूरों ने केंद्र सरकार और संस्थान प्रबधन विरोधी नारे लगाये. इसके साथ ही इसके माध्यम से आम जनता से भी एचईसी को बचाने और 18 महीनों से वेतन के अभाव में भूखों मर रहे कर्मियों को हक़ दिलाने की लड़ाई में साथ देने की अपील की गयी.
इस आंदोलन में मज़दूरों के साथ खड़े सीपीएम राज्य सचिव ने कहा है कि ‘ केंद्र की सरकार एचईसी के पुनरुद्धार को लेकर पूरी तरह से उदासीन है. इसलिए एचईसी को बचाने की लड़ाई लड़ रहे वहां के मजदूरों व अधिकारियों के पक्ष में खड़े होने की ज़रूरत है.’
मिडिया को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा ‘INDIA गठबंधन के घटक सभी रानीतिक दलों, सिविल सोसाइटी और सामाजिक जन संगठनों के साथ-साथ राज्य की जनता से अपील की है कि देश व झारखंड के गौरव एचईसी को बचाने के लिए आगे आयें. केंद्र सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र विरोधी नीतियों, कार्यशील पूंजी व आधुनिकीकरण के अभाव में ही आज यह भारी-उद्योग संस्थान भारी संकट के दौर से गुजर रहा है.’
उधर एचईसी में जारी आंदोलन को अब प्लांट के अंदर कार्यरत अन्य दूसरे सेक्शन के कर्मी-कर्मचारियों का खुला समर्थन मिलने लगा है. वे सभी भी अब मजदूरों के आंदोलन में साथ उतरने लगे हैं.
जिससे एचईसी वेलनेस सेंटर, गेस्ट हाउस और ट्रांसपोर्ट सेक्शन के कर्मियों के आंदोलन में शामिल हो जाने के कारण प्लांट के निदेशकों को वाहन भी नहीं उपलब्ध हो पा रहा है.
प्लांट के गेट पर प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों ने बताया कि ” यह लड़ाई सिर्फ बकाया वेतन भुगतान के लिए ही नहीं है बल्कि एचईसी को बचाने की भी है. क्योंकि केंद्र सरकार व उसके भारी उद्योग मंत्रालय के साथ-साथ एचईसी प्रबंधन की गलत नीतियों और अड़ियल रवैये ने ही इस देश के औद्योगिक विकास का सूत्रपात करनेवाले इस ऐतिहासिक भारी उद्योग संस्थान को बंदी के कगार पर पहुंचा दिया है.”
मज़दूरों ने बताया ‘ यहां के प्रबंधकों द्वारा जब तक यहां काम करनेवाले सभी कर्मियों के बकाया वेतन के भुगतान के साथ-साथ इस उद्योग संस्थान को चलाने का सही रोड मैप नहीं बनता है, हमारा ये विरोध-आंदोलन जारी रहेगा.’
इस दौरान हर दिन कामगारों द्वारा जन सहयोग से ‘सामानांतर मजदूर कैंटीन’ चलाकर सभी आंदोलनकारी मजदूरों को खिचड़ी बनाकर खिलाई जा रही है.
मालूम हो कि मज़दूरों को आंदोलन को देखते हुए प्रबंधन द्वारा प्लांट के अंदर काम करनेवाले मजदूर-कर्मचारियों के एकमात्र कैंटीन को बंद कर दिया गया था.
प्रदर्शन में शामिल मज़दूर नेताओं ने बताया कि ” अब ये व्यापक चर्चा हर तरफ होने लगी है कि मौजूदा केंद्र सरकार और भारी उद्योग मंत्रालय इस भारी-उद्योग संस्थान को बीमार बनाकर उसे कंडम/दिवालिया घोषित कर हमेशा के लिए बंद करने पर आमादा है. जिससे की बाद में धीरे धीरे करके इसे बड़े निजी कंपनियों-कारपोरेट घरानों के हवाले कर दिया जाय”.
आगे उन्होंने बताया कि ‘ केंद्र की सरकार जब से ये नीतिगत फैसला लागू करने पर आमादा हुई है कि देश के ख़ज़ाने से बने और चल रहे तमाम सार्वजनिक उद्योग-उपक्रमों को जैसे भी हो उसे निजी-कारपोरेट घरानों-कंपनियों के हाथों में दे दिया जाय. ताकि उनके द्वारा दिए जा रहे अकूत धन-सहयोग के उपकार के बदले में उन्हें भी खुलकर मुनाफ़ा कमाने के सारे अवसर दिए जाएं.’
(न्यूज़क्लिक की ख़बर से साभार)
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