मारुति आंदोलन: उम्रकैद झेल रहे आखिरी 13वें मजदूर नेता सोहन सिंह को मिली जमानत
करीब 10 साल से आजीवन कारावास की सजा पाए जेल में बंद मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन मानेसर के 13वें नेता सोहन सिंह को आज पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायलय, चंडीगढ़ से ज़मानत मिल गई है।
सोहन की ज़मानत के बाद मारुती सुजुकी मजदूर संघ (एमएसएमएस) ने लंबी चली कानूनी लड़ाई पर मिली सफलता के प्रति खुशी जाहिर की है। यूनियन का कहना है कि ‘यह यूनियन के लिए हर्ष का दिन है कि हमारे साथी नेता सोहन सिंह को जमानत दे दी गयी है।’
सोहन के परिवार में ख़ुशी की लहार दौड़ गई है उनकी पत्नी पूनम ने वर्कर्स यूनिटी से कहा कि ‘हम सभी बहुत खुश हैं। हम सभी लोग 10 साल से इस दिन का इंतजार कर रहे थे, इस ख़ुशी को शब्दों में बयां करना मुश्किल है।’
गौरतलब है कि अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद झेलते सभी 13 नेतृत्वकारी मज़दूरों को जमानत मिल गई।
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इस कड़ी के धनराज को 19 अप्रैल 2022, रामबिलास को 24 नवंबर 2021, संदीप ढिल्लों और सुरेश को बीते 19 जनवरी, योगेश यादव को 8 फरवरी, पूर्व प्रधान राममेहर, पूर्व महासचिव सर्वजीत और प्रदीप गुज्जर की 21 फरवरी को, अजमेर को 23 मार्च को, अमरजीत को 24 मार्च और सोहन सिंह को आज जमानत मिली है।
सभी को कस्टडी (यानी जेल में बिताए दिनों) के आधार पर जमानत मिली है। जो क़ैदी जेल/सजा के दौरान जितना पैरोल पर घर रहते हैं, उतना दिन जेल अवधि से कम हो जाता है।
इस प्रकार जेल में एक निश्चित अवधि बिताने के बाद जमानत देने की बाध्यता बढ़ जाती है।
आप को बता दें कि मारुति सुजुकी, मानेसर के प्रबंधन द्वारा 18 जुलाई, 2012 को प्लांट में साजिशपूर्ण घटना के बाद से 13 मजदूर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे।
इसी दौरान दो मजदूर नेताओं पवन दहिया व जिया लाल की बीते साल मौत हो गई थी। पवन दहिया की मौत लाकडाउन में छूट कर घर गए थे तो खेत में पानी देने के दौरान करंट लगने से जबकि जिया लाल को कैंसर हो गया था।
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क्या था पूरा मामला
ग़ौरतलब है कि मारुति मानेसर प्लांट के मज़दूरों ने जून 2011 में यूनियन बनाने की मांग पर संघर्ष शुरू किया था। यूनियन की बुनियादी मांग के पीछे सम्मानजनक काम की शर्तें हासिल करने के कई पहलु छिपे थे।
मज़दूरों के जुझारू संघर्ष ने इस आन्दोलन को हरियाणा ही नहीं पूरे देश में मज़दूर शक्ति और एकता का प्रतीक बना दिया।
जुलाई 2012 में कंपनी में मज़दूरों और कंपनी बाउंसरों के टकराव और एक मैनेजर की मौत के बाद 546 स्थायी और 1800 ठेका मज़दूरों को बिना जांच काम से निकाल दिया गया और सभी यूनियन नेताओं सहित 213 लोगों पर संगीन धाराओं में एफ़आईआर दर्ज कर दी गई।
इतनी बड़ी संख्या में नेतृत्वकारी वर्करों के जेल में जाने के बावजूद मारुति का आंदोलन चलता रहा और इसके लिए बाहर मौजूद मज़दूर नेताओं की ‘प्रोविजनल कमेटी’ बनाई गई।
साल 2012 में गिरफ्तार किए गए 147 मजदूरों को जहां 2017 में, 5 साल जेल काटने के बाद, गुड़गांव सेशन कोर्ट द्वारा बाइज्ज़त बरी किया गया वहीं उसी केस में 12 सदस्यीय यूनियन बॉडी के सभी सदस्यों और एक मज़दूर जियालाल को उम्र कैद की सजा सुना दी गई।
लेबर एक्टिविस्ट नयन कहते हैं कि ‘मारुती मज़दूरों पर किया गया बर्बर हमला, सत्ता द्वारा सभी मजदूरों को सबक सिखाने के लिए किया गया था, ताकि अन्याय और शोषण के खिलाफ कोई और सिर ना उठा पाए। कांग्रेस से लेकर भाजपा, पुलिस से लेकर न्याय व्यवस्था, सभी कंपनी राज के सामने नतमस्तक रहे।’
टीयूसीआई के महासचिव और वरिष्ठ वकील संजय सिंघवी का कहना है कि ये मुकदमा ऊपरी अदालतों में बहुत देर तक नहीं टिकेगा क्योंकि ये अभी तय ही नहीं हुआ कि मैनेजर की मौत कैसे हुई है और उसमें इन मज़दूरों का क्या हाथ है।’
हालांकि मारुति मज़दूरों के संघर्ष के कारण आखिरकार कंपनी को यूनियन की मान्यता देनी पड़ी। यूनियन को अपने इशारे पर नचाने की कोशिश भी हुई लेकिन अंततः स्वतंत्र यूनियन के गठन और कंपनी की ओर से इसे मान्यता मिलने में कामयाबी हासिल हुई।
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